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Monday, 15 August 2022

याञी - द ट्रैवलर

 "यात्री - द ट्रैवलर"


EPISODE : 1

सुरभि आज अपने कॉलेज जाने के लिए जल्दी तैयार हो गई थी क्यों ना हो आज उसका कॉलेज का पहला दिन जो था । कॉलेज के शुरुआती दिन में सब अच्छा हो यही सोच वह घर के सभी बड़ों का आशीर्वाद लेकर अपने कॉलेज की शुरुआत करना चाहती थी , मम्मी ने सुरभि को रात को ही ऑल द बेस्ट कह दिया था लेकिन पापा से रात को भी ज्यादा बात नहीं हो पाई थी , सुरभि ने मम्मी से पूछा पापा कहां है ? मुझे उनसे मिलकर कॉलेज जाना है । सुरभि की मम्मी ने उसे बताया कि आकाश (सुरभि का पिता) को पता नहीं आजकल क्या हो गया जब से उनके माता-पिता व भाई की कार एक्सीडेंट में मृत्यु हुई है ,वो बहुत ही खोए खोए से रहते हैं , रोज सुबह सुबह ही समुद्र किनारे चले जाते हैं और घंटो वहीं बैठे रहते हैं । सुरभि को अपनी मां की बात सुन बहुत आश्चर्य हुआ और वह अपनी मां से शिकायत भरे लहजे में बोली पापा इतने परेशान हैं और आपने मुझे बताया तक नहीं , मैं आज ही पापा से बात करूंगी ।
इतना कह सुरभि अपने शहर कुट्टी के बाहरी छोर जहां समुद्र का किनारा था वहां चली गई । कुट्टी एक दक्षिण भारत का खूबसूरत कस्बा था जो कि समुद्र के किनारे बसा हुआ था , शहर के लोग अक्सर घूमने समुद्र के किनारे आ जाया करते थे । आकाश भी यही अक्सर आता था , सुरभि अपने घर से आकाश को मिलने के लिए निकल पड़ी । समुद्र के किनारे पहुंच सुरभि ने आकाश को पैनी निगाह से ढूंढना शुरू किया काफी देर ढूंढने के पश्चात उसे आकाश एक कोने में बैठा मिल गया , सुरभि दूर से ही आकाश को देख रही थी । आकाश की आंखों से आंसू बह रहे थे और वह कुछ बडबडा रहा था , दूर होने के कारण सुरभि कुछ सुन नहीं पा रही थी सुरभि आकाश के और नजदीक आ गई और गौर से आकाश की आवाज सुनने लगी । आकाश फूट-फूट कर रो रहा था और कह रहा था "पापा , मम्मी , भैया मैं एक बार फिर अनाथ हो गया , अब मुझे कौन सहारा देगा , पहले तो आप सब ने मुझे संभाल लिया , अब कौन संभालेगा"
सुरभि ने आकाश के कंधे पर हाथ रखा तो आकाश ने पीछे मुड़कर देखा , हाथों से आंखों के आंसू पहुंचते हुए सुरभि से बोला "आओ सुरभि बैठो" सुरभि ने आकाश से कहा..... "पापा आप आजकल कहां है , हम सब आपके साथ हैं ,मैं हूं , मम्मी है" आकाश ने रुंधे गले से सुरभि के सर पर हाथ फेरते हुए कहा .. .मां-बाप व भाई की कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता और आकाश अपने मुंह कंधे मे छुपाए बैठ गया ।
सुरभि ने पापा को ढाढ़स बधाते हुए कहा ..... "पापा एक बात पुछू"
आकाश ने कहा ...."पूछो"
बेटी सुरभि ने कहा..... पापा आप रोते हुए कह रहे थे एक बार फिर अनाथ हो गया इसका क्या मतलब हुआ मेरी समझ में नहीं आया ।
आकाश ने सुरभि की बात सुन सकपका गया और बात बीच में ही काटते हुए बोला कोई बात नहीं है चलो घर चलते हैं । आकाश की हड़बड़ाहट को सुरभि भाप गई और आकाश से बोली पापा आप हम पर विश्वास नहीं करते क्या ? आकाश ने कहा..... "ऐसी कोई बात नहीं" सुरभि ने बीच में ही बात काटते हुए आकाश का हाथ अपने सर पर रख दिया और बोली "पापा आप को मेरी कसम है , सच सच सच बताओ आपको क्या परेशानी है"
आकाश ने कहना शुरू किया यह उन दिनों की बात है जब मैं बारहवीं कक्षा में पढ़ता था । हम कुट्टी के हंसी-खुशी जीवन व्यतीत कर रहे थे । मेरे माता-पिता और मैं बहुत झगड़े होते थे , लेकिन वह जल्द ही एक दूसरे को मना भी लेते थे ,मेरी बहन रोजी का ध्यान पढ़ाई में कम और मेकअप में ज्यादा रहता था । कुल मिलाकर लड़ते झगड़ते एक दूसरे को मनाते हमारा परिवार चल रहा था ।
एक शाम हम सब समुद्र के किनारे सैर पर आए हुए थे कि अचानक से खतरे का अलार्म बज गया और लोगों को समुद्र तट से अपने घरों को जाने का आर्डर हो गया । कारण यह था कि यहा बहुत ही भयंकर तूफान आने वाला था इसी कारण प्रशासन समुद्र तट पर चौकसी कर रहा था , हम सब लोग भी तूफान का नाम सुन घबरा गए और अपना सामान समेटकर जाने की तैयारी करने लगे । अभी हम लोग अपना सामान समेट ही रहे थे कि अचानक से समुद्र की बड़ी-बड़ी लहरें तट पर प्रवेश कर गई और सब कुछ बहा कर अपने साथ ले जाने लगी , धीरे-धीरे वह लहरें बढ़ने लगी और हमारे जैसे सैकड़ों परिवार उसकी चपेट में आ गए । मेरा पूरा परिवार उस समुद्री तूफान में बह गए , मैं भी समुद्री लहरों में चपेट में आने से अपनी सद्बुद्धि खो बैठा और मुझे कुछ याद ना रहा की लहरें हमें कहां ले जा रही हैं ।

क्रमश:

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986


"यात्री - द ट्रैवलर"


