Tuesday, 8 September 2020

संसमरण

 संस्मरण : बचपन की मधुर यादे

जीके और मै दोनों ने जल्द ही अपना हाईस्कूल का पूरा सिलेबस कर लिया था और बोर्ड की परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हुए थे । उन दिनों प्री बोर्ड का चलन नहीं था , लिहाजा छमाही परीक्षा ही प्री बोर्ड की तरह होती थी । छमाई परीक्षाओं में पूरा कोर्स आता था , हम दोनों अपने क्लास टीचर से मिलने गए और उनसे पूछा की इस अर्धवार्षिक परीक्षा का क्या महत्व है । तब हमारे क्लास टीचर ने कहा कि यह परीक्षा सिर्फ प्रैक्टिस के लिए है, इसके नंबर कहीं नहीं जुड़ेंगे ।शायद इसका रिजल्ट भी ना आए, क्लास टीचर से बात कर हम हॉस्टल आ गए और यह सोचने लगे की अर्धवार्षिक परीक्षा दे या ना दे, पहले तो दोनों ने यह विचार करा की चलो परीक्षा देने में क्या हर्ज है और इस प्रकार पहला पेपर दे दिया । परंतु पहला पेपर देने के बाद दोनों ने सोचा इस प्रकार तो काफी समय नष्ट हो जाएगा , हम परीक्षा ना देकर के घर पर ही तैयारी करें तो ज्यादा बेहतर होगा । हॉस्टल के वॉर्डन , स्कूल के टीचर आदि जितने भी शुभचिंतक थे उन लोगों ने हमको बहुत समझाया कि यह परीक्षा तुम्हारे फायदे के लिए ही है, लेकिन हम मानने को तैयार नहीं थे । हमारा तर्क था कि हम घर पर ज्यादा बेहतर तरीके से तैयारी कर सकते हैं ।इस प्रकार हमने अगला पेपर छोड़ दिया ।
अब मैने और जीके ने सोचा की घर जाकर तो तैयारी करनी है , तो पहले आज चलो पिक्चर देख लेते हैं और दोनों पिक्चर देखने चले गए । अगले दिन हम बिलारी आ गए , वहां से जीके अपने गांव चले गए घर पहुंचकर मैने अपनी माता जी को सारी बात बताई कि वह अर्धवार्षिक परीक्षा नहीं दे रहे हैं और घर पर रहकर ही बोर्ड एग्जाम की तैयारी करेंगे । मेरी बात सुनकर माताजी चुप रही व कुछ ना बोली , जब दोपहर को पिता जी घर आए तो उन्होंने मेरे द्वारा कही गई सारी बात पिताजी को बताई , अभी यह बात चल ही रही थी कि किसी ने दरवाजा खटखटाया , मैने फौरन दरवाजा खोल कर देखा तो वहां जीके व उसके दोनों बड़े भाई खड़े थे । अब तो मेरे पिताजी व जीके के दोनों भाइयों ने मिलकर हम दोनों की बहुत डांट लगाई और हमे तुरंत वापस जाकर अर्धवार्षिक परीक्षा में शामिल होने का आदेश पारित कर दिया , अभी तो घर पर हमने पिक्चर वाली बात नहीं बताई थी वरना क्या होता कहना मुश्किल था । घरवालों के हुक्म के मुताबिक हम दोनों वापस हॉस्टल आ गए और अगले दिन की अर्धवार्षिक परीक्षा की तैयारी मे जुट गए , सुबह जब क्लास टीचर , वार्डन आदि लोगों ने हमे देखा तो वह मन ही मन मुस्कुराए और उन्हें समझते देर न लगी के कान कहां से उमठे गए हैं । कुछ दिन तक हमे बड़ा असहज लगा लेकिन बाद में जीवन चर्या आराम से बीतने लगी ।


(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
9410416986

No comments:

Post a Comment

कृपया पोस्ट को शेयर करे ............धन्यवाद