Thursday, 22 October 2020

नया भारत

 आलेख : 


"नया भारत"

भारतवर्ष को आजाद हुए 70 वर्ष से अधिक का समय बीत चुका है । आजादी के तुरंत बाद देश को अपने आपको स्थापित करने था , अंतरराष्ट्रीय समाज में अपनी पहचान बनाना , भारत का मुख्य लक्ष्य था । जबकि यहां की जनता को रोटी , कपड़ा और मकान की आवश्यकता थी । जिस व्यक्ति के पास यह तीनों चीजें आराम से उपलब्ध थी , वह उस समय संपन्न व्यक्तियों में माना जाता था । परंतु आज सन 2020 में जनता की जरूरतें ज्यों की त्यों बनी हुई है । रोटी ,कपड़ा ,मकान सभी को जरूरत है लेकिन इसमें दो चीजों का इजाफा और हुआ है ,उसके बगैर आज की दिनचर्या संभव ही नहीं है । यह है सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक सामान , आज के भारत के नागरिक को रोटी , कपड़ा और मकान तो चाहिए ही , यह जनता की मूलभूत आवश्यकता है ,लेकिन सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स भी उसकी प्राथमिक जरूरतों में से एक है । भारतवर्ष का कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसके पास मोबाइल ना हो बल्कि एक एक घर में दो दो ,तीन तीन मोबाइल तक उपलब्ध है ,चाहे व्यक्ति अमीर हो या गरीब मोबाइल सभी के पास है । इन्हीं मोबाइलों के माध्यम से भारत के नागरिक सोशल मीडिया एप्प जैसे फेसबुक , व्हाट्सएप , टि्वटर आदि से जुड़ा हुए है और उसे अपनी बात कहने का एक मंच मिला हुआ है । इसी प्रकार हर घर में बहुत से इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स भी उपलब्ध है , जैसे मोबाइल , एलसीडी , मिक्सी गीजर , डीटीएच , कम्पयूटर, माइक्रोवेव , वाशिंग मशीन आदि आज के दौर में व्यक्ति की प्राथमिक जरूरत बन गई हैं । बच्चे हो बूढ़े हो महिलाएं हो या युवा सभी लोगों को इनकी आवश्यकता पड़ती है । सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स के बगैर भारत में जीवन की कल्पना करना भी असंभव सा हो गया हैं । रोटी कपड़ा और मकान से दो पायदान और आगे हमारी जरूरतें बढ़ गई हैं , इसे हम एडिक्शन भी कह सकते हैं । अब से करीब 25 वर्ष पहले छोटे बच्चों का खेल पतंगबाजी , क्रिकेट , फुटबॉल , हॉकी आदि हुआ करता था , जबकि आज के दौर में बच्चे पबजी , यूट्यूब , वीडियो गेम्स की लत के शिकार हो चुके है । वहीं महिलाएं और बुजुर्ग भी सोशल मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक आइटम के आदी हो चुके हैं । इन सब बातों को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा यह भारतवर्ष बदल रहा है और इसके साथ भारत की जरूरतें भी बदल रही हैं और हम यह कह सकते हैं , भारत डिजिटल युग में प्रवेश कर चुका है । अब देखना यह है कि इस डिजिटल युग में भारत के लोग यदि तकनीक का सही प्रकार से इस्तेमाल कर लेते हैं , तो हमें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता ।


(स्वरचित)


विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

उडता बॉलीवुड

 आलेख 


"उड़ता बॉलीवुड"

