Thursday, 1 October 2020

नाटक

 नाटक : 


शीर्षक :
"अब पछताए होत क्या जब चिडियाँ चुग गयी खेत"

पाञ :

1 - रामलाल
2 - डॉ विनय
3 - ठग नंबर 1
4 - ठग नंबर 2
5 - मोहन ( डॉ विनय का कंपाउंडर)


*पर्दा उठता है*

रामलाल : डॉक्टर साहब ! मैं तो लुट गया बर्बाद
हो गया.... डॉक्टर साहब ! बाजार में
मेरे साथ ठगी हो गई है , ठगों ने
मेरे ₹10000 निकाल लिए ........

डाक्टर विनय : अरे रामलाल ! क्या हुआ है .........?

(राम लाल बताता है )

ठग नंबर 1 : अरे भैया ! जरा दूर रहो , मेरे ऊपर
क्यों चढ़े जा रहे हो ,एक तो तुम्हारे
कपड़ों से बदबू आ रही है और ऊपर से तुम
मेरे ऊपर चढ़ रहे हो ..........

रामलाल : बदबू कैसी बदबू ......... ?

ठग नंबर 2 : अरे भैया ! तुम्हारे कपड़ों पर तो लैट्रिन
लगी है , जरा दूर होकर चलो हमसे ,
तुम्हारे पास तो खड़ा होना भी मुश्किल है ....

रामलाल : (ठग नंबर 1 से) भैया ! जरा देखना ...मेरे
कपड़ों पर कहां लैट्रिन लगी है कृपया बता दें
तो मैं उसे साफ कर लूंगा ........

ठग नंबर 1 : अरे ! दूर हटो मुझसे , कुर्ते पर लगी
है और कहां ?

रामलाल : यहाँ नल हैं , मै अभी साफ कर लेता हूँ .....
भैया ( ठग नंबर 1 से) जरा नल चला दोगे ...

(रामलाल बंडी जिसमें पैसे थे उसे उतार कर कुर्ता साफ करने लगा)

ठग नंबर 1 : चलो ! मै नल चला देता हूँ , तुम कुर्ता ढ़ंग
से साफ कर लो .....

(ठग नंबर 2 चुपके से नोट के बंडल से भरी बंडी उठा कर ले गया)

रामलाल : अरे मेरी बंडी कहा गयी........

(ठग नंबर 1 भी बंडी ढूढने का बहाना कर गायब हो जाता है)

मोहन ( डॉ विनय का कंपाउंडर) : अरे ! यह लैटरीन
का निशान नहीं है , यह तो "खल" को पानी
में भिगो कर बनाया गया है .....

(यह सुन रामलाल जोर जोर से रोने लगा, ठगी हो चुकी थी )
मगर "अब पछताए होत क्या जब चिडियाँ चुग गयी खेत"

(नाटक समाप्त)

*पर्दा गिरता है*

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

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