EPISODE : 2


अगले दिन मैंने अपने आप को समुद्र के किनारे रेत पर पड़ा पाया , मैं उठकर जब वहां का नजारा देखा तो ऐसा लग ही नहीं रहा था कि यहां समुद्र में तूफान आया है ।
मैं तेजी से अपने घर की ओर भागा भागते भागते मैं कुछ ही समय में अपने घर पहुंच गया घर पर सब कुछ सामान्य था , मैंने डोर बेल बजाई तो दरवाजा मेरी मम्मी ने खोला और खुलते ही उन्होंने मुझे डाटा आकाश इतने गंदे होकर कैसे घूम रहे हो । मैंने कुछ नहीं कहा और सीधे अपने कमरे में चला गया , लेकिन अपने कमरे की हालत देख बहुत अचरज में पड़ गया अमूमन में अपना सामान बहुत ही व्यवस्थित रखता था लेकिन मेरे कमरे में सब कुछ बिखरा पड़ा था , कपड़े क्या किताबे क्या सब कुछ देख मैं आश्चर्यचकित हो गया । मैं तुरंत बाहर अपनी मम्मी के पास आया और उनसे पूछा कि मेरे कमरे का इतना बुरा हाल किसने किया तो मम्मी ने हंसते हुए कहा "यह तुम पूछ रहे हो कभी अपना सामान उठाकर इधर से उधर रखा है , हमेशा ही तो ऐसे रहता है , तुम्हारा कमरा"
मम्मी के यह शब्द सुन मेरे पैरों तले जमीन निकल गई । मेरे साथ यह क्या हो रहा है ,मैं भागकर रोते रोजी के कमरे में गया तो रोज अपनी पढ़ाई में व्यस्त थी उसके कमरे में प्रवेश कर ऐसा लग रहा था कि किसी अच्छे पढ़ने वाले बच्चे के कमरे में किताबों की रेक लगी हुई थी ,नाइट लैंप टेबल चेयर आदि को देख अचरज में पड़ गया रोजी और पढ़ाई , मैंने रोजी से पूछा तुम मेरे कमरे में गई थी क्या ? रोजी ने कहा ...."मैं तो रात से लगातार पड़ रही हूं , मुझे एग्जाम की तैयारी करनी है" मैं क्यों जाऊंगी ? रोजी के व्यवहार को देख मुझे एक और झटका लगा , यह क्या हो गया ? जो लड़की सारा दिन मेकअप करती रहती थी , वह अचानक से कैसे बदल
गई ।
लेकिन मैं चुप रहा और अपने कमरे में आकर सो गया । सुबह सुबह उठ मैं यह देख कर मुझे और भी ताज्जुब हुआ कि मम्मी पापा जो सुबह से ही लड़ना शुरू कर देते थे वह बड़े प्यार से हंस हंस कर बातें कर रहे थे । नाश्ते की टेबलपर पापा ने मुझसे पूछा आकाश तुम तो 10 दिन के स्कूल टूर पर गए थे इतनी जल्दी कैसे आ गए । मैं चुप रहा और कुछ नहीं बोला पापा ने आगे कहा चलो कोई बात नहीं अब अपने रूम मे जाकर पढ़ाई करो । मैं अपने रूम में आकर लेट गया और सोचने लगा यह सब मेरे साथ क्या हो रहा है पापा स्कूल टूर की बात क्यों कर रहे हैं और सोचते-सोचते मेरी आंख लग गई । मैं जब उठा तो मेरे साथ वही सब हैरान करने वाली बातें हो रही थी , सभी के स्वभाव में इतना परिवर्तन मेरे लिए बहुत परेशान करने वाला था , मैंने सोचा सभी लोगों एक साथ बदल नहीं सकते शायद मुझे ही कुछ हुआ है । मैं चुपके से एक मनोचिकित्सक के पास पहुंचा और उसे बताया कि मुझे सभी के स्वभाव में परिवर्तन नजर क्यों आ रहा है ,मनोचिकित्सक ने कुछ जरूरी जांच कर मुझे बताया कि तुम्हें कुछ नहीं हुआ है थोड़ा आराम करो सब ठीक हो जाएगा ।
इसी तरह हैरानी भरे करीब करीब 10 दिन बीत गए 1 दिन सुबह अचानक डोर बेल बजी तो पापा ने मुझ को कहा देखो आकाश कौन है , मैंने जैसे ही दरवाजा खोला तो सामने क्या देखता हूं कि हूबहू मेरी तरह एक लड़का दरवाजे के सामने खड़ा है । ऐसा लग रहा था जैसे मैं ही नहीं शीशे के सामने खड़ा हो गया हूं , वो भी मुझे देखकर ऐसे ही भौचक्का रह गया जैसे कि मैं , परिवार के सभी लोग भी दरवाजे पर आ चुके थे और वह हम दोनों को हैरानी से देख रहे थे । तभी चुप्पी तोड़ते हुए दरवाजे पर खड़े लड़के ने मेरे पापा से पूछा पापा यह कौन है , पापा मम्मी को कुछ कहते नहीं बन रहा था । उन्होंने हिम्मत करके उस लड़के से पूछा...... तुम कौन हो ? तो उस लड़के ने बताया उसका नाम आकाश है और वह स्कूल टूर पर गया था आज वह टूर से वापस आया है । टूर की बात सुन पापा मम्मी रोजी समझ मे सारा माजरा आ गया कि दरवाजे पर खड़ा लड़का ही असली आकाश है , अब तो उन सब लोगों ने मुझे कस कर पकड़ लिया कि यह कोई बहरूपिया है । लेकिन मैंने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की , कि मैं भी आकाश हूं और आपका बेटा हूं । मैंने उन्हें अपने साथ घटी सारी घटनाएं विस्तार से बताई कि किस प्रकार मैं अपने परिवार के साथ समुद्र तट पर गया और तूफान की चपेट मे आकर मेरा पूरा परिवार बह गया जब मुझे होश आया तो मैं सीधे घर आ गया और मुझे यहां सब कुछ बदला बदला नजर आया । जैसे रोजी का व्यवहार आपका व्यवहार ,मनोचिकित्सक को भी दिखाया मेरी बातें सुन मम्मी पापा और रोजी को यकीन आ गया क्योंकि उन्होंने भी मेरे साथ पिछले 10 दिनों में यह सब महसूस किया था ।
लेकिन उनके पुत्र आकाश को मेरी बात पर यकीन ना था और वह मुझे पुलिस के हवाले करने पर आमादा था । लेकिन मम्मी पापा ने उसे रोक दिया और कहा अगर इसने चोरी करनी होती तो अब तक कर ली होती और 10 दिनों में यह कभी भी चोरी कर सकता
था ।
रोजी ने अपने मम्मी पापा व भाई आकाश की बात बीच में काटते हुए कहा यदि आप आज्ञा दे तो मैं कुछ कहू ।सभी को रोजी की विद्वता पर यकीन था क्योंकि नई-नई चीजें वैज्ञानिक जानकारी का भंडार थी रोजी । रोजी ने कहा "मैं जो बातें कहने जा रही हूं इसकी मेरे पास कोई प्रमाण तो नहीं लेकिन यह विज्ञान में एक थ्योरी भी बताई जाती है , जिसे सुन शायद आपको यकीन ना हो" सभी ने रोजी से कहा हमें तुम पर पूरा यकीन है तुम निसंकोच होकर बताओ रोजी ने बताया ...... विज्ञान में एक समानांतर दुनिया की परिकल्पना भी है जिसमे हमारी दुनिया की तरह ही एक और दुनिया भी है जिसमें सभी कुछ एक समान है , व्यक्ति , घर सामान सब कुछ , इस तरह एक दुनिया से दूसरी दुनिया में प्रवेश करने को ब्लैक होल हैं , जिससे व्यक्ति एक दुनिया से दूसरी दुनिया में जा सकता है ।
यह व्यक्ति ट्रैवलर कहलाते हैं, रोजी आगे कहती है कि मुझे यह पूरा अंदेशा है कि आकाश भी एक ट्रैवलर है जो कि गलती से हमारी दुनिया में आ गया हैं । रोजी के मां-बाप उससे पूछते हैं कि ट्रैवलर किस तरह से वापसी अपनी दुनिया में जा सकते हैं , इस बारे में रोजी को स्पष्ट जानकारी नहीं थी । मैं एक तरफ बैठा नीचे मुँह कर रो रहा था , तभी आकाश के पापा मेरे पास आए और उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा वह दुनिया ना सही ,यह दुनिया ही सही , तुम यहां हमारे बेटे बन कर रहो हम सब से कह देंगे कि यह हमारा जुड़वा बेटा है और कहीं बाहर चला गया था । उसके बाद से मै इसी परिवार के साथ घरेलू सदस्य के रूप में रह रहा हूं और आकाश शांत हो गया ।
सुरभि ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा पापा आप की यह दुनिया भी अपनी है हम भी आपके अपने हैं अब आज के बाद आप अपने आपको ट्रैवलर नहीं समझेंगे , आकाश की सुरभि को गले लगा लिया और दोनों घर की ओर चल दिए ।


यह कहानी विज्ञान की एक प्रबल परिकल्पना समानांतर दुनिया से प्रेरित है कुछ लोगों को का ऐसा मानना है कि समानांतर दुनिया होती है और ट्रैवलर इस दुनिया से दूसरी दुनिया में भ्रमण करते रहते हैं व कुछ वापस आ जाते हैं तथा कुछ आकाश की तरह यहीं के होकर रह जाते हैं ।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986

Monday, 26 July 2021

प्रायश्चित | prayshchit


कहानी  : 


                           "प्रायश्चित"

                                 

EPISODE  : 2


असल में रैगिंग भी हॉस्टल में कई चरणों में होती थी , शुरू में तो सिर्फ परिचय आदि के साथ मजाक होता था । परंतु धीरे-धीरे यह काफी खतरनाक स्तर तक पहुंच जाती थी । इसी कारण से बच्चे हॉस्टल में आने से डरते थे ,लेकिन पढ़ाई तो करनी ही थी और हॉस्टल में होने वाले बच्चे इस दौर से गुजरते ही थे । यह हॉस्टल के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुकी थी । विनय ने सभी बच्चों को एकत्र किया और दीपू की रैगिंग आज से शुरू करने का प्लान बनाया गया ।  रात्रि 8:00 बजे भोजन आदि करने के पश्चात सभी सीनियर्स ने दीपू को अपने कमरे में बुला लिया । रैगिंग के प्रथम चरण में राजकुमार की ड्यूटी लगाई गई  ,कि वह दीपू को बहुत डरावनी कहानी  सुनाएगा । हॉस्टल  के बारे में बताएगा कि यहां भूत रहते हैं और यह हॉस्टल कब्रिस्तान में बना हुआ है आदि ।दीपू ने कमरे में प्रवेश किया और राजकुमार दीपू के करीब आकर बैठ गया पहले दीपू से उसके परिवार के विषय में पूछा गया । उसके बाद विनय भी वहीं आ गया और राजकुमार से कोई किस्सा सुनाने की जिद करने लगा । राजकुमार ने कहना शुरू किया की जिस कमरे में दीपू रहता है और उस अलमारी में जिसमें दीपू का सामान रखा है ,अब से करीब 5 वर्ष पूर्व एक लड़का रहता था  , उसका नाम संतोष था । एक दिन अचानक वह अपनी चारपाई पर मृत पाया गया और उसकी आत्मा आज भी हॉस्टल में घूमती रहती है । वह अपनी अलमारी  बार-बार खोल कर देखता भी है और चारपाई को भी उठा लेता है यह सुन दीपू के रोंगटे खड़े हो गए । तभी वॉर्डन साहब रात्रि की ड्यूटी पर राउंड लगाने आ गए ,  वार्डन  साहब को देख सभी बच्चे भाग कर अपने अपने कमरों में चले गए । 