जब से सुशांत सिंह की मृत्यु हुई है , तभी से देश की एजेंसियां काफी सक्रिय हो गई हैं । जनता में भी आक्रोश है , कुछ फिल्मी कलाकारों ने तो सुशांत की मृत्यु पर शक भी जाहिर किया है कि यह एक आत्महत्या ना होकर हत्या है । सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद व सुशांत के परिवार के दबाव के चलते इस केस की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है । जांच में तीन एजेंसियों की भूमिका महत्वपूर्ण है सीबीआई , एनसीबी व ईडी तीनों एजेंसी मिलकर संयुक्त रूप से इस केस की जांच को आगे बढ़ा रही है । सीबीआई क्राइम संबंधी सबूतों की तलाश कर रही है , एनसीबी ड्रग्स कनेक्शन तलाश रही है व ईडी पैसों से संबंधित जांच को देख रही है ।
एनसीबी की जांच के चलते दिन प्रतिदिन बॉलीवुड के कई सितारे ड्रग कनेक्शन में लिप्त पाए जा रहे हैं , जिसे देख देश की जनता स्तंभ है । आज देश का युवा बॉलीवुड के सितारों को अपना आदर्श मान बैठा है और इनके द्वारा किए जाने वाले कृत्य आदर्श स्थापित करने की कोई योग्यता नहीं रखते । जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है ड्रग में लिप्त सितारे जनता की नजरों से गिरते जा रहे हैं ।
अब से करीब 40/45 वर्ष पूर्व के अभिनेताओं ने जनता के बीच जो अपनी साख बनाई थी , वह आज के ड्रग्स में लिप्त अभिनेता व अभिनेत्री उसको मिट्टी में मिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं । हम पुराने अभिनेताओं द्वारा अभिनीत फिल्में जो भारत चीन युद्ध , ड्रग्स के खिलाफ , भारत रूस संबंध आदि पर बनाई गई थी उन्हें आज भी याद करते हैं । पुराने अभिनेताओं ने विभिन्न सामाजिक विषयों पर फिल्में बनाकर बॉलीवुड की एक साख कायम की थी । जिसे आज काफी धक्का लगा है । मनोज कुमार जिसने पूरे जीवन देशभक्ति की फिल्में पर ज्यादा फोकस किया , देवानंद जिन्होंने ड्रग्स के खिलाफ हरे रामा हरे कृष्णा जैसी फिल्म बनाई , राज कपूर जिन्होंने भारत रूस मैत्री को बढ़ावा देने के लिए रूसी कलाकारों को अपनी फिल्मों में आमंत्रित किया । इस तरह कई निर्माता-निर्देशक कलाकार आदि ने बॉलीवुड की मजबूत नींव रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है । एक तरफ ड्रग्स का प्रचलन बॉलीवुड में बढ़ रहा है वही परिवारवाद वह मी टू कमपैन ने भी बॉलीवुड की वर्षों पुरानी साख को ठेस पहुंचाई है ।
अब से करीब 5/6 वर्ष पूर्व एक फिल्म आई थी उड़ता पंजाब जिसमें एक प्रदेश में ड्रग्स के बढ़ते प्रचलन को दिखाया गया था । आज भारत की जनता बॉलीवुड के लोगों से सवाल करती है कि बॉलीवुड में ड्रग्स के बढ़ते प्रचलन को देखते हुए क्या वह "उड़ता बॉलीवुड" फिल्म बनाने की हिम्मत करेंगे ।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

"तू सबसे प्यारा है मुझको"

 


"तू सबसे प्यारा है मुझको"
(1)
बचपन के दिन याद है मुझको ,
याद नहीं अब , कुछ भी तुझको ।
तेरा मेरा वो स्कूल को जाना ,
इंटरवल में टिक्की खाना ,
भूल गया है ,सब कुछ तुझको ।
कैसे तुझको याद दिलाऊ ,
स्कूल में जाकर तुझे दिखाऊ ,
याद आ जाए ,शायद तुझको ।
(2)
भूला नहीं हूं सब याद है मुझको ,
मैं तो यूं ही ,परख रहा तुझको ।
तेरा मेरा वो याराना ,
स्कूल को जाना पतंग उड़ाना ,
कैसे भूल सकता हूं , मैं तुझको ।
याद है तेरी सारी यादें ,
बचपन के वो कसमे वादे ,
आज मुझे कुछ , बताना है तुझको ।
"तू सबसे प्यारा है मुझको"

