"बच्चे और मोबाइल"
अरे मुन्ना ! मोबाइल छोड़ो ...... जल्दी से सो जाओ, सुबह जल्दी उठकर स्कूल भी जाना है ......
इस तरह का डायलॉग आए दिन हर घर में सुनने को मिल जाएगा , क्योंकि आज के दौर के 10 से 15 वर्ष की आयु के बच्चो को हर खिलौने से ज्यादा प्यारा मोबाइल है । मां बाप अपने बच्चों को इसके चंगुल से छुड़ाने के लिए विफल प्रयास करते ही रहते हैं ।
अब से करीब 25 / 30 वर्ष पूर्व बच्चे अपने घरों से शाम को खेलने के लिए घरों के निकट पार्क , स्टेडियम व खाली मैदान में चले जाया करते थे और खूब आउटडोर गेम्स खेलते थे । परंतु आज के समय में बच्चों का सबसे प्रिय गेम पब जी व वीडियो गेम्स है , जो कि मोबाइल में आसानी से डाउनलोड हो जाते हैं । मोबाइल में उपलब्ध वीडियो गेम को इस तरह से डिजाइन किया गया है , कि बच्चे इनके चंगुल से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं ।
कुछ देशों में तो पब जी जैसे कई गेम्स को , जोकि बच्चों के लिए काफी घातक सिद्ध हुए हैं , प्रतिबंधित कर दिया गया है । इन वीडियो गेम्स के कारण बच्चों के शारीरिक विकास में कमी आई है और उनकी पढ़ाई भी काफी प्रभावित हुई है । अत्यधिक मोबाइल का इस्तेमाल बच्चों के मानसिक स्तर को भी प्रभावित कर रहा है , साथ ही उनकी नेत्र दृष्टि भी इसके प्रयोग से लगातार गिर रही है । आजकल हर जगह देखने को मिल जाता है , कि छोटे-छोटे बच्चों के चश्मे लगे होते हैं ।
बड़ी-बड़ी कंपनियां जैसे गूगल , माइक्रोसॉफ्ट आदि को चाहिए कि इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाएं , जैसे कि उन्हें प्ले स्टोर में सिर्फ शिक्षा संबंधी वीडियो गेम्स उपलब्ध कराने चाहिए ताकि बच्चे इससे कुछ ज्ञान हासिल कर सकें । इन कंपनियों को मनोरंजन की दृष्टि से डाले गए वीडियो गेम्स से वायलेंट हिस्से को हटा देना चाहिए , जिससे बच्चों के मस्तिष्क पर इसका बुरा प्रभाव ना पढ़ सके ।
बच्चों के माता-पिता तो इस मोबाइल की लत को छुड़ाने का भरसक प्रयास करते हैं पर नतीजा सिफर ही आता है।
✍ विवेक आहूजा
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