दीपू अंदर ही अंदर बहुत डर गया था,  पूरी रात उसे नींद नहीं आई और सोच रहा था कि कहीं संतोष की आत्मा उसके पास ना आ जाये ।अगली सुबह कॉलेज जाते वक्त और वहां से वापसी पर दीपू ने हॉस्टल के कई बच्चों से इस बारे में पूछा की यह बात सच है ,तो सभी ने हामी भर दी क्योंकि विनय ने सब को पहले से ही धमका कर रखा हुआ था । विनय ने सभी से कह रखा था , कि दीपू को कोई सच नहीं बताएगा और दीपू की रैगिंग पूरे सप्ताह भर चलेगी ।  संतोष की आत्मा की बात सुन दीपू बुरी तरह घबरा गया था । कुछ दिनों तक विनय अपने मित्रों द्वारा दीपू को इसी तरह रात्रि में अपने कमरे में बुलाकर डरावनी कहानियां सुनाकर परेशान करता रहा , दीपू ने खाना-पीना तक छोड़ दिया था ।एक  दिन तो विनय ने दीपू से कहा कि यह हॉस्टल कब्रिस्तान में बना हुआ है और बहुत सी आत्माएं यहां पर घूमती ही रहते हैं कभी-कभी तो वह किसी बच्चे के अंदर भी प्रवेश कर जाती हैं । दीपू और भी परेशान हो गया लेकिन नया होने की वजह से वह अपने दिल का हाल किसी से कह भी नहीं सकता था ,अतः वह मानसिक रूप से बहुत परेशान रहने लगा । शनिवार का दिन था  शाम को सब स्वतंत्र होते थे कोई स्टडी टाइम नहीं था , शाम से रात तक सब बच्चे फ्री होकर एक दूसरे के कमरे में आया जाया करते थे । विनय ने अपने सब मित्रों को बुलाया और दीपू के रैगिंग का आज अंतिम चरण था और उस को तगड़ा झटका देने का फैसला किया गया । उन्होंने प्लान बनाया कि रात्रि 12:00 बजे के बाद जब सब बच्चे सो जाएंगे तब हम सब मिलकर दीपू की चारपाई को उठाकर फील्ड के बीच में रख देंगे । रात्रि जब दीपू गहरी नींद में सो गया तो विनय ने अपने साथियों के साथ मिलकर दीपू की चारपाई को उठा मैदान के बीच में रख दिया और राजकुमार ने एक भयानक सा मुखौटा लगाए उसकी चारपाई की एक तरफ बैठ गया । दीपू को जब थोड़ी हलचल महसूस हुई तो उसकी आंख खुल गई अपनी चारपाई मैदान में देख दीपू की चीख निकल गई जैसे ही उसने अपने समीप बैठे मुखोटे युक्त राजकुमार को देखा तो वह डर के मारे बेहोश हो गया।


क्रमश : 


(स्वरचित)


विवेक आहूजा

Saturday, 24 July 2021

प्रायश्चित | prayshchit


 

#कहानी  : 


                           "प्रायश्चित"

 

EPISODE : 1


आज हॉस्टल का पहला दिन था और बच्चे धीरे-धीरे अपनी गर्मियों की छुट्टी खत्म कर वापस हॉस्टल में आ रहे थे । #कक्षाएं भी आरंभ होने वाली थी अमूमन कॉलेज की कक्षा शुरू होने से दो-तीन दिन पहले ही हॉस्टल में बच्चे आने शुरू हो जाते हैं , पुराने बच्चे जो पहले से हॉस्टल में रह रहे होते हैं ,उन्हें तो सब कुछ पहले से पता होता है ।  परंतु जो बच्चे नए आते हैं उन्हें हॉस्टल के तौर तरीके सीखने में कुछ वक्त लग जाता है फ्रांसिस कॉलेज जो शहर का जाना माना इंटर #कॉलेज है के सामने बॉयज होम के नाम से मिशनरी का हॉस्टल बना हुआ है ।  यह हॉस्टल आजादी के पूर्व से ही मिशनरी द्वारा संचालित है इसे मिशनरी के लोग ही चलाते हैं । रूल रेगुलेशन यहां के बहुत  सुव्यवस्थित रुप से संचालित होने के कारण प्रतिवर्ष यहां आने वाले बच्चों की लाइन लगी रहती है । मिशनरी का होने के कारण कोई सिफारिश भी यहां काम नहीं आती अपनी पढ़ाई के आधार पर ही बच्चे यहां पर प्रवेश पाते हैं ।गर्मी की छुट्टियों के बाद धीरे धीरे बच्चे हॉस्टल में आने लगे और वार्डन द्वारा एडमिशन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अपने सामान को हॉस्टल में सेट करने लगे 

 हॉस्टल में करीब 15 /16 कमरे और तीन बड़े-बड़े हॉल हैं । कमरों में 6 बच्चों के रहने की व्यवस्था है प्रत्येक कमरे में 6 अलमारी व छः चारपाई होती है , बड़े हॉल में 12 से 15 बच्चों के रहने की व्यवस्था है इसमें करीब 15 अलमारी है वह 15 ही चारपाई होती हैं । लेट्रिन बाथरूम के लिए एक अलग से बिल्डिंग बनी हुई है ,जोकि कॉमन है । पुराने बच्चे जो पहले से कई वर्षों से हॉस्टल में रह रहे हैं उन्हें अच्छी तरह से पता है की हॉस्टल में जल्दी आने का अर्थ बढ़िया कमरे में प्रवेश होता है । हॉस्टल में सीनियर और जूनियर विंग अलग-अलग है । छोटे बच्चे (छठी से आठवीं तक) को बड़े हॉल में प्रवेश मिलता है । जबकि नवी से बारहवीं तक के बड़े बच्चों को कमरों में ठहराया जाता है । सारी प्रक्रिया वार्डन साहब के द्वारा की जाती है । इस तरह करीब डेढ़ सौ बच्चे हॉस्टल में हो जाते हैं ।सारे बच्चों के आने के पश्चात सीनियर हेड बॉय जोकि कक्षा 9 से कक्षा 12 के बीच व एक जूनियर हेड बॉय जो करीब कक्षा 6 से 8 के बीच का होता है, का चयन होता है । इसके अतिरिक्त खाने की व्यवस्था देखने के लिए एक किचन हेड बनाने की भी हॉस्टल में व्यवस्था होती है ,जो कक्षा 9 से कक्षा 12 के बीच का विद्यार्थी को ही चयनित किया जाता है । हॉस्टल का रूटीन इसी प्रकार चलता है । गर्मियों में सुबह 6:00 बजे वार्डन साहब और स्कूल के गेट पर एक घंटा गंगा रहता है, उसे बजा देते हैं । यह सुबह उठने का संकेत है और 7:00 बजे तक सभी विद्यार्थियों को स्कूल के लिए तैयार होकर कैंटीन पहुंचना होता है । वहां 7:00 से 8:00 के बीच सुबह का नाश्ता करके 8:00 बजे तक कॉलेज पहुंच जाते हैं । कॉलेज से 2:30 बजे छुट्टी के पश्चात वापस हॉस्टल आकर 3:00 से 4:00 के बीच में दोपहर के खाने का समय होता है । शाम 4:00 से 6:00 रेस्ट का टाइम है उसके पश्चात शाम को 6:00 से 8:00 के बीच में स्टडी रूम में पढ़ाई का नियम निर्धारित है , 8:00 बजे रात्रि भोजन के पश्चात बच्चे अपने कमरों में आ जाते हैं । इस प्रकार हॉस्टल की व्यवस्था पूरे वर्ष चलती है । सर्दियों में भी करीब-करीब इसी तरह का नियम रहता है । 

 विनय जोकि दसवीं कक्षा में अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण हुआ था, 11वीं में प्रवेश के लिए हॉस्टल में जल्दी आ गया वह करीब तीन-चार वर्षों से हॉस्टल में रह रहा था ,अतः हॉस्टल की सारी व्यवस्था उसे अच्छे से पता थी । अब वह हॉस्टल के सीनियर छात्र है , और उसकी गिनती सीनियर छात्रों में होती है । ग्यारहवीं में बायो ग्रुप लेकर वह डॉक्टरी के पेशे में जाना चाहता है , अतः स्कूल पहुंचकर उसने अपने अध्यापकों से बायो में प्रवेश संबंधी सारी प्रक्रिया की जानकारी ली  , बायो ग्रुप में #एडमिशन के पश्चात वह निश्चिंत हो हॉस्टल आ गया । अभी हॉस्टल खुले दो या तीन  दिन ही हुए थे हॉस्टल में कम ही बच्चे आए थे,  धीरे-धीरे साथ 8 दिन बीतने पर हॉस्टल फुल हो गया ।  छोटी-बड़ी सभी कक्षाओं के बच्चे हॉस्टल में आ चुके थे विनय क्योंकि सीनियर विंग में था उसे इस वर्ष सीनियर हेडब्वॉय बना दिया गया , हॉस्टल में उसका रुतबा था,  छोटी कक्षाओं के बच्चे उसे सुबह गुड मॉर्निंग और रात्रि गुड नाइट करना नहीं भूलते ,क्योंकि उस समय नए-नए बच्चे जो हॉस्टल में प्रवेश करते थे उनकी रैगिंग भी जमकर होती थी । हॉस्टल प्रशासन भी एक दायरे में रहकर नए बच्चों से हंसी मजाक की इजाजत दे देता था ।