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

Tuesday, 20 October 2020

"उपवास(वृत)का महत्व" , उपवास

 लेख : 


"उपवास(वृत)का महत्व" 
      
भारतवर्ष का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है ,जिसमें हिंदू धर्म को सबसे पुराने धर्म के रूप में मान्यता प्राप्त है । भारत में हिंदू धर्म उपासकों द्वारा साल में विभिन्न समयो पर उपवास रखने का प्रचलन हजारों वर्षों से चला आ रहा है । जिसका अपना पौराणिक एवं वैज्ञानिक महत्व है । प्रतिवर्ष नवरात्रि ,शिवरात्रि , जन्माष्टमी ,सोमवार के व्रत , सोलह सोमवार के उपवास आदि आदि ऐसे बहुत से वृतो का प्रचलन है । अधिकतर हिंदू धर्म उपासक इन व्रतों को जरूर रखते हैं और धर्म लाभ अर्जित करते हैं।
वृतो को रखना धार्मिक परंपरा के साथ-साथ एक वैज्ञानिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण हैं उपवास के दौरान व्यक्ति पूरे दिन सिर्फ जल व फलाहार ही ग्रहण करता है , बहुत से व्रतों में तो कुछ लोग निर्जल उपवास भी रखते हैं जिसमें वह पूरे दिन कुछ भी ग्रहण नहीं करते । इसका वैज्ञानिक महत्व यह है कि जब व्यक्ति पूरे दिन कुछ ग्रहण नहीं करता या अल्पाहार ग्रहण करता है तो शरीर के अंदर होने वाली आंतरिक क्रियाएं को कुछ समय के लिए आराम मिल जाता है । जोकि अधिक भोजन ग्रहण करने या गलत आहार ग्रहण करने की वजह से अनियंत्रित होती है ।
उपवास के महत्व की आज विज्ञान भी पुष्टि करता है और वैज्ञानिकों ने का मानना है कम आहार ग्रहण करने वाले व्यक्तियों की उम्र अधिकार ग्रहण करने वाले व्यक्तियों से ज्यादा होती हैं । ऐसा इसलिए है क्योंकि अधिक भोजन ग्रहण करने के कारण बहुत सी बीमारियां शरीर को घेर लेती हैं जोकि मनुष्य की अल्पायु का कारण बनती है ।
अंत में बस इतना ही कहना चाहूंगा सनातन धर्म संस्कृति सिर्फ एक धर्म नहीं है बल्कि इसका एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक आधार भी है , जोकि धीरे-धीरे लोगों के समक्ष प्रकट हो रहा है ।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद 


Monday, 19 October 2020

"लाकॅडाउन में डिजिटल"

 


"लाकॅडाउन में डिजिटल"

बेटी : पापा में लॉकडाउन के कारण घर नहीं आ सकती , ना ही बाहर एटीएम से पैसे निकाल सकती हूँ और मेरे पास पैसे भी खत्म हो गए हैं । क्या करूं .......
पिता : कोई बात नहीं बेटा ! अभी 2 मिनट रुको , अब पेटीएम चेक करो आ गए पैसे ......
बेटी : थैंक यू पापा .......... आ गए , थैंक गॉड !

