Tuesday, 29 September 2020

Lemon DETOX

 Lemon detox water is simply the juice of a lemon mixed with water. Drinking a glass of hot or warm lemon infused water in the morning has become a healthy daily habit for many people to assist with overall burn calories. Yes, this water naturally boosts our metabolism.

And not only is it an effective morning water, it tastes wonderful, too. It’s not difficult at all to make basic lemon infused water. If lemon juice is too strong , make a more mild version, cut the lemon into thin slices and drop them in the water.
Love You ALL! #detox

Lockdown lessons

 *Read Carefully* *Some important points*


_*1.* Postpone travel abroad for 2 years.._
_*2.* Do not eat outside food for 1 year.._
_*3.* Do not go to unnecessary marriage or other similar ceremony.._
_*4.* Do not take unnecessary travel trips.._
*5.* Do not go to a crowded place for at least 1 year.._g
_*6.* Completely follow social distancing norms.._
_*7.* Stay away from a person who has cough.._
_*8.* Keep the face mask on.._
_*9.* Be very careful in the current one week.._
_*10.* Do not let the any mess around you.._

_*11.* Prefer vegetarian food.._
_*12.* Do not go to the Cinema, Mall, Crowded Market for 6 Months now. If possible, Park, Party, etc. should also be avoided.._
_*13.* Increase immunity.._
_*14.* be very carefull while at Barber shop or at beauty Salon parlour.._
_*15.* Avoid Unnecessary Meetings, Always keep in mind Social Distancing.._
*16.* The threat of *CORONA* is not going to end soon.
*17.* Dont wear belt, rings, wrist watch, when you go out. Watch is not required. Your mobile has got time.
*18.* No hand kerchief. Take sanitiser & tissue if required.
*19.* Don't bring the shoes into your house. Leave them outside.
*20.* Clean your hands & legs when you come home from outside.
*21.* when you feel you have come nearer to a suspected patient take a thorough bath.

*Lockdown OR No Lockdown , Next 06 to 12 Months follow these Precautions.

Monday, 28 September 2020

अदिति

 संसमरणातमक प्रेरक कथा : 


"अदिति" 