 कॉलेज में हॉस्टल के बच्चों का रुतबा था अगर कोई बाहर का बच्चा हॉस्टल के बच्चे से झगड़ा कर ले , तो सभी हॉस्टल के #विद्यार्थी एकत्र होकर बाहर वाले बच्चे की धुनाई कर देते थे । यही कारण था कि बाहर के बच्चे हॉस्टल के बच्चों से दूर दूर ही रहा करते थे । 

एक दिन हॉस्टल में मैनेजर साहब और वार्डन साहब एक बच्चे को लेकर आए और उसका परिचय कराते हुए बोले "बच्चों यह #दीपू है और इसने कक्षा आठ में प्रवेश लिया है अब से यह तुम्हारे साथ हॉस्टल में ही रहेगा"  यह कहकर मैनेजर साहब दीपू को हॉस्टल में छोड़ कर चले गए । दीपू एक बहुत ही शर्मीला बच्चा था । पहली बार अपने घर से बाहर हॉस्टल में रहने आया था ,उसके पिताजी पोस्ट ऑफिस में कार्य करते थे । वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान था ।उसे बड़े हॉल में शिफ्ट कर दिया गया उसे एक अलमारी व एक चारपाई भी मिल गई । दीपू ने अपना सामान अलमारी में लगा लिया वह चारपाई पर बिस्तर बिछा कर सेट कर दिया । सीनियर बच्चों की विंग में विनय को जब पता चला कि आज एक नया लड़का हॉस्टल में आया है तो सभी सीनियर बच्चों को एकत्र कर दीपू की #रैगिंग का प्लान बनाया गया । 


क्रमश : 


(स्वरचित)


विवेक आहूजा 

बिलारी 

जिला मुरादाबाद 

@9410416986

Vivekahuja288@gmail.com


( अगला भाग कल )

Friday, 2 April 2021

Weight loss story

 कहानी :


"रेट वेट और क्वालिटी"

सुधा आज पहली बार दिल्ली अपनी छोटी बहन सुमन के घर आई थी । घर पर आते ही सुधा ने सुमन की क्लास लगानी शुरू कर दी , जैसे यह समान कहां से लाती है घर खर्च कैसे करती हो फिजूलखर्ची तो नहीं करती हो ।सीधी साधी सुमन अपनी बड़ी बहन सुधा से काफी छोटी थी और उसकी शादी को अभी 3 वर्ष ही हुए थे । सुमन, सुधा की सारी बातों को बड़े गौर से सुन रही थी व बराबर उनके सवालों के जवाब दे रही थी । बातों बातों में सामान की खरीदारी का जिक्र चल पड़ा , सुधा ने सुमन से पूछा तू घर पर किराने और सब्जी कहां से लाती है , तो सुमन ने कहा दीदी मैं यही अपार्टमेंट के नीचे मार्केट से सामान ले लेती हूँ । सुधा ने पूछा जरा बता आलू कितने रुपए किलो है और प्याज कितने रुपए किलो तो सुमन ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया यहां आलू ₹50 किलो और प्याज ₹100 किलो है । सुधा ने रेट सुनते ही सर पकड़ लिया और बोली हे राम ! हमारे यहां तो आलू ₹30 और प्याज ₹60 किलो है । इतनी महंगाई ......डांटते हुए सुधा ने सुमन से कहा ....तुझे कुछ नहीं आता कल मैं सामान लेने खुद जाऊंगी , फिर देखती हूं कैसे महंगा मिलता
है ........
अगले दिन सुधा थैला उठाकर खुद ही सुमन के घर के लिए सामान लेने चली गई , सुधा ने अपार्टमेंट के नीचे मार्केट से सामान ना लेकर पास की एक छोटी सी बस्ती में वहां से सामान खरीदा , तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि सारा सामान उसके गांव के रेट के बराबर ही मिल रहा था । उसने फटाफट सामान खरीदा और तुरंत घर आकर सुमन से शेखी मारते हुए बोली..... "देखो बहना .....मैं शहर में भी गांव के बराबर रेट पर समान ले आई हूं" सुमन को भी बड़ा आश्चर्य हुआ , कुछ देर पश्चात जब सुमन ने अपने घरेलू बाट से सभी सब्जियों का तोल करा तो पता चला सभी सामान 250 से 300 ग्राम प्रति किलो कम है यह देख सुधा भी काफी शर्मिंदा हुई कि बस्ती के दुकानदार ने उसे ठग लिया है और उसे पूरा माल नहीं दिया ।
सुधा व सुमन आपस में समान की खरीदारी को लेकर चर्चा करने लगी कि अपार्टमेंट के नीचे बाजार में सामान का वेट और क्वालिटी तो बहुत अच्छी है परंतु रेट बहुत ज्यादा और बस्ती में रेट और क्वालिटी तो अच्छा है परंतु वेट में गड़बड़ी है । अब यदि किसी व्यक्ति को रेट , वेट और क्वालिटी तीनों ही सही चाहिए तो कहां जाए काफी जद्दोजहद के बाद दोनों ने यह फैसला किया की बड़ी मंडी में शायद यह तीनों चीजें ठीक से मिल जाए । यही सोच के साथ अगले दिन सुधा और सुमन दोनों बड़ी मंडी पहुंच गई और वहां पहुंच कर उन्होंने सभी चीजों के रेट ट्राई करें तो उन्हें यह देख बड़ी प्रसन्नता हुई कि यहां पर रेट , वेट और क्वालिटी तीनों ही शानदार है यह सोच सुमन ने थैला निकाला और दुकानदार को देते हुए बोली....... सारी सब्जी 1/ 1 किलो दे दो सुमन की बात सुनकर दुकानदार उनका मुंह देखने लगा और बोला "बहन जी क्यों मजाक करती हो , यहां आपको रेट ,वेट ,क्वालिटी तीनों तभी मिलेंगे जब आप सभी समान 5/ 5 किलो खरीदोगे"
यह सुन सुधा और सुमन दुकानदार पर बिगड़ गई । आसपास के दुकानदार भी वहां इकट्ठा हो गए , उन्होंने सुमन और सुधा को समझाया कि यहां आपको अच्छा सामान कम कीमत पर तभी मिलेगा जब आप कवॅन्टिटी में खरीदेंगे । यह सुन दोनों ने कान पकड़े और वापस अपने अपार्टमेंट आ गई , सुमन को अच्छे से समझ आ चुका था कि रेट , वेट और क्वालिटी तीनो आपको तभी मिल सकते हैं जब आप क्वांटिटी में सामान लेते हैं ।? यही सोचते सोचते वह अपार्टमेंट के नीचे दुकान से सामान लेने चली गई ।

( मासूम उपभोक्ताओं को समर्पित )

स्वरचित

विवेक आहूजा
बिलारी 

Thursday, 14 January 2021

होलीडे ,HOLIDAY

 बाल कथा

"हॉलीडे"