आप सोचिए , अगर यही लॉकडाउन 10 /15 वर्ष पहले हुआ होता तो क्या होता ? सोचकर भी रूह कांप जाती है । इस डिजिटल सुविधाएं के बगैर जीवन मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा हो गया है । इस लॉकडाउन में डिजिटल सुविधाओं ने , भारत का जो साथ दिया है वह अभूतपूर्व है । डिजिटल सुविधाओं के बगैर लॉकडाउन के दौरान जीवन कितना कठिन और कष्टदायक हो सकता था , यह किसी को भी समझाने की आवश्यकता नहीं है ।
लॉकडाउन के दौरान डिजिटल सुविधाओं से हमें क्या-क्या फायदे हुए , आज हम इसकी क्रमवार चर्चा करेंगे ।
1- इस लाकॅडाउन में पेटीएम , गूगल पे , भीम एप आदि ऐसी बहुत सी एप्स के माध्यम से लोगों को पैसे का लेनदेन बहुत आसान हो गया । इसके अतिरिक्त इन एप्स के द्वारा मोबाइल रिचार्ज, डीटीएच रिचार्ज , मनी ट्रांसफर आदि कई सुविधाओं का लोगों ने इस लॉकडाउन के दौरान काफी फायदा उठाया और उन को होने वाली परेशानी इस सब से काफी कम हुई है ।
2- मोबाइल में डाउनलोड की हुई बैंक एप्स भी इस लॉकडाउन में लोगों को काफी उपयोगी साबित हुई है , क्योंकि बैंक पास बुक को अपडेट कराने के लिए बैंक के बार-बार चक्कर काटने से लोगों को मुक्ति मिली है । इसके अलावा बैंक के खाते में हुई लेनदेन की जानकारी आप अपने मोबाइल की बैंक ऐप में घर बैठे ही देख सकते हैं यह अपने आप में एक बहुत उपयोगी सुविधा
है ।
3 - मोबाइल, टेबलेट, लैपटॉप हो या डेस्कटोप इन के माध्यम से ली गई अनलाइन क्लास छात्रों के लिए काफी उपयोगी साबित हुई है । ऑनलाइन क्लास इस लॉक डाउन की सबसे बड़ी उपलब्धि है , जिसके माध्यम से स्कूली बच्चे , रिसर्च स्कॉलर या हायर एजुकेशन के विद्यार्थी , सभी इस ऑनलाइन क्लासेस की माध्यम से शिक्षा से जुड़े रहे और अपनी शिक्षा को जारी रख पाये। शिक्षा के क्षेत्र में अनलाइन क्लास किसी क्रान्ति से कम नहीं हैं ।
4 - डिजिटल सुविधाओं का बहुत बड़ा फायदा सर्विस क्लास के लोगों को भी हुआ है, क्योंकि उन्होंने इस पूरे करोना काल में घरों से ही ऑनलाइन वर्क किया हैं । भारत सरकार द्वारा भी वर्क फ्रॉम होम को मान्यता दी गई है जो कि एक सराहनीय कदम है
5 - कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान लोग घरों में कैद होकर रह गए हैं , मार्केट , मॉल आदि घूमने की सभी जगह बंद है । इस सबके बीच हॉटस्टार , बूट ऐमेज़ॉन ,रिलायंस , लाइम रोड आदि एप्स के माध्यम से लोगों ने खूब खरीदारी की है व मनोरंजन किया है । जोकि डिजिटल सुविधाओं के कारण ही संभव हो पाया है । वरना छोटे-छोटे सामानों के लिए बाजार जाकर उसे लाना वाकई बहुत मुश्किल था । इन एप्स के माध्यम से लोगों ने ऑनलाइन फिल्मों का भी लुत्फ़ उठाया है ।
कुल मिलाकर इस लाकॅडाउन में डिजिटल सुविधाएं काफी उपयोगी साबित हुई है , जिसकी वजह से छात्र , सर्विस क्लास कर्मचारी व आम जनता को इससे काफी फायदा हुआ है ।इसकी उपयोगिता को देखते हुए उम्मीद है आने वाले भविष्य में डिजिटल सुविधाओं की गुणवत्ता में सरकार कुछ महत्वपूर्ण सुधार जरूर करेगी ।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

"वीकली क्लासेज हो सकता है स्कूलों के लिए बेहतर विकल्प"

 



"वीकली क्लासेज हो सकता है स्कूलों के लिए बेहतर विकल्प"