EPISODE : 1

आज दिसम्बर की बीस तारीख सन् 2014 है को मैं और मेरी पत्नि डा0 सोनिया आहूजा (बी0ए0एम0एस0) ठिठुरते हुये दिल्ली के आनन्द बिहार बस स्टेण्ड पर एसी बस से उतरे। वहां हमने जस्ट डायल कम्पनी के माध्यम से पता किया कि आनन्द बिहार बस स्टैण्ड के निकट मेडिकल कोचिंग इस्टीट्यूट की कौन सी शाखा है। जस्ट डायल कम्पनी से हमें यह पता चला कि प्रीत बिहार में यहां से सबसे निकट मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा है। हमने बिना समय गवांये फौरन वहां के लिये आटो किया व जल्द ही कोचिग की ब्रांच पहुंच गये।
असल में मैं और मेरी पत्नी  मेरे बीमार चाचा जी की मिजाज पुर्शी के लिये दिल्ली आये थे, साथ ही हमारे जहन में अपनी बेटी अदिती अहूजा के लिये भविष्य में अच्छी कोचिंग, जोकि उसे मेडिकल प्रवेश परीक्षा में सहायक हो सके, का भी पता करने का था। ज्यादातर अपने मित्रगणों से सलाह के पश्चात मैं और मेरी पत्नि इस नतीजे पर पहुंचे कि यह इंस्टीट्यूट मेडिकल कोचिंग के लिये बेहतर विकल्प है।
हम मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की प्रीत विहार की शाखा में पंहुचकर वहां के अधिकारी से मिले तब हमें उन्होंने यह बताया कि मेडिकल प्रवेश परीक्षा की कोचिंग वह दसवीं क्लास के बाद करवाते हैं तथा दसवीं क्लास के दौरान वह एक स्कालरशिप परीक्षा का आयोजन करते हैं, जिसका नाम एन्थे हैं। उन्होंने हमसे सितम्बर माह में सम्पर्क करने को कहा जब अदिती दसवीं में हो तब। यह जानकारी हासिल कर हम लारेंस रोड स्थित अपने चाचा जी के आवास पर उनका हाल जानने पहुंच गये। इस बात को करीब एक वर्ष बीतने को था अदिती दसवीं में आ चुकी थी। हमें मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की एन्थे परीक्षा की बात ध्यान थी। परीक्षा का फार्म कैसे प्राप्त हो, यह बड़ी समस्या थी, तब हमारी बहन आरती डोगरा पत्नि श्री राजेश डोगरा निवासी चण्डीगढ़ ने वहां स्थित कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा से ऐन्थे का फार्म प्राप्त किया व स्पीड पोस्ट से हमें भेज दिया। अब ऐन्थे का फार्म भर कर हमें जमा करना था इसके लिये हमने कोचिंग इंस्टीट्यूट की मुख्य शाखा में फोन पर जानकारी हासिल की तो पता चला कि फार्म आप किसी भी मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा में जमा करवा सकते हैं। हमारे निकटतम मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा मेरठ में थी अतः हमने फार्म मेरठ स्थित अपने मौसेरे भाई श्री राजेश अरोरा जी को स्पीड पोस्ट कर दिया, श्री अरोरा जी ने स्वंय कोचिंग इंस्टीट्यूट के ऑफिस जाकर ऐन्थे का फार्म जमा किया।
दिसम्बर 2015 में ऐन्थे की परीक्षा हुई जिसका परीक्षा केन्द्र मेरठ ही था, मैं और मेरे मौसेरे भाई श्री राजेश जी अदिती को लेकर परीक्षा केन्द्र पहुंचे व 3 घण्टे परीक्षा के दौरान वही बाहर खड़े होकर उसका इंतजार करने लगे। परीक्षा के उपरान्त अदिती ने बताया कि परीक्षा अच्छी हुई है। तत्पश्चात मैं और अदिती बिलारी बापस आ गये व अदिती अपनी दसवीं की बोर्ड परीक्षा की तैयारी में जुट गई।