EPISODE : 1

सुनील और विनय कि आज हाई स्कूल की परीक्षा का अंतिम दिन था , परीक्षा के पश्चात सभी सहपाठी एक दूसरे से गले मिलकर बधाई दे रहे थे । सुनील गांव का रहने वाला युवक था , अतः विनय से बोला "अब हमारी मुलाकात तीन-चार माह के पश्चात ही होगी , क्योंकि मुझे अपने परिवार के पास गांव जाना है, उनसे मिले भी काफी समय हो गया हैं" विनय ने सुनील से कहा "कुछ दिन शहर में रुक जाते तो हम लोग साथ-साथ घूम सकते थे" लेकिन सुनील ने अपनी मजबूरी का हवाला देते हुए विनय से विदा ली । सुनील में विनय को गांव आने का आमंत्रण भी दिया विनय ने कहा "मैं तुम्हारे पास इन गर्मियों की छुट्टी में अवश्य मिलने आऊंगा"
हाई स्कूल की परीक्षा को करीब एक माह बीत चुका था और रिजल्ट आने में अभी 15 दिन का समय बाकी था । विनय का अपने दोस्तों के बिना शहर में मन नहीं लग रहा था , विनय ने अपने दोस्त सुनील से बात करने की सोची और उसे फोन मिला दिया फोन पर बात कर सुनील भी बहुत प्रसन्न हुआ और विनय से गांव आने की जिद करने लगा । विनय ने थोड़ा संकोच के साथ माता-पिता की इजाजत के बाद ही गांव आने का वादा किया । अपने माता-पिता से गांव जाने की इजाजत मिलने पर विनय गांव की ओर रवाना हो गया , सुनील बेसब्री से गांव के बस अड्डे पर ही विनय का इंतजार कर रहा था, बस के गांव में प्रवेश करते ही विनय के शरीर में अजीब सा रोमांच पैदा हो गया क्योंकि आज से पहले वह किसी गांव में नहीं गया था । बस अड्डे पर सुनील ने बड़ी गर्मजोशी के साथ विनय का स्वागत किया , उसके साथ गांव के मित्र व उसके माता-पिता भी थे । विनय अपना इस तरह का स्वागत देख बहुत ही भावुक हो गया और सुनील को अपने गले से लगा लिया व बोला "मैंने ठीक ही सुना था , गांव के लोग बहुत साफ मन वाले व दिलदार होते हैं" एक दिन आराम करने के पश्चात अगली सुबह सुनील , विनय को अपने खेत आदि दिखाने ले गया और खेती-बाड़ी के सारे तौर तरीके उसे समझाएं , इसके अलावा वे अपने गांव के प्रधान जी से भी विनय की मुलाकात करवाने विनय को ले गया । जिज्ञासु स्वभाव के कारण विनय प्रधान जी से गांव की सारी कार्यप्रणाली को समझने का प्रयास करता रहा कि गांव में किस प्रकार से सरकारी कार्य को अंजाम दिया जाता है । ग्राम प्रधान जी बड़े प्यार से विनय को सब समझाते रहे, विनय उनसे मिलकर बहुत खुश हुआ, सारा दिन गाव में घुमने के पश्चात विनय व सुनील वापस सुनील के घर आ जाते हैं । विनय , सुनील से कहता है "यार तुम्हारा गांव तो बहुत ही छोटा है, हम एक दिन में ही पूरा गांव घूम लिए" सुनील पलटकर जवाब देता है, अभी तुमने हमारा गांव देखा ही कहां है , हमारे गांव के साथ हजारों बीघा का जंगल है , जिसमें सुंदर-सुंदर पेड़ पौधे हैं ,पहाड़ झरने हैं ,बहुत से प्राकृतिक दृश्य हैं यह सुन विनय की उत्सुकता बढ़ जाती है और वह सुनील के साथ अगली सुबह जंगल घूमने का प्रोग्राम फाइनल कर देता है ।
अगली सुबह उठकर विनय व सुनील दोनों जंगल की ओर घूमने के लिए तैयार होने लगे , जंगल का प्रोग्राम सुन घरवालों ने उन्हें समझाया कि बेटा जल्दी वापस आ जाना , जंगल में बहुत से जंगली जानवर है और वह बहुत घना भी है । दोनों जंगल में ज्यादा दूर ना जाने का वादा कर जंगल घुमने चले जाते हैं । घूमते घूमते विनय व सुनील दोनों को बहुत तेज भूख लगने लगी उन्होंने पेड़ों से कुछ फल तोड़े व खाने लगे , फल खाते ही पेड़ के पास उनकी आंख लग गई और वह गहरी नींद में सो गए , अचानक से आहट सुन विनय की आंख खुल गई , उसने सुनील को जगाया और कहा कि शायद कोई जंगली जानवर हमारे आस पास ही है , दोनों पेड़ के पीछे छुप गए और देखने लगे कि आखिर यह आहट किसकी है । वहां का नजारा देख दोनों के रोंगटे खड़े हो गए , सामने शेर था , शेर को देख दोनों को पसीना आ गया और उन्होंने अंधाधुंध भागना शुरू कर दिया, शेर भी उनके पीछे पीछे भाग रहा था ।
सुनील और विनय दोनों अलग-अलग दिशाओं में भागने लगे ,इत्तेफाक यह रहा कि सुनील तो शेर से बचकर अलग दिशा में निकल गया , लेकिन विनय के पीछे शेर लग गया । विनय बहुत तेजी से जंगल में इधर-उधर बचने के लिए भागने लगा , तभी अचानक से विनय का पैर फिसला और वह एक तालाब में जा गिरा । तलाब में गिरकर विनय तलाब की गहराइयों में चला गया काफी हाथ पैर मारने के पश्चात और काफी प्रयासों के बाद विनय तालाब के ऊपर आने में सफल रहा और जैसे ही विनय तालाब के ऊपर आता है , तो बाहर का नजारा देख उसे चक्कर आ जाता है । तालाब के बाहर आकर विनय को सब कुछ बदला-बदला सा नजर आता है , जैसे कि कहीं और किसी जगह में वह आ गया हूं ।

क्रमशः

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com

बाल कथा :

"हॉलीडे"

EPISODE : 2

विनय समझ नहीं पा रहा था कि आखिर उसके साथ यह क्या हुआ और वह जंगल में इधर-उधर सुनील को आवाज देकर ढूंढने लगता है । लेकिन उसे बड़ा आश्चर्य होता है कि यह वह जंगल है ही नहीं जहां वह सुनील के साथ आया था , काफी खोजबीन के बाद जब उसे सुनील नहीं मिलता तो वह थक कर पेड़ के नीचे बैठ जाता है । तभी अचानक से कुछ आदिवासी लोग विनय को चारों ओर से घेर लेते हैं अपने आप को आदिवासियों के बीच घिरा देख बुरी तरह घबरा जाता है , परंतु ना तो वह उनकी भाषा समझ पा रहा था और ना ही आदिवासी उसकी भाषा को समझ पा रहे थे , आखिरकार आदिवासियों ने विनय को हिरासत में ले लिया ।
विनय को हिरासत में लिए आदिवासियों को दो-तीन दिन बीत चुके थे । विनय अब समझ गया था कि वह उस तालाब में डूब कर किसी दूसरी दुनिया में आ गया है , यह दुनिया बहुत पिछड़ी थी लोग केले के पत्तों को कपड़ों की जगह इस्तेमाल कर रहे थे , पैदल चलते थे कुल मिलाकर वह आज की दुनिया से काफी पीछे थे , दो-तीन दिनों में ही विनय उनके बीच उनकी टूटी फूटी भाषा समझ गया था और उसने उन आदिवासियों को उनकी टूटी फूटी भाषा में बात कर कर उनके राजा से मिलने की मांग की । अगली सुबह आदिवासियों का राजा विनय से मिलने कारागार आता है और उससे पूछता है कि वह कहां से आया है, तो विनय उसे सारा वृत्तांत बताता है कि कैसे वह पृथ्वी से अनजाने में इस ग्रह पर आ गया है । वह राजा को यह भी बताता है कि आदिवासियों के ग्रह पर ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिनका वह उपयोग कर सकते हैं और अपने आप को काफी उन्नति की ओर ले जा सकते हैं ।
राजा विनय से मिलकर बहुत प्रभावित होता है और उसे इस शर्त पर हिरासत से आजाद करने को कहता है कि वह उसके ग्रह के आदिवासियों को नई-नई तकनीकों से रूबरू करवाएगा और उन्हें नई नई चीजें सिखाएगा ताकि वह भी पृथ्वी वासियों की तरह और तरक्की कर सकें , विनय राजा की बात मान लेता है और हिरासत से आजाद होकर आदिवासियों को नई-नई तकनीकी सिखाता है , जैसे कि पेड़ पौधों के बारे में कौन से पौधे खाने योग्य हैं व किस पेड़ के फल खाने योग्य हैं । हिंदी व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान क्या होता है यह सारी बातें उनको समझाने की कोशिश करता है । कई दिनों तक आदिवासियों को तकनीकी ज्ञान देने के पश्चात विनय उनके राजा से पृथ्वी पर जाने की इजाजत मांगता है । लेकिन राजा उसे पृथ्वी पर जाने की इजाजत नहीं देता , क्योंकि वहां के लोगों का मानना था कि यदि हमने अपने को वापस पृथ्वी पर भेज दिया तो हमें नई नई तकनीकी कौन से सिखाएगा यह देख विनय बहुत परेशान हो जाता है और सोचने लगता है कि अब उसे पूरी जिंदगी इसी ग्रह पर बितानी पड़ेगी ।
एक दिन घूमते घूमते विनय उसी तालाब के पास पहुंच जाता है जहां से वह इस ग्रह पर आया था , विनय उस जगह को पहचान लेता है। विनय मन ही मन यह प्लान बनाता है कि वह किस प्रकार से इस ग्रह से पृथ्वी पर जाएगा । अपने इस प्लान के तहत वह राजा से मिलता है और उससे कहता है कि वह उसे तैरना सिखाएगा यह सुन राजा बहुत प्रसन्न होता है और उससे अगले दिन निर्धारित समय पर विनय राजा को उसी तालाब के पास ले जाता है व तैरने के बहाने उसमें छलांग लगा देता है ।
तभी विनय को एहसास होता है कि कोई उसे झकझोर रहा है और जोर जोर से कह रहा है "विनय बेटा..... उठो आज तुम्हें सुनील के साथ जंगल घूमने नहीं जाना है क्या ? और विनय की आंख खुल जाती है । वह अपनी आंखों को बार-बार मिलता है और मन ही मन सोचता है कि यह क्या था ? अभी तो मैं दूसरे ग्रह पर था और यहां कैसे आ गया ? फिर उसे ख्याल आता है , शायद मैं कोई सपना देख रहा था .......वाकई बहुत ही रोमांचक था यह सब..........