कोरोना का ग्राफ दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है ,और वैक्सीन आने में भी अभी कुछ माह लग सकते हैं । यही सब देखते हुए बच्चों की पढ़ाई को लेकर माता-पिता , शिक्षक ,स्कूल प्रशासन व सरकार पशोपेश में है । फिलहाल सरकार स्कूलों को सोशल डिस्टेंसिंग के साथ कक्षा 9 से 12 तक खोलने की इजाजत दे चुकी है । लेकिन स्कूल प्रशासन बच्चों के ट्रांसपोर्ट को लेकर काफी चिंतित है । रोज-रोज बसों , वैन , ऑटो आदि से बच्चों का स्कूल आना वह 5 से 6 घंटे स्कूल में गुजार कर घर वापस जाना , संक्रमण की दृष्टि से काफी जोखिम भरा हो सकता है । ऐसी परिस्थिति में क्या किया जाए और कैसे किया जाए अभी कुछ निर्धारित नहीं हो पा
रहा है ।
पिछले 7 माह से बच्चे घर पर ही ऑनलाइन क्लासेस ले रहे हैं व प्री मिड टर्म तक के पेपर उन्होंने ऑनलाइन ही दिए हैं । स्कूल वाले भी यह चाहते हैं कि उनके द्वारा दी गई ऑनलाइन क्लासेस की गुणवत्ता की जांच बच्चों को स्कूल बुलाकर की जाए , मगर हालात इन सब चीजों में बाधक बन रहे हैं ।
ऐसी परिस्थिति में वीकली क्लासेस कक्षा 9 से 12 तक के विद्यार्थियों के लिए , वैक्सीन आने तक एक बेहतर विकल्प हो सकता है । जिसमें कक्षा 9 से 12 तक के विद्यार्थियों को सप्ताह में दो बार बुलाकर कोरोना काल में हुई शिक्षा की क्षति को पूरा किया जा सकता है ।
उदाहरणार्थ यदि किसी कक्षा में 40 छात्र हैं तो उसमें से 20 छात्रों को सप्ताह में दो बार शुक्रवार व शनिवार वह बाकी के 20 छात्रों को सोमवार व मंगलवार में स्कूल बुलाकर उनकी पढ़ाई कराई जा सकती है ।बाकी के 4 दिनों में उनकी ऑनलाइन क्लासेस को जारी रखा जा सकता है । इसी प्रकार कक्षा 5 से कक्षा 8 तक के विद्यार्थियों को कम से कम सप्ताह में एक बार स्कूल बुलाकर उनके द्वारा ली गई ऑनलाइन क्लासेस की परख की जा सकती है और बाकी के दिनों में उनकी भी ऑनलाइन क्लासेज जारी रखी जाए ।
महामारी के इस दौर में अपने बच्चों की सुरक्षा हर मां-बाप की प्राथमिकता है , लेकिन शिक्षण कार्य प्रभावित ना हो इसके लिए स्कूल प्रशासन व सरकार द्वारा उठाए गए कदम सराहनीय है । स्कूलों में पढ़ाई की व्यवस्था कैसी हो यह तो स्कूल प्रशासन व सरकार को ही निर्धारित करना है , हम तो बस सुझाव ही दे सकते हैं , क्योंकि संक्रमण की दृष्टि से बच्चे जो कि हमारे देश का भविष्य हैं की सुरक्षा का दायित्व पूरे समाज पर एक समान हैं ।



✍ विवेक आहूजा
बिलारी 

"बच्चे और मोबाइल"

 


"बच्चे और मोबाइल"