जनवरी 10 या 15 2016 की बात थी मैं मोबाइल में नेट चला रहा था दिमाग में आया चलो अदिती ने जो एन्थे की परीक्षा दी थी उसे जांच लेते हैं कि परीक्षा फल कब आयेगा। मैंने मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की साइट चैक करी तो पता चला कि एन्थे का परीक्षाफल तो आ चुका है, मैं फौरन भागा-भागा अपने कमरे में आया व अदिती का प्रवेश पत्र निकाल कर उसका रोल नम्बर देखा व फिर दोबारा से मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की बेवसाइट चेक करी तो एन्थे का रिजल्ट मेरे सामने था, मैं पैनी नजरों से अदिती का रोल नम्बर ढूढ रहा था, मैंने पहले 50% , 60% , 70% , 80% स्कालरशिप कॉलमों में अदिती का रोल नं0 देखा परन्तु मुझे उसका रोल नम्बर कही नहीं मिला। काफी खोजबीन करने पर मुझे ज्ञात हुआ कि रोल नं0 डालकर भी सीधा परीक्षाफल प्राप्त किया जा सकता है। मैंने अदिती का रोल नम्बर इन्स्टीट्यूट की साइट में डाला तो उसका परीक्षाफल देखकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। अदिती को 100% स्कालरशिप मिला था व उसकी ऑल इण्डिया रैक ढेड लाख बच्चों में से 121रैंक थी। इन्स्टीट्यूट में 100% स्कालरशिप का अर्थ करीब 3.50 लाख रूपये की छूट थी। घर में खुशी का माहौल था जैसे हमने आधा मैदान मार लिया था। मैने मेडिकल कोचिंग के मुख्य शाखा दिल्ली में फोन कर अदिती का परीक्षाफल कन्फर्म किया तब उन्होंने मुझे बताया कि अदिती को 100% स्कालरशिप मिला है व अदिती को इस्टीट्यूट में एक रूपया भी नहीं देना है । बल्कि वह 11वी व 12वी में  दो वर्षों तक अदिती को मेडिकल प्रवेश परीक्षा की कोचिंग करवायेगा। इसके साथ ही उन्होनें हमें पूरे भारत वर्ष में कोचिंग की किसी भी शाखा में फ्री (निशुल्क) कोचिंग का ऑफर दिया। मैंने उनसे सोचने के लिये कुछ वक्त मांगा कि कोचिंग कहा करवानी है, उन्होंने हमें 15-20 दिनों का वक्त दिया और कहा आप हमें सोच समझकर बता दें8। घर के सभी लोग अदिती के स्कूल से घर लौटने का इंतजार करने लगे ताकि उसे उसकी उपलब्धी से अवगत करा सके। अदिती के स्कूल से आते ही दादा, दादी, मम्मी, भाई पार्थ सबने उसे गले से लगा लिया व 100% स्कालरशिप व पूरे भारत में कहीं भी मेडिकल कोचिंग की बात बताई। अदिती ने अपने चिर परिचित अंदाज में कह दिया पापा वह पहले 10 की बोर्ड परीक्षा की तैयारी करेगी, 
 परीक्षा के बाद ही मेडिकल कोचिंग का सोचेगी। अब घर में मंथन शुरू हुआ कि अदिती कोचिंग कहा करेगी। सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि अदिती 10th डी०पी०एस०, मुरादाबाद से कर रही थी व हमारा 12वी भी वहीं से कराने का इरादा था। पता यह चला कि कोचिंग का समय सुबह 8 बजे से दोपहर 2.30 बजे तक है, तो अदिती अपनी 11/12वी की पढ़ाई कैसे करेगी। कुछ मित्रो ने सलाह दी कि डमी एडमीशन कराकर कोचिंग करा सकते हैं। किन्तु इसके लिये मन नहीं माना। अपनी दुविधा मैंने इन्स्टीट्यूट की मुख्य शाखा दिल्ली में फोन करके बताई कि हमारा परिवार अदिती को दिल्ली की साउथ एक्स शाखा में कोचिंग कराना चाहता है, किन्तु डी0पी0एस0 मुरादाबाद में भी एडमीशन बरकरार रखकर 11°/12 वी करवाना चाहते हैं, यह कैसे सम्भव होगा। हमारी दुविधा को इंस्टीट्यूट वालो ने समझा व हमें यह सलाह दी कि वह वीकेन्ड क्लास भी कोचिंग कराते है। उन्होने हमसे कहा कि आप डी0पी0एस0 मुरादाबाद में 11वी प्रवेश करा के सोमवार से शुक्रवार तक अदिती को पढ़ाकर शनिवार व रविवार को वीकेंड क्लासेस साउथ एक्स, दिल्ली शाखा में ज्वाइन करा सकते हैं। साथ ही उन्होनें यह भी कहा यह काम मुश्किल जरूर है लेकिन असम्भव नहीं है। मुझे उनकी वीकेंड क्लास वाली बात पसन्द आई व परिवार, मित्रों, अदिती को यकीन दिलाकर कि यही हमारे लिये सही है ,मैंने जनवरी 2016 के अन्तिम सप्ताह स्वंय जाकर इन्स्टीट्यूट की साउथ एक्स शाखा में अदिती का रजिस्ट्रेशन करा दिया। उन्होनें हमें मार्च 2016 की अन्तिम सप्ताह से वीकेंड क्लास शुरू होने की बात कहीं व समय से आने का निर्देश दिया।
