प्रकृति के क्रोध से , बच के रहना आप
सोच समझकर कीजिए ,छोटा-छोटा पापधरती तक है कांप रही , देख प्रकृति का रूप
वन तो तुमने काट दिए , बिगाड़ दिया स्वरूप
महादेव के हाथ है , मझधार में अटकी नाव
हमको बस है चाहिए , उनकी कृपा और शीतल छाँव
✍विवेक आहूजा
प्रकृति के क्रोध से , बच के रहना आप
सोच समझकर कीजिए ,छोटा-छोटा पाप