(समाप्त)

स्वरचित

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

Sunday, 15 November 2020

इमरजेंसी , आपातकाल , The Emergency

  इमरजेंसी


डॉक्टर साहब की दुकान पर शाम को कोई मरीज नहीं था और वह खाली बैठे हुए थे । तभी उनके कुछ मित्र उनके पास आकर बैठ गए और राजनीतिक चर्चा शुरू होने लगी बातों बातों में इमरजेंसी की बात होने लगी कुछ लोग इसके पक्ष में तो कुछ लोग विपक्ष में चर्चा करने लगे । जब काफी देर तक कोई निष्कर्ष ना निकला तो डॉक्टर साहब ने उन्हें बीच में रोकते हुए कहा "मैं आपको इमरजेंसी से संबंधित एक घटना के बारे में बताता हूं इसे सुनने के पश्चात आप स्वयं निर्णय लें कि क्या सही है और क्या गलत" डॉक्टर साइओहब ने कहना शुरू किया .....
यह बात सन 1975 की है जब इमरजेंसी की घोषणा हो चुकी थी । सभी दफ्तर सुव्यवस्थित रुप से चल रहे थे ,कांग्रेसी अपने विरोधियों को ढूंढ ढूंढ कर जेलों में डलवा रहे थे ।उसी दौरान एक गांव में रामलाल नाम का युवक जिसने अभी हाल ही में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की थी आगे की पढ़ाई के लिए बरेली यूनिवर्सिटी आया हुआ था । वह बीए की डिग्री बरेली यूनिवर्सिटी से करना चाहता था । बरेली से मुरादाबाद वापसी के समय अपने मित्र के साथ वह रामपुर के बस स्टैंड पर उतर गया बस स्टैंड पर उसने कुछ लोगों की भीड़ देखी और वह भीड़ की ओर चल दिया । वहां जाकर उसने देखा की एक एंबुलेंस में कुछ लोगों को जबरदस्ती पकड़ कर ले जाया जा रहा है ।
इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता 2 सिपाही उसके पास आए और बोले "इस लड़के को भी ले चलो " यह सुन रामलाल बुरी तरह घबरा गया और अपना बचाव का भरसक प्रयास किया लेकिन सिपाहियों के आगे उसकी एक न चली और उन्होंने रामलाल को एक एंबुलेंस में डाल दिया । सारे रास्ते रामलाल एंबुलेंस के कर्मचारियों से पूछता रहा "भाई हमें कहां ले जा रहे हो और क्यों" मगर किसी ने रामलाल की बात का कोई उत्तर नहीं दिया । कुछ ही देर में एंबुलेंस सरकारी अस्पताल पहुंच गई वहां पहुंचकर सिपाहियों ने रामलाल को पकड़ा और ऑपरेशन थिएटर की तरफ ले गए । रामलाल की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है पूरा सरकारी अस्पताल पुलिस छावनी में बदला हुआ था। ऑपरेशन थिएटर पहुंचकर रामलाल ने रोते हुए डॉक्टर से पूछा "मुझे यहां क्यों लाया गया है" डॉक्टर ने कहा "हम एक मामूली सी जांच करेंगे उसके बाद तुम्हें घर भेज दिया जाएगा " रामलाल अभी भी कुछ नहीं समझ पा रहा था, कुछ समय पश्चात दो डॉक्टर आए और रामलाल को नशा सुघा कर उसके नाभि के नीचे कट लगाकर रामलाल का ऑपरेशन कर दिया ।
नशा कम होने पर जब रामलाल को होश आया तो वार्ड बॉय ने उसे बताया " तेरा बच्चे बदं का ऑपरेशन हो गया है " यह सुन रामलाल के पैरों तले जमीन निकल गई ।उसने रूआंसू होते हुए वार्ड बॉय को बताया कि " मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है " और जोर जोर से रोने लगा ।उसका रुदन सुन सारा स्टाफ इकट्ठा हो गया और सभी ने उसे समझाया कि अब कुछ नहीं हो सकता अगर विरोध करोगे तो जेल जाना पड़ेगा । यह सुन डर के मारे रामलाल चुपचाप वहां से अपने गांव आ गया गांव पहुंच कर उसने आपबीती पूरे परिवार को बताई ।
धीरे-धीरे यह बात उसके आस पड़ोस में भी पता लग गई । चूंकि राम लाल इंटर पास हो चुका था और इस उम्र में गांव देहात में लोग बच्चों की शादियां कर देते थे, अतः रामलाल के परिवार को भी यह उम्मीद थी कि अब उसके रिश्ते आने लगेंगे । लेकिन जब भी कोई लड़की वाला आता उसे कहीं ना कहीं से रामलाल के विषय में पता लग जाता की इसका बच्चे बंद का ऑपरेशन हो चुका है और यह नामर्द है । इस तरह कई रिश्ते आए और इन्हीं कारणों से टूट गए ।
करीब 19 माह के लंबे अंतराल के बाद इमरजेंसी खत्म हुई और लोगों ने राहत की सांस ली,
अब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार थी। रामलाल का परिवार डॉक्टर साहब से काफी परिचित था और अपना इलाज कराने अक्सर उनके पास आया करता था । उन्होंने डॉक्टर साहब को आपबीती बताई और उनसे कुछ मदद करने का आग्रह किया । डॉक्टर साहब के प्रयासों से रामलाल के परिवार को स्थानीय विधायक, सांसद व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री तक मिलवाया गया और रामलाल के परिवार ने अपनी व्यथा उन्हें सुनाई केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री एवं सांसद के प्रयासों से रामलाल का पुनः ऑपरेशन हो गया, जिसमें डॉक्टर ने बच्चे बंद की गांठ को खोल दिया।
अब राम लाल का परिवार काफी प्रसन्न था ।उन्हें यह उम्मीद थी की उनके ऊपर जो नामर्दी का धब्बा लगा है वह धुल गया है और शीघ्र ही रामलाल की शादी हो जाएगी। परंतु ऑपरेशन के काफी समय बाद तक शादी का कोई प्रस्ताव नहीं आया और जो भी प्रस्ताव आए वह लोग इस बात से संतुष्ट नहीं हुए की रामलाल की मर्दानगी वापस आ गई है गांव में लोगों ने यह अफवाह फैला दी कि रामलाल का कोई ऑपरेशन नहीं हुआ है यह झूठ बोलते हैं ।अब राम लाल अपना दुखड़ा लेकर डॉक्टर साहब के पास पहुंचा और और उन्हें सारी बात से अवगत कराया ।उसने कहा कि " मेरे घर कोई रिश्ता लेकर नहीं आ रहा है सभी को इस बात पर संदेह है कि मै पूर्णता स्वस्थ हो गया हू और बच्चा पैदा करने में सक्षम हूँ " अब उन्हें कैसे समझाएं कि मेरा ऑपरेशन हो चुका है और "मै पूरी तरह मर्द हूँ " उसकी बात सुन डॉक्टर साहब भी पशोपेश में पड़ गए और उन्होंने कहा कि मैं इसमें तुम्हारी कैसे मदद कर सकता हूं क्योंकि उस समय तक ऐसा कोई तरीका नहीं था जो यह साबित कर सके कि रामलाल बच्चा पैदा करने में सक्षम हैं ।
रामलाल अब 35 वर्ष का हो चुका था विवाह की सभी संभावनाएं करीब-करीब खत्म हो चुकी थी एक दिन अचानक वह घर से रात को कहीं चला गया पूरे परिवार ने उसे बहुत ढूंढा पर कोई नतीजा न निकला, रामलाल का कहीं कोई पता ना था। रामलाल को घर से गए करीब 6 माह का समय बीत चुका था ।परिवार को भी लगने लगा कि वह अब जीवित भी है कि नहीं ।तभी गांव का एक व्यक्ति भागा भागा उनके घर आया और उसने बताया कि करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक गांव में एक मंदिर है वह उसमें जो महात्मा है उसकी शक्ल रामलाल से बहुत मिलती है। पूरा परिवार भागा भागा उस मंदिर में पहुंचा तो उन्होंने देखा की रामलाल महात्मा बन चुका है। उन्होंने रामलाल को बहुत समझाया लेकिन रामलाल ने घर जाने से मना कर दिया और अपना पूरा जीवन मंदिर की सेवा में लगाने का फैसला उन्हें सुना दिया। परिवार के लोग यह सुन मायूस मायूस होकर घर वापस आ गए।
डॉक्टर साहब ने अपनी वाणी को विराम दिया और उनके मित्र भी चुपचाप उनके समीप बैठे रहे ।तभी डॉक्टर साहब का कंपाउंडर भागा भागा उनके पास आया और बोला "डाक्टर साहब मंदिर वाले महात्मा जी का निधन हो गया हैं " यह सुन डॉक्टर साहब तुरंत उठ कर महात्मा जी के अंतिम दर्शन को चल दिए
इमरजेंसी तो सरकार ने लगा दी लेकिन उसके परिणामों के बारे में नहीं सोचा ।इमरजेंसी में यदि पहला प्रेस की आजादी दूसरा फैमिली प्लानिंग तीसरा विपक्षी दलों के व्यक्तियों को जेल यह तीनों कृत्य ना किए गए होते तो वह समय भारत के लिए बहुत ही अनुशासन वाला था। लोग ऑफिसों में समय पर आते थे सभी काम सुव्यवस्थित चल रहा था। परंतु फैमिली प्लानिंग के चलते कस्बों में लगने वाली बाजारो में सालों तक प्रौण महिलाएं ही आती रही और पुरुष डर के मारे घरों और खेतों में दुबके रहे ।असल में फैमिली प्लानिंग का फैसला सरकार की मंशा को दर्शाता है सरकार की मंशा तो ठीक थी क्योंकि जनसंख्या पर नियंत्रण भी जरूरी था परंतु उसका तरीका बहुत गलत था। अतः इसका दुष्परिणाम भी देखने को मिला और रामलाल जैसे लोगों को यह दंश जीवन भर झेलना पड़ा ।