मार्च 2016 से अन्तिम सप्ताह में अदिती की वीकेंड क्लासेस शुरू हो गई, मैं और अदिती प्रत्येक शुक्रवार शाम 4.30 बजे बिलारी से बस से निकलते 5.15 पर कोहिनूर चौराहा, मुरादाबाद पहुंचकर 5.30 बजे एसी0 बस दिल्ली जाने वाली पकड़ लेते थे, एसी0 बस ठीक रात्री 9 बजे कौशम्बी (दिल्ली) बस स्डेण्ड पहुंच जाती थी, वहां से साउथ एक्स, दिल्ली का आटो पकड़कर आर0के0 लौज पंहुच जाते थे। शनिवार सुबह 8 बजे अदिती कोचिंग क्लास चली जाती थी और मैं सुबह 9.30 बजे तैयार होकर चांदनी चौक, भागीरथ पैलेस सर्जीकल मार्केट चला जाता था। दोपहर 2.30 बजे अदिती की क्लास छूटती थी मैं भी 2.30 बजे तक सर्जिकल मार्केट से लौट आ जाता था। इसके बाद हम फोन पर बंगाली स्वीट को आडर देकर खाना मंगवाकर खाते थे। शाम 4.30 बजे तक आराम कर अदिती अपनी पढ़ाई में लग जाती , मैं भी कुछ किताब पड़ने या लिखने में लग जाता। रात्री 9.30 बजे मैं मैकडोनाल्ड से अदिती के लिये बर्गर आदि लाकर देता व कुछ हल्का फुल्का खुद खाकर 10 बजे तक सो जाता था। अदिती 12 या 1 बजे तक पढ़ती रहती थी। व रविवार सुबह 8 बजे उठकर कोचिंग क्लास चली जाती। रविवार के दिन में सुबह 11 बजे तक तैयार होकर कमरा खाली कर देता था व सारा सामान आर0के0 लौज के रिस्पशन पर रखकर, सर्जिकल सामान की सप्लाई के लिये निकट के मार्केट जैसे, कोटला, लाजपतनगर, आईएनए आदि चला जाता था। करीब 2.15 बजे दोपहर तक मार्केट से वापस आकर लौज से सारा सामान उठाकर मैं इस्टीट्यूट के बाहर अदिती के आने का इंतजार करता व ठीक दोपहर 2.30 बजे जब उसकी छुट्टी होती तो हम आटो से कौशम्बी बस स्टेण्ड आ जाते, वहां हम 3.30 या 4 बजे शाम वाली एसी बस से मुरादाबाद आ जाते, फिर मुरादाबाद से बिलारी की बस पकड़ कर रात्रि करीब 9 या 10 बजे तक बिलारी पहुंचते थे। ऐसा रूटीन था हमारा शुक्रवार से रविवार के मध्य और ऐसा रूटीन अप्रेल 2016 से सितम्बर 2016 तक लगातार चला। हमारे कई मित्र जब इस रूटीन को सुनते तो ताजुब्ब करते थे और कहते थे कि आपने बहुत मुश्किल राह चुन ली है, मगर मुझे गीता की उस श्लोक का स्मरण था जिसका अर्थ है "कर्म कर फल की चिन्ता मत कर" सितम्बर 2016 तक हम हर सप्ताह दिल्ली आते रहे व अदिती की पढ़ाई भी अच्छी चल रही थी। इस्टीट्यूट में होने वाले टेस्टों में अदिती अच्छा प्रदर्शन कर रही थी यह देखकर मेरी भी हिम्मत बढ़ती रही।
अचानक एक दिन सितम्बर 2016 के अन्तिम सप्ताह की बात है, अदिती घर में एक कमरे में लाइट बंद करके बैठी हुई थी। मैंने लाइट खोली तो देखा अदिती रो रही थी, मैंने अपनी पत्निी डा0 सोनिया आहूजा व माता जी को बुलाया व अदिती से रोने का कारण पूछां, अदिती ने रोते हुये कहा-पापा मैं बहुत थक जाती हूं व 11वी की पढ़ाई भी मैं ढंग से नहीं कर पा रही हूं। अदिती की बात सुनकर घर के सभी लोग स्तम्भ रह गये, लेकिन हमें अदिती की भावनओं को भी समझना था अतः हमने अदिती का पक्ष लेते हुये उसे समझाया कि हम सब उसके साथ वह अपनी पढ़ाई सम्बन्धी निर्णय लेने के लिये स्वतन्त्र है ।


