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Saturday, 20 February 2021

शौहरत शायरी, शौहरत अर्थ , शौहरत


"शौहरत"  ( मुक्तक )

इंसान पर जब कुछ नहीं होता है ,
वह सारे जहां में रोता है ।
मिल जाती जब "शौहरत" उसे ,
अपना वो आपा खोता है ।
कुदरत का निजाम समझ ओ बंदे ,
"शौहरत" तमाशा पल का होता है ।
गुरुर टिका नहीं किसी का इस जहां में ,
काटता फसल वही बीज जो वो बोता है ।।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986

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