नाटक :
शीर्षक :
"अब पछताए होत क्या जब चिडियाँ चुग गयी खेत"
पाञ :
1 - रामलाल
2 - डॉ विनय
3 - ठग नंबर 1
4 - ठग नंबर 2
5 - मोहन ( डॉ विनय का कंपाउंडर)
*पर्दा उठता है*
रामलाल : डॉक्टर साहब ! मैं तो लुट गया बर्बाद
हो गया.... डॉक्टर साहब ! बाजार में
मेरे साथ ठगी हो गई है , ठगों ने
मेरे ₹10000 निकाल लिए ........
डाक्टर विनय : अरे रामलाल ! क्या हुआ है .........?
(राम लाल बताता है )
ठग नंबर 1 : अरे भैया ! जरा दूर रहो , मेरे ऊपर
क्यों चढ़े जा रहे हो ,एक तो तुम्हारे
कपड़ों से बदबू आ रही है और ऊपर से तुम
मेरे ऊपर चढ़ रहे हो ..........
रामलाल : बदबू कैसी बदबू ......... ?
ठग नंबर 2 : अरे भैया ! तुम्हारे कपड़ों पर तो लैट्रिन
लगी है , जरा दूर होकर चलो हमसे ,
तुम्हारे पास तो खड़ा होना भी मुश्किल है ....
रामलाल : (ठग नंबर 1 से) भैया ! जरा देखना ...मेरे
कपड़ों पर कहां लैट्रिन लगी है कृपया बता दें
तो मैं उसे साफ कर लूंगा ........
ठग नंबर 1 : अरे ! दूर हटो मुझसे , कुर्ते पर लगी
है और कहां ?
रामलाल : यहाँ नल हैं , मै अभी साफ कर लेता हूँ .....
भैया ( ठग नंबर 1 से) जरा नल चला दोगे ...
(रामलाल बंडी जिसमें पैसे थे उसे उतार कर कुर्ता साफ करने लगा)
ठग नंबर 1 : चलो ! मै नल चला देता हूँ , तुम कुर्ता ढ़ंग
से साफ कर लो .....
(ठग नंबर 2 चुपके से नोट के बंडल से भरी बंडी उठा कर ले गया)
रामलाल : अरे मेरी बंडी कहा गयी........
(ठग नंबर 1 भी बंडी ढूढने का बहाना कर गायब हो जाता है)
मोहन ( डॉ विनय का कंपाउंडर) : अरे ! यह लैटरीन
का निशान नहीं है , यह तो "खल" को पानी
में भिगो कर बनाया गया है .....
(यह सुन रामलाल जोर जोर से रोने लगा, ठगी हो चुकी थी )
मगर "अब पछताए होत क्या जब चिडियाँ चुग गयी खेत"
(नाटक समाप्त)
*पर्दा गिरता है*
(स्वरचित)
विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com
No comments:
Post a Comment