EPISODE : 2

इसके बाद सितम्बर 2016 से हमनें दिल्ली कोचिंग की शाखा में जाना बन्द कर दिया। इधर अदिती भी अपनी 11वी की पढ़ाई में व्यस्त हो गई, दो तीन सप्ताह इस्टीट्यूट न जाने की बजह से हमें वहा से बार-बार फोन आने लगे कि आप क्यों नहीं आ रहे है। अदिती को एक माह लगातार 11वी की पढ़ाई मुरादाबाद करने के बाद अपनी भूल का अहसास हुआ व एक दिन वो मेरे व सोनिया के पास आकर बोली पापा मैं कोचिंग पुनः शुरू करना चाहती हूं। हमारी खुशी का ठिकाना न था, क्योंकि अदिती ने स्वंय कोचिंग करने को उसी शक्रवार से कोचिंग शुरू करने को कहा, हमने उससे पूछा कि पिछले एक माह में जो कोचिंग का नुकसान हुआ है उसे वह किस प्रकार पूरा करेगी। अदिती ने कहा मैं दिल्ली से मुरादाबाद जाने वाली बस में चार घण्टे मोबाइल पर यूट्यूब क्लास ले लेगी व रात को भी देर तक पढ़कर अपने एक माह के नुकसान की भरपाई कर लेगी। हमें अदिती पर पूर्ण विश्वास था और हमने उसकी कोचिंग पुनः चालू करवा दी। उसके बाद चाहे एक दिन के लिये भी क्लास लगी अदिती ने कभी छुट्टी नहीं की।
इस प्रकार हम अक्टूबर 2017 तक प्रत्येक शुक्रवार को दिल्ली आते रहे कभी अदिती की मम्मी व कभी दादी भी समय-समय पर उत्साहवर्धन के लिये उसके साथ दिल्ली आती रही।
अक्टूबर 2017 तक अदिती ने अपनी कोचिंग क्लास मे कक्षा 11 व 12* का पूरा कोर्स कर लिया उसके बाद मेडिकल कोचिंग इस्टीट्यूट की यह नियम था कि वह 11th का कोर्स दोबारा शुरू कर देते थे। अदिती ने हमसे कहा कि उसने 11 व 12* का कार्स अच्छे से कर लिया है। फिर 11th का कोर्स दोबारा करने के लिये वीकेंड पर आना जरूरी नहीं "मैं अच्छे से घर पर ही तैयारी कर पाउगीं।" हमने इस बार भी अदिती के निर्णय को प्रथमिकता दी व अक्टूबर 2017 से वीकेंड क्लास में आना बंद कर दिया।
अब अदिती ने घर पर ही तैयारी शुरू कर दी व अक्टूबर 2017 से दिसम्बर 2017 तक पूरी 11वी का कोर्स तैयार कर लिया। इसी बीच अदिती ने हमें बताया कि दिल्ली कोचिंग की भागदौड़ में वह 12th बोर्ड की परीक्षा की इंग्लिश की तैयारी नहीं कर पाई है। अदिती ने पहले यूट्यूब से इग्लिश की क्लास ली पर यूट्यूब में उसे काफी समय लग रहा था और बोर्ड परीक्षा काफी नजदीक थी। तब हमने मुरादाबाद एक अंग्रेजी की अध्यापिका जोकि काफी प्रतिष्ठित स्कूल में कार्यरत हैं उनसे मिलकर अपनी समस्या बताई। अदिती से मिलकर वो काफी प्रभावित हुई व उन्होनें अदिती को अंग्रेजी पढ़ाने का वादा किया। लेकिन उन्होने कहा कि वह कभी-कभी ही पढ़ा सकती है, हमने उनकी सभी शर्ते स्वीकर कर अदिती को वहां ट्यूशन शुरू कर दिया। अंग्रेजी की अध्यापिका ने 5 या 6 बार बुलाकर 3-3 घण्टे पढ़ाकर अंग्रेजी का 12 का कोर्स करा दिया परिणाम स्वरूप अदिती के 12 बोर्ड परीक्षा में पूरे स्कूल में अधिकतम नम्बर आये जो 96.4% थे। इसके अतिरिक्त अदिती ने पूरे जिले में चौथा स्थान प्राप्त किया।
अदिती 12वी की परीक्षा हो चुकी थी और वीकेंड क्लास जिसमें हम पिछले दो वर्षों से जा रहे थे उसकी मुख्य परीक्षा नीट 2018 भी होने वाली थी, चूंकि अदिती ने अक्टूबर 2017 से कोचिंग सेन्टर जाना बंद कर दिया था, अतः हमने परीक्षा के बीच करीब एक माह के समय में अदिती क्रेश कोर्स कर ले ताकि उसने जो भी दो वर्षों में तैयारी की है उसका रिविजन हो जाये। इसके लिये अदिती ने क्रेश कोर्स र्हेतु फिर स्कालरशिप की परीक्षा दी जिसमें उसे 80% स्कालरशिप मिली, हमने बाकी की 20% फीस देकर अदिती का क्रेश कोर्स में रजिस्ट्रेशन करा दिया।
चूंकि क्रेश कोर्स प्रतिदिन होना था, अतः हमने यह निर्णय लिया कि 12th की बोर्ड परीक्षा के तुरन्त बाद मैं अदिती के साथ दिल्ली में एक माह रहकर क्रेश कोर्स पूर्ण