अरे मुन्ना ! मोबाइल छोड़ो ...... जल्दी से सो जाओ, सुबह जल्दी उठकर स्कूल भी जाना है ......
इस तरह का डायलॉग आए दिन हर घर में सुनने को मिल जाएगा , क्योंकि आज के दौर के 10 से 15 वर्ष की आयु के बच्चो को हर खिलौने से ज्यादा प्यारा मोबाइल है । मां बाप अपने बच्चों को इसके चंगुल से छुड़ाने के लिए विफल प्रयास करते ही रहते हैं ।
अब से करीब 25 / 30 वर्ष पूर्व बच्चे अपने घरों से शाम को खेलने के लिए घरों के निकट पार्क , स्टेडियम व खाली मैदान में चले जाया करते थे और खूब आउटडोर गेम्स खेलते थे । परंतु आज के समय में बच्चों का सबसे प्रिय गेम पब जी व वीडियो गेम्स है , जो कि मोबाइल में आसानी से डाउनलोड हो जाते हैं । मोबाइल में उपलब्ध वीडियो गेम को इस तरह से डिजाइन किया गया है , कि बच्चे इनके चंगुल से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं ।
कुछ देशों में तो पब जी जैसे कई गेम्स को , जोकि बच्चों के लिए काफी घातक सिद्ध हुए हैं , प्रतिबंधित कर दिया गया है । इन वीडियो गेम्स के कारण बच्चों के शारीरिक विकास में कमी आई है और उनकी पढ़ाई भी काफी प्रभावित हुई है । अत्यधिक मोबाइल का इस्तेमाल बच्चों के मानसिक स्तर को भी प्रभावित कर रहा है , साथ ही उनकी नेत्र दृष्टि भी इसके प्रयोग से लगातार गिर रही है । आजकल हर जगह देखने को मिल जाता है , कि छोटे-छोटे बच्चों के चश्मे लगे होते हैं ।
बड़ी-बड़ी कंपनियां जैसे गूगल , माइक्रोसॉफ्ट आदि को चाहिए कि इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाएं , जैसे कि उन्हें प्ले स्टोर में सिर्फ शिक्षा संबंधी वीडियो गेम्स उपलब्ध कराने चाहिए ताकि बच्चे इससे कुछ ज्ञान हासिल कर सकें । इन कंपनियों को मनोरंजन की दृष्टि से डाले गए वीडियो गेम्स से वायलेंट हिस्से को हटा देना चाहिए , जिससे बच्चों के मस्तिष्क पर इसका बुरा प्रभाव ना पढ़ सके ।
बच्चों के माता-पिता तो इस मोबाइल की लत को छुड़ाने का भरसक प्रयास करते हैं पर नतीजा सिफर ही आता है।



✍ विवेक आहूजा 

"सदा याद रहेगा , कोरोना काल मे स्वास्थय कर्मियों का योगदान"

 "सदा याद रहेगा , कोरोना काल मे स्वास्थय कर्मियों का योगदान" 