स्वरचित

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
Vivekahuja288@gmail.com
@9410416986




Sunday, 28 June 2020

वैसटन मैरी का मकबरा , western merry , मकबरा

 


यह उन दिनों की बात है जब देश के प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री थे और देश पर पाकिस्तान से युद्ध का खतरा मंडरा रहा था। क्योंकि हमारी सेना काफी मजबूत थी लेकिन शास्त्री जी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे। इसलिए उन्होंने सभी युवा वर्ग को एनसीसी की ट्रेनिंग लेना अनिवार्य कर दिया ।जगह-जगह मिलिट्री के अधिकारियों द्वारा एनसीसी की ट्रेनिंग दी जाने लगी इसी क्रम में नई दिल्ली स्थित विभिन्न कॉलेजों यूनिवर्सिटी आदि में भी एनसीसी ट्रेनिंग के लिए आग्रह किया गया। वहीं नई दिल्ली में एक मेडिकल कॉलेज में भी एनसीसी ट्रेनिंग के लिए वहां की मैनेजमेंट को एक पत्र आया अब एनसीसी की ट्रेनिंग के लिए कुछ छात्रों ने डॉ आहूजा व डॉ विश्वास के नेतृत्व में ट्रेनिंग लेने का मन बनाया। ट्रेनिंग से संबंधित सभी लिखित प्रक्रिया पूरी होने पर करीब 20/25 छात्रों को ट्रेनिंग के लिए शिमला के निकट डिक साई में ट्रेनिंग के लिए जाना था। निर्धारित तिथि पर सभी छात्र दिल्ली से कालका होते हुए ट्रेनिंग के लिए डिक्स आई के लिए रवाना हुए कालका जी से आगे धर्मपुर स्टेशन के पास करीब दो-तीन किलोमीटर अंदर घने जंगलों के बीच मिलिट्री ट्रेनिंग सेंटर बना हुआ था। वहां सभी को गाड़ियों द्वारा ट्रेनिंग हेतु पहुंचाया गया और चार्ज एंड अटैक की ट्रेनिंग दी गई ।इसके अतिरिक्त सभी छात्रों ने एनसीसी के बी सर्टिफिकेट की ट्रेनिंग भी वहां पूरी करी ।अंतिम दिन जब ट्रेनिंग की समाप्ति की घोषणा हुई तो मेडिकल के छात्रों ने ट्रेनिंग सेंटर के चौकीदार से पूछा कि भाई यहां कोई घूमने की जगह भी है ।चौकीदार ने अपनी पहाड़ी भाषा में बताया के शाब जी यहां पर कोई घूमने की जगह नहीं है बस एक मकबरा है जहां कोई आता जाता नहीं आप वहां जाकर क्या करोगे । मेडिकल के छात्रों ने उस मकबरे के बारे में चौकीदार से जानने की कोशिश की तो चौकीदार विफर गया और बोला वहां कोई नहीं जाता और आप भी ना जाए क्योंकि रात को वहां पर परी आती है । परी का नाम सुन मेडिकल के छात्रों में परी को देखने की उत्सुकता और बढ़ गई और उन लोगों ने मन ही मन विचार कर लिया कि अब तो मकबरे पर जरूर जाना है। डॉ आहूजा व डॉ विश्वास ने अपने घनिष्ठ मित्रों संग उसी दिन शाम को वहां जाने का प्रोग्राम बना लिया शुरू में तो करीब-करीब सभी छात्र वहां जाने को मान गए लेकिन जब जाने का नंबर आया तो 8 छात्र ही वहां जाने को तैयार हुए । सभी आठों छात्र अपने हाथों में टॉर्च लिए मकबरे की तरफ को बढ़ने लगे करीब एक डेढ़ किलोमीटर चलने के पश्चात एक लकड़ी की टाल पर वह लोग रुक गए और वहां पर उपस्थित मुंशी से उस मकबरे के बारे में जानने की कोशिश की कि वह कितनी दूर है ।मकबरे का नाम सुनकर टाल का मुंशी सकपका गया और बोला आप लोग वापस चले जाएं वहां जाकर अपनी जान जोखिम में ना डालें ।लेकिन सभी लोग वहां जाने का पक्का मन बना चुके थे लिहाजा किसी ने मुंशी की बात को नहीं मानी हार कर मुंशी ने बताया के सामने पहाड़ी के पीछे मकबरा है और टाल से मकबरे पर जाने के लिए पहाड़ी के बराबर बराबर 4 फिट का ही रास्ता है उस 4 फीट के रास्ते के नीचे 100 फीट गहरा नाला है यह कहकर मुंशी बोला अब आप जाने कि जाएंगे कि नहीं लेकिन मेडिकल के छात्र मानने वाले कहां थे वे सभी लोग हाथों में टॉर्च लिए पहाड़ी के बराबर 4 फिट के रास्ते पर एक दूसरे का हाथ पकड़े पहाड़ से चिपक चिपक कर मकबरे की तरफ को चलने लगे रात घनी हो चुकी थी। डॉक्टर आहूजा डॉ विश्वास आदि मेडिकल के छात्र धीरे धीरे मकबरे की तरफ को बढ़ रहे थे कभी-कभी तो उनका हाथ पहाड़ी के किसी गड्ढे में पड़ता और उसमें से चमगादड़ या उल्लू का घोंसला छू जाता और उसमें से चमगादर और उल्लू निकल जाते यह देख सभी लोग काप जाते ।
आखिरकार डरते डरते सभी लोग सफलतापूर्वक मकबरे पर पहुंच गए तब तक चंद्रमा भी अपनी पूरी रोशनी बिखेर चुका था चंद्रमा की रोशनी में सफेद संगमरमर का वेस्टर्न मेरी का मकबरा दूध की तरह चमक रहा था ।उस मकबरे पर वेस्टर्न मैरी की लेटी हुई प्रतिमा थी और उनके निकट एक परी की मूर्ति बनी हुई थी। परी की गोद में एक बच्चा था दृश्य बहुत अनूठा था ।क्योंकि वहां काफी लंबे समय से कोई नहीं आया था लिहाजा वहां काफी झाड़ झंकार हो गए थे। सभी छात्रों ने मिलकर पूरे क्षेत्र की ढंग से सफाई की व कुछ समय वहां व्यतीत करने के पश्चात सभी लोग वापस ट्रेनिंग सेंटर की ओर चल दिए ।
असल में वेस्टर्न मैरी की कहानी वहां प्रचलन में इस प्रकार थी कि वह ब्रिटिश हुकूमत के समय एक ब्रिटिश अधिकारी की पत्नी थी वह डिकसाइ ट्रेनिंग सेंटर के आसपास सरकारी बंगले में रहती थी। एक बार उनके पति जो कि एक ब्रिटिश अधिकारी थे किसी सरकारी कार्य से कुछ माह के लिए इंग्लैंड को रवाना हुए उस समय वेस्टर्न मैरी गर्भवती थी वह सरकारी आवास पर अकेली रहती थी। उस समय लोगों का यह मानना था की एक परी वेस्टर्न मैरी से रोज मिलने आती है ।वह उनसे बहुत देर तक बातें करती है वह परी वेस्टर्न मैरि को अपनी बेटी समान मानती थी। कुछ समय पश्चात गर्भ काल पूर्ण होने पर प्रसव के दौरान वेस्टर्न मेरी का देहांत हो गया उसी समय उनके पति जो ब्रिटिश अधिकारी थे इंग्लैंड से वापस लौटे थे और उन्हें परी से संबंधित सारी बात पता चली की एक परी वेस्टर्न मैरी से रोज मिलने आती थी और और उन्हें अपना बेटी मानती थी ।यह सुन वेस्टर्न मैरी के पति ने डिक्सआई के निकट ही एक सफेद संगमरमर का वेस्टर्न मैरी का मकबरा बनवाया और उनके मकबरे के साथ एक परी का भी बहुत बड़ा बुत बनवाया ।
सभी छात्र मकबरे से लौटकर अपने ट्रेनिंग सेंटर वापस आ गए जहां पर ट्रेनिंग इंचार्ज अपने पूरे स्टाफ के साथ बड़ी बेसब्री से डॉक्टर आहूजा व डॉ विश्वास के साथियों का इंतजार कर रहा था ।उनके पहुंचते ही ट्रेनिंग इंचार्ज ने सभी छात्रों को बहुत डांटा और उनसे कहा कि अगर उन्हें कुछ हो जाता तो इसकी जवाबदेही किसकी होती इसके अतिरिक्त ट्रेनिंग इंचार्ज ने सभी छात्रों को कोनी के बल 1 किलोमीटर चलने की सजा भी सुनाई।
आज भी डॉ आहूजा व डॉ विश्वास के घनिष्ठ मित्र जब उस मकबरे पर जाने के प्रकरण को याद करते हैं तो शरीर में एक रोमांच पैदा हो जाता है।