करवाऊगां। जब क्रेश कोर्स से पूर्व हम दिल्ली पहुंचे तो हमें इन्स्टीट्यूट की शाखा से पता चला कि इस्टीट्यूट की तरफ से जो हमने दो वर्षों तक वीकेन्ड क्लास की थी उस पूरे कोर्स के 12 टेस्ट नीट 2018 से पहले लिये जायेगें। हम फिर दुविधा में फंस गये कि क्रेश कोर्स करे या 12 टेस्ट दें। हमने अदिती से उसकी राय पूछी तो उसने कहा कि हम जो कोर्स करने दिल्ली आये थे, उसे ही पूरा करेगें व उससे सम्बन्धित 12 पेपर देगें। अगर समय बचा तो क्रेश कोर्स के अन्त में मुख्य टेस्ट दे देगें। हमने एक बार अदिती के निर्णय को प्राथमिकता दी व नीट 2018 से पूर्व 12 टेस्ट दिये।
अंत में नीट 2018 के पेपर का दिन भी आ गया, उस पेपर का केन्द्र हमने दिल्ली ही रखा था ताकि अन्तिम समय में हमें इधर-उधर न भागना पड़े। पेपर से ठीक एक दिन पहले अदिती की मम्मी भी दिल्ली पहुंच गई ताकि अदिती का उत्साह वर्धन हो सके। अदिती का पेपर बंसत बिहार स्थित हरकिशन पब्लिक स्कूल में हुआ पेपर सुबह 10 से दोपहर 1 बजे तक था, मैं और सोनिया बाहर कड़कती धूप में इंतजार करते रहे, ठीक 1 बजे अदिती का पेपर खत्म हुआ बाहर आकर उसने हमसे कहा कि पेपर ठीक हो गया है। हमने ईश्वर का धन्यवाद दिया व चैन की सांस ली। उसके बाद हम आर0के0 लौज पहुंचे व अपना सारा सामान समेटकर बस द्वारा बिलारी की ओर रवाना हो गये व रात्रि 10 बजे तक बिलारी पहुंच गये।
अगले दिन अपने दो वर्षों की थकान मिटाकर सुबह सब तैयार बैठे थे, सभी ने परम पिता परमेश्वर से आर्शीवाद लेने का निर्णय किया व अदिती को लेकर हम मन्दिर पौड़ा खेड़ा पहुंचे व शिवलिंग पर जल चढ़ाकर ईश्वर से आर्शीवाद प्राप्त किया। मन्दिर से लौटकर मैंने अदिती को नेट से नीट 2018 की उत्तर कुंजी निकाल कर दी व उससे बिल्कुल सटीक नम्बर गिनने को कहा। अदिती ने तुरन्त ही उत्तर कुंजी से नम्बर गिनने शुरू किये व इस निष्कर्ष पर पहुंची थी उसके 581 से 590 नम्बर बीच नीट 2018 में आ जायेगें। यह सुन हमारा पूरा परिवार संतुष्ट हो गया कि अदिती अब डॉक्टर बनने के करीब है बस नीट 2018 के रिजल्ट आना बाकी है। अब वो दिन भी आ चुका था जब नीट 2018 का रिजल्ट आना था, असल में नीट ने पहले 5 जून 2018 रिजल्ट को कहा था, मैंने अनायास ही 4 जून 2018 को इन्स्टीट्यूट की शाखा दिल्ली में फोन कर लिया व पूछा कि नीट का रिजल्ट कब आयेगा, तब उन्होनें मुझे बताया कि
नीट 2018 का परीणाम आज ही आने वाला है। मैंने तुरन्त अदिती को तैयार होकर परम पिता से आर्शीवाद लेने को कहा, तत्पश्चात मैं व अदिती अपने घर के समीप गुल प्रिंटर्स पर रिजल्ट देखने पहुंचे, वहां पता चला कि रिजल्ट आ चुका है ।अदिती का रोल नम्बर व सेन्टर नं0 उन्हें बताया तब उन्होनें जैसे ही अदिती का रोल नम्बर व सेन्टर नं0 कम्प्यूटर में डाला तो रिजल्ट स्क्रीन पर था अदिती के 581 नम्बर आये थे और उसकी ऑल इण्डिया रैंक 2988 थी अब वह डॉक्टर बन चुकी थी। मेरे व अदिती की आंखो से आंसू निरन्तर बह रहे थे, हमारी दो वर्षों की मेहनत सफल हो चुकी थी। वहां खड़े सभी लोगों ने हमें ढेरो शुभकामनायें दी, हम नीट 2018 के रिजल्ट का प्रिंट आउट लेकर घर आ गये और ये खुश खबरी पूरे परिवार को बता दी। इसके बाद दोपहर एक 1 बजे से रात्रि 10 बजे तक फोन पर व व्यक्तिगत रूप से पूरे बिलारी के हमारे सभी मित्रों ने बधाई दी। पूरे परिवार में सभी हंस खुशी के पल में आंसू भी बहा रहे थे, ये खुशी के आंसू थे क्योंकि यह सफलता 2 वर्षों के अथक प्रयासों के बाद अर्जित हुई थी।
नीट 2018 के रिजल्ट के बाद काउंसलिंग का दौर शुरू हुआ जो करीब दो माह तक चला जिसमें अदिती को स्टेट काउंसिलिंग के माध्यम से कानपुर मेडिकल कालेज जी0एस0वी0एम0 में दाखिला मिला, चूंकि अदिती की स्टेट रैंक 263 व ऑल इण्डिया रैंक 2988 रही इस कारण अदिती अपनी पंसद का कॉलेज चुनने में भी सफल रही। आज अदिती जी०एस०वी०एम० मेडिकल कालेज, कानपुर में एम0बी0बी0एस की पढ़ाई कर रही है और अपना भविष्य संवारने के लिये प्रयासरत है, मैं उसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं। लेकिन जंग अभी जारी हैं........
इस प्रेरणा दायक कहानी लिखने का मेरा मकसद कोई सहानूभति लेना नहीं है, मैं बस इतना चाहता हूं कि इसे पढ़कर यदि एक छात्र भी प्रेरित होकर अपना भविष्य संवार पाये तो मेरा प्रयास सफल होगा।