कोरोना काल का अंत अब नजदीक ही है , भारत सरकार डब्ल्यूएचओ व विश्व के कई देशों ने कोरोना की वैक्सीन बनाने में करीब-करीब कामयाबी हासिल कर ही ली है और जल्द ही कोरोना की वैक्सीन देश में उपलब्ध होगी । भारत सरकार द्वारा वैक्सीन के शीघ्र उपलब्ध होने का आश्वासन जनता को दे चुकी हैं , जनता भी वैक्सीन का बेसब्री से इंतजार कर रही है ताकि कोरोना का खातमा किया जा सके ।
कोरोना के पश्चात पूरे भारतीय समुदाय में स्वास्थ्य कर्मियों के योगदान को याद रखा जाएगा । स्वास्थ्य कर्मी जिसमें डॉक्टर , नर्स , नर्सिंग स्टाफ , पैरामेडिकल स्टाफ , स्वास्थ्य सफाई कर्मी आदि ने इस पूरे करोना काल के दौरान जी जान लगाकर लोगों की सेवा की है , जिससे पूरा देश इनके योगदान के प्रति आभारी है । 2020 की शुरुआत में जहां देश में पीपीई किट , N95 मास्क , वेंटिलेटर आदि की कमी के बावजूद स्वास्थ्य कर्मियों ने अपनी जान जोखिम में डालकर कोरोना मरीजों की जी जान से सेवा की ये काबिले तारीफ़ है , धीरे धीरे भारत सरकार द्वारा स्वयंसेवी संस्थाओं एवं मैन्युफैक्चरिंग यूनिट के माध्यम से N95 मास्क , वेंटिलेटर आदि को बहुत जल्द ही देश में बनवा लिया ताकि स्वास्थ्य सेवाओं में किसी प्रकार की बाधा ना आने पाए जोकि सरकार का सराहनीय कदम रहा ।
स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा कोरोना काल की शुरुआती दौर में जब कोरोनावायरस प्रचंड रूप में था अपनी जान की परवाह ना करते हुए 24 से 36 घंटे ड्यूटी करी व कोरोना पाजिटिव मरीजों की जान को बचाया । भारतवर्ष में उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं की गुणवत्ता का आकलन इस कोरोना काल मे हो पाया है व यहां के डॉक्टरों ने अपने द्वारा दी गई सेवाओं के जरिए पूरे विश्व में भारत का झंडा गाड़ दिया है। जबकि यहां की स्वास्थ्य सेवाएं पूरे विश्व में कमतर ही मानी
जाती रही हैं । लेकिन करोना काल के पश्चात भारत की स्वास्थ्य सेवाएं पूरे विश्व की बेहतरीन सुविधाओं में से एक मानी जाएंगी ऐसा इसलिए कह सकते हैं क्योंकि भारत में कोरोना के कारण मृत्यु दर अन्य देशों के मुकाबले काफी कम जो कि यहां की शानदार स्वास्थ सेवाओं के कारण ही संभव हो पाया है ।
कई डॉक्टरों, नर्सो व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों ने इस दौरान कोरोना मरीजो की सेवा करते करते अपनी जान भी गवा दी , जो कि भारत के लिए एक अपूर्णीय क्षति है । भारत के नागरिक उनके बलिदान को हमेशा याद रखेंगे , जब भी कोरोना का जिक्र होगा यहां के स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा दी गई सेवाओं को भी लोग हमेशा याद रखेंगे ।
आने वाले भविष्य में भारत सरकार से यही अपेक्षा है कि देश की जनसंख्या को देखते हुए देश में डॉक्टरों की संख्या को बढ़ाना चाहिए ताकि कोरोना जैसी खतरनाक महामारी दोबारा अपना विकराल रूप धारण ना कर सके ।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

Thursday, 1 October 2020

आलेख

 


"चीन"
सन 2013 से 2023 तक चीन में , कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्य के पुत्र श्री शी जिनपिंग की नियुक्ति तय है व आगे भी उनके चीन के प्रमुख बने रहने की पूर्ण संभावना है । जिसके समस्त कानूनी बदलाव कर लिए गए हैं । शी जिनपिंग के राष्ट्रपति शासन काल मे चीन की विस्तार वादी नीतियों को हवा मिली , जिसके रहते चीन ने अपने चारों ओर बलपूर्वक कब्जा कर क्षेत्र विस्तार की नीति को अपनाया , भारत , ताइवान , जापान , नेपाल आदि कई मुल्क चीन की इस विस्तार वादी नीतियों से परेशान है और अपने क्षेत्र की सुरक्षा के लिए युद्ध करने को बाध्य है ।
चीन की इस विस्तार वादी नीति से उसे वैश्विक स्तर पर आर्थिक व सामाजिक नुकसान पहुंचना भी तय है , क्योंकि पीड़ित पक्ष चीन से किसी भी प्रकार का कोई लेन देन आर्थिक व सामाजिक नहीं रख पाएगा ।
चीन का अड़ियल रुख , यूनाइटेड नेशन में लगातार भारत का विरोध , आतंकवाद को समर्थन , अपनी बातों पर कायम ना रहना व कब्जा नीति पूरी दुनिया में चीन की छवि को खराब कर रही है । जिसके चलते पूरे विश्व में चीनी लोगों की साख लगातार गिर रही है । शी जिनपिंग की नीतियां से चीन वैश्विक स्तर पर अपनी साख खोता जा रहा है । वहीं विश्व के ज्यादातर देश उसके खिलाफ लामबंद हो गए हैं । हांगकांग का मसला हो ताइवान का मसला हो या भारत का मसला हो चीन अपने रुख में बदलाव करने को तैयार नहीं है ।
इस कोरोना काल में पूरा विश्व कोरोना संकट से जूझ रहा है तथा इस संकट को भी चीन की ही देन माना जा रहा है । इस महामारी के कारण दुनिया के सभी देशों में लाखों लोग मर रहे हैं । इसके विपरीत चीन का रुख समझ से परे है । अंत में बस यही कहना उचित होगा कि आने वाले भविष्य में चीन की विस्तार वादी नीति अड़ियल रुख और आतंक को समर्थन उसे वैश्विक समाज से बिल्कुल अलग कर देगा ।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986