विवेक आहूजा
तिलक अस्पताल
बिलारी, जिला मुरादाबाद
@9410416986
@7906933255
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Monday, 22 June 2020

आन्दोलन , जन आन्दोलन, Andolan

[ ] आज काफी लंबे समय के बाद मंदिर की कार्यकारिणी की बैठक हो रही थी। हर एक शख्स को जो कार्यकारिणी का स्थाई सदस्य था उसे कार्यकारिणी से यही शिकायत थी की मीटिंग काफी लंबे समय बाद की जा रही है जबकि मीटिंग प्रतिमाह या प्रति 3 माह बाद होनी चाहिए ।मीटिंग में कार्यकारिणी के अतिरिक्त कुछ व्यापारियों को भी निमंत्रण दिया गया था ।
[ ] मीटिंग का मुख्य मुद्दा दशहरे मेले को किस प्रकार मनाना है व रामलीला मंचन की पूरी रूपरेखा की तैयारी का था । एजेंडे के मुताबिक कौन मुख्य अतिथि होगा एवं किस का सम्मान होगा आदि मसलों पर चर्चा होनी थी ।तभी एक वयोवृद्ध कार्यकारिणी के एक सदस्य ने दशहरे के इस आयोजन में डॉक्टर बी के, विशाल रस्तोगी ,राम प्रकाश शर्मा, आदेश गांधी आदि लोगों को सम्मानित करने का प्रस्ताव रखा तभी कार्यकारिणी के एक युवा सदस्य व कुछ व्यापारी हस्तक्षेप करते हुए इस प्रस्ताव का विरोध करने लगे। इन लोगों ने मंदिर के लिए क्या किया है जो आप इन्हें सम्मानित करने की बात कह रहे हैं। बाकी लोग भी मीटिंग में उनकी हां में हां मिलाने लगे वयोवृद्ध कार्यकारिणी के सदस्य को उन सभी लोगों का व्यवहार बड़ा नागवार गुजरा और उन्होंने सभी सदस्य व व्यापारी गणों से अपना पक्ष रखने का प्रस्ताव रखा सभी लोग शांति से उनकी बात सुनने लगे उन्होंने कहना शुरू किया-
[ ] यह उन दिनों की बात है जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का राज हुआ करता था। श्री नारायण दत्त तिवारी यहां के मुख्यमंत्री हुआ करते थे एवं श्रीमती इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थी कांग्रेस की तो मानो तूती बोल रही थी जो चाहा वही हो रहा था किसी आम व्यक्ति के कांग्रेसी से उलझने का मतलब व्यक्ति की खैर नहीं था ।कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था वही अपना नगर शांति से गंगा जमुनी तहजीब का निर्वाह करते हुए सुचारू रूप से चल रहा था। एक दिन अचानक कुछ सरकारी गाड़ी से दो तीन अधिकारियों के साथ मंदिर की दीर्घा में प्रवेश करते हैं और मंदिर के निकट मैदान की नपत करने लगते हैं ।आसपास के लोग अचंभित होकर उन अधिकारियों के पास आए वह उनसे नपत करने का कारण पूछा तभी एक पुलिस वाला उस उस व्यक्ति को हडकाते हुए कहता है की क्योंकि यह जगह काफी लंबे समय से खाली पड़ी है अतः सरकार इसे अपने कब्जे में लेना चाहती हैं। इसलिए हम इस जगह को नाप रहे हैं इतनी बात सुन व्यक्ति अचंभित हो जाते हैं और यह बात पूरे नगर में फैल जाती है धीरे धीरे नगर के सैकड़ों लोग मंदिर में एकत्र हो जाते हैं। इसी बीच डॉक्टर बी के, विशाल रस्तोगी,रामप्रकाश शर्मा ,आदेश गांधी आदि लोगों को भी यह बात पता लगती है वह भी मंदिर परिसर में पहुंच जाते हैं काफी लंबी बहस व जद्दोजहद के बाद नपत करने आए अधिकारी को वहां से खाली हाथ लौटना पड़ता है। उनके जाने के बाद लोग वहीं पर डटे रहते हैं और आगे इस तरह की पुनरावृत्ति ना हो इसके लिए रणनीति बनाई जाती है व तय किया जाता है की डॉक्टर बी के सहित 27 लोग इस आंदोलन की कमान संभालेंगे। शाम होते-होते पूरा नगर मंदिर परिसर में इकट्ठा हो जाता है व हाईवे को जाम कर देते हैं देर रात तक जाम को देखते हुए प्रशासन के हाथ पांव फूलने लगते हैं और वह विशाल रस्तोगी आदेश गांधी सहित 27 लोगों को जो आंदोलन को लीड कर रहे थे कई प्रकार से डराने का प्रयास करते हैं जैसे जेल में डाल देंगे सरकार के खिलाफ जाओगे तो बहुत बुरा होगा। परंतु वह लोग टस से मस नहीं होते और अंततः पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेती है। गिरफ्तारी के बाद जिला कारागार ले जाते हुए पुलिस उन्हें लालच देती है कि यदि आप आंदोलन वापस ले लेते हो तो हम आपको अभी छोड़ देंगे लेकिन कोई भी व्यक्ति पीछे हटने को तैयार नहीं होता मजबूरन पुलिस को सभी 27 आंदोलनकारियों को जिला कारागार जेल में भेजना पड़ता है। तथा मुकदमा डॉक्टर बी के बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के नाम से दर्ज होता है जिला कारागार में जब लोगों को पता चलता है कि मंदिर में अवैध कब्जे के विरोध में यह आंदोलन हुआ है तो आ परोक्ष रूप से सभी कर्मचारी बंदी आदि लोग आंदोलनकारियों को पूर्ण समर्थन देते हैं तथा सैकड़ों की तादाद में विधायक सांसद आदि लोग उनसे रोज मिलने जिला कारागार में आते हैं ।इस प्रकार सभी 27 व्यक्तियों को प्रतिदिन लोभ लालच देकर तोड़ने की कोशिश चलती रही सरकार उन्हें डालती रही की वह आंदोलन वापस ले ले या अपनी जमानत करवा ले पर कोई भी आंदोलनकारी पीछे हटने को तैयार नहीं होता और अंत में 14 दिन के बाद जेल प्रशासन को निजी मुचलका पर सभी आंदोलनकारियों को छोड़ना पड़ा।
[ ] जेल से बाहर आने पर नगर का जीवन सामान्य सा रहा परंतु सरकार ने उन 27 आंदोलनकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया जो करीब 7 वर्षों तक चला कोई गवाह ना होने के कारण अंत में मुकदमा छूट गया इस प्रकार मंदिर की जमीन पर इसके बाद सरकार की तरफ से इस तरह का कोई प्रयास नहीं किया गया।
[ ] वयोवृद्ध कार्यकारिणी के सदस्य ने अपनी बात को यहां पर विराम दे दिया। पूरे कक्ष में सन्नाटा था सभी लोग मन ही मन अपने अपने द्वारा कहे गए वक्तव्य से शर्मिंदा थे पर कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे ।वयोवृद्ध कार्यकारिणी सदस्य में चुप्पी को तोड़ते हुए कहा कि मैं उन 27 लोगों में से एक हूं और यह कहते हुए उनका गला रूंध गया सभी लोगों ने उन्हें संभाला वा सर्वसम्मति से सभी 27 लोगो को जिन लोगों ने मंदिर के आंदोलन को चलाया था को सम्मानित करने का फैसला लिया इस प्रस्ताव के साथ मीटिंग का समापन हो गया व सभी सदस्य यह कहते हुए चले गए देखो कार्यकारिणी की अगली मीटिंग कब बुलाई जाती है।


विवेक आहूजा
तिलक अस्पताल
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