(समाप्त)

धन्यवाद।

(स्वरचित)


विवेक आहूजा (अदिती का पिता )
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com

पकोड़ी का दोना

 नाटक 


"पकोड़ी का दोना"

पाञ :

1 - मुन्ना (उम्र 6 वर्ष)

2 - बबली (उम्र 10 वर्ष)

3 - ठग न0 1

4 - ठग न0 2

बाजार में सामान की रखवाली के लिए मुन्ना और बबली को छोड़कर उनके माता-पिता बाजार सामान लेने चले गए , साथ ही उन्हें ₹10 की पकौड़ी दिलवा गए ताकि वह सामान के पास बैठ कर उसे खाते रहे।

पर्दा उठता है :

मुन्ना : मम्मी मुझे पकौड़ी दिलवाकर गई हैं , मैं तुझे इसमें
से एक भी पकौड़ी नहीं खाने दूंगा ....

बबली : मुन्ना मेरे भैया एक पकौड़ी दे दे ना.....

मुन्ना : मैं नहीं दूंगा एक बार कह दिया ना ......

बबली : भैया मेरे भैया एक पकौड़ी दे दे ....

मुन्ना : नही दूंगा, नहीं दूंगा...................

ठग नंबर 1 : (मुन्ना के दोने से एक पकौड़ी निकाल
कर खा लेता है )

मुन्ना : यह मेरी पकौड़ी है , तुमने क्यों ली.....

बबली : तुमने मेरे भाई की पकौड़ी कैसे खाई ...

ठग नंबर 2 : (ठग नंबर 1 को एक चांटा
मारते हुए ) साले शर्म नहीं आती
बच्चों की पकौड़ी खा गया , जा
इन्हे सामने से पकौड़ी
दिलवा के ला .....

ठग नंबर 1 : ओह ! गलती हो गई ......मुझसे
"बच्चो" कान पकडता हूँ .....
चलो तुम्हें सामने ठेले से
"पकौड़ी का दोना" दिलवा कर लाता हूँ ।

ठग नंबर 1 : (पकौड़ी वाले के पास पहुंच कर )
अरे भैया , बच्चों को ₹10 की पकौड़ी दे
दो । (और वहां से ठग नंबर 1 नजर
बचाकर फरार हो गया )

ठग नंबर 2 बच्चों का सामान लेकर फरार हो गया ,
इस प्रकार बच्चों को "पकौड़ी का दोना" मिल जाता है और उनका सामान लूट जाता है ।

पर्दा गिरता है

(नाटक समाप्त)

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

कोरोना

 शीर्षक : कोरोना 


कोरोना बीमारी है ऐसी , इसका नाम बुरा होता है ।
हो जाए जिसे ये, उसका अंजाम बुरा होता है ।।
कोरोना के नाम पर , लोगों ने पैसा कमाया है बहुत ।
पर हम तो कहते हैं ,यह काम बुरा होता है।।
घर में बैठे हैं लोग , इस बीमारी के डर से ।
इससे ज्यादा , इसके लग जाने का इल्जाम बुरा होता है।।
मत घबरा ए बंदे, इस बीमारी के खौफ से ।
ठीक हो जाते हैं वो भी लोग, जिनका काम सुबह शाम
बुरा होता है ।।


(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com                                     

तुम्हारी बारी है

 "तुम्हारी बारी है"


बैनर टंग गया , मंच भी बन गया ।
नेता जी आ गए , मंच पर छा गए ।
जनता के बीच से आई आवाज "यह भ्रष्ट है , चोर है" नेताजी सकपकाए ,बोले मेरे भाये ।
मैं कुछ कहना चाहता हूं , आप ही का भ्राता हूं ।
नेता जी ने कहना शुरू किया , मैंने पैसा कमाया है ।
इसके पीछे , मेरे गरीब हालातों की छाया है ।
नेताजी आगे बोले , अब मैं कसम खाता हूं ।
नहीं दूंगा शिकायत का मौका , सबको बतलाता हूं ।
तभी नेता जी की पत्नी भी मंच पर खड़ी हो गई ।
उन्होंने कहा "यह इनकी बिल्कुल नई पारी है"
मेरा यकीन करो इस बार पैसा कमाने की "तुम्हारी बारी है"
जनता तो बेचारी है ,आज नेताजी की शपथ ग्रहण
की तैयारी है ।।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

Saturday, 26 September 2020

Aditi

 https://www.aakash.ac.in/blog/how-studying-at-aakash-institute-changed-the-life-of-aditi/amp/



Friday, 18 September 2020

सेटिंग

 कहानी : 