नाटक

 नाटक : 


शीर्षक :
"अब पछताए होत क्या जब चिडियाँ चुग गयी खेत"

पाञ :

1 - रामलाल
2 - डॉ विनय
3 - ठग नंबर 1
4 - ठग नंबर 2
5 - मोहन ( डॉ विनय का कंपाउंडर)


*पर्दा उठता है*

रामलाल : डॉक्टर साहब ! मैं तो लुट गया बर्बाद
हो गया.... डॉक्टर साहब ! बाजार में
मेरे साथ ठगी हो गई है , ठगों ने
मेरे ₹10000 निकाल लिए ........

डाक्टर विनय : अरे रामलाल ! क्या हुआ है .........?

(राम लाल बताता है )

ठग नंबर 1 : अरे भैया ! जरा दूर रहो , मेरे ऊपर
क्यों चढ़े जा रहे हो ,एक तो तुम्हारे
कपड़ों से बदबू आ रही है और ऊपर से तुम
मेरे ऊपर चढ़ रहे हो ..........

रामलाल : बदबू कैसी बदबू ......... ?

ठग नंबर 2 : अरे भैया ! तुम्हारे कपड़ों पर तो लैट्रिन
लगी है , जरा दूर होकर चलो हमसे ,
तुम्हारे पास तो खड़ा होना भी मुश्किल है ....

रामलाल : (ठग नंबर 1 से) भैया ! जरा देखना ...मेरे
कपड़ों पर कहां लैट्रिन लगी है कृपया बता दें
तो मैं उसे साफ कर लूंगा ........

ठग नंबर 1 : अरे ! दूर हटो मुझसे , कुर्ते पर लगी
है और कहां ?

रामलाल : यहाँ नल हैं , मै अभी साफ कर लेता हूँ .....
भैया ( ठग नंबर 1 से) जरा नल चला दोगे ...

(रामलाल बंडी जिसमें पैसे थे उसे उतार कर कुर्ता साफ करने लगा)

ठग नंबर 1 : चलो ! मै नल चला देता हूँ , तुम कुर्ता ढ़ंग
से साफ कर लो .....

(ठग नंबर 2 चुपके से नोट के बंडल से भरी बंडी उठा कर ले गया)

रामलाल : अरे मेरी बंडी कहा गयी........

(ठग नंबर 1 भी बंडी ढूढने का बहाना कर गायब हो जाता है)

मोहन ( डॉ विनय का कंपाउंडर) : अरे ! यह लैटरीन
का निशान नहीं है , यह तो "खल" को पानी
में भिगो कर बनाया गया है .....

(यह सुन रामलाल जोर जोर से रोने लगा, ठगी हो चुकी थी )
मगर "अब पछताए होत क्या जब चिडियाँ चुग गयी खेत"

(नाटक समाप्त)

*पर्दा गिरता है*

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

कृपया पोस्ट को शेयर करे ............धन्यवाद