सैटिग
आज इलेक्शन का रिजल्ट आने वाला था ,दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं को पूर्ण यकीन था कि जीत हमारी ही होगी । पूरे वातावरण में नारेबाजी हो रही थी ,आखिर वह पल भी आ गया जब रिजल्ट की घोषणा हुई ,रमेश कुमार को निरंजन सिंह ने बहुत कम अंतर से हरा दिया था । निरंजन सिंह के कार्यकर्ताओं में जीत का उत्साह देखते ही बन रहा था ,वही रमेश कुमार के कार्यकर्ता हार से मायूस होकर घर की ओर प्रस्थान कर रहे थे । रमेश कुमार ने अपने कार्यकर्ताओं को ढांढस बधाते हुए कहा मायूस ना हो हम फिर जीतेंगे । सरकार भी बदल चुकी थी अब तो निरंजन सिंह को सरकार के विधायक का दर्जा प्राप्त था ।
रमेश कुमार ने अपने कार्यकर्ताओं की एक मीटिंग अपने घर पर बुलाई और बोले "अब हमारी सरकार नहीं रही लिहाजा सोच समझ कर चले और कोई भी गड़बड़ की तो मुझसे कोई उम्मीद ना रखें" निरंजन सिंह का स्वागत पूरे शहर में हो रहा था । आज गांधी मैदान में बहुत बड़ा जलसा होना था , जिसमें व्यापारी वर्ग विधायक निरंजन सिंह का स्वागत करने वाले थे ,समारोह शुरू हुआ विधायक जी को भाषण देने के लिए बुलाया गया , निरंजन सिंह बोले "यह जो रमेश कुमार है जो पहले आपका विधायक रहा था यह चोर है , लुटेरा है और अवैध तरीके से पैसा कमाता था मैं उसे जेल भिजवा कर रहूंगा" "हमारी सरकार चल रही है" समारोह में बहुत से रमेश कुमार के समर्थक भी बैठे थे ,यह सुन वह सब घबरा गए , यह तो हमारे नेता को भी नहीं छोड़ेगा जेल डलवाने की बात कर रहा है, हमारी तो औकात ही क्या है ।
कुछ दिन पश्चात रमेश कुमार के घर एक प्रोग्राम का आयोजन हुआ रमेश कुमार के कार्यकर्ताओं को भी नहीं पता था की आयोजन का मुख्य उद्देश्य क्या है । कुछ ही देर में नीली बत्ती गाड़ी के साथ निरंजन सिंह विधायक जी ने रमेश कुमार के घर प्रवेश किया , कार्यक्रम शुरू हुआ , रमेश कुमार के कार्यकर्ता यह देख भौचक्का रह गए की रमेश कुमार जी निरंजन सिंह विधायक के गले में माला डाल उनका स्वागत कर रहे थे । एक कार्यकर्ता ने रमेश कुमार के खासम खास ऐलची से पूछा "माजरा क्या है" ऐलची ने जवाब दिया ,अब आपको घबराने की कोई जरूरत नहीं है, हमारी विधायक जी से "सेटिंग" हो गई है। कार्यकर्ता ने ठंडी सांस ली और कार्यक्रम का आनंद लेने लगा ।


(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

Thursday, 17 September 2020

तू कित्ता की

 नाटक  : 

                              तू कित्ता की 

पाञ : 


1 - एस पी सिंह उर्फ शीतल प्रसाद 


2- वृद्ध व्यक्ति : शीतल प्रसाद के पिता 


3 -हासॅटल का गार्ड 



डॉ एस पी सिंह अपने पूरे मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल में शाही अंदाज के लिए जाना जाता था । उसके पास कपड़ों की,  जूतों की , भरमार थी कोट पैंट 6 जोड़ी , पेंट कमीज 12 जोड़ी , जूते 6 जोड़ी वगैरा वगैरा वगैरा ....

अपने इसी अंदाज के चलते हैं उसकी गिनती रईस छात्रों में होती थी । घर से अंधाधुध जेबखर्च  मिलने की वजह से एसपी सिंह 4 वर्ष होने के पश्चात भी मेडिकल कॉलेज में प्रथम वर्ष से आगे नहीं बढ़ पाया था । 


पर्दा उठता है 


 हॉस्टल के गेट पर एक शानदार गाड़ी आकर रूकी , उसमें से एक वृद्ध  सिल्क का सफेद कुर्ता पजामा पहने उत्तरे ,उन्होंने हॉस्टल के गार्ड से पूछा 


वृद्ध व्यक्ति  : भइया , शीतल प्रसाद का कमरा कहां है 


 गार्ड  : "अंकल जी  !  शीतल प्रसाद  नाम का तो कोई 

            छात्र यहां नहीं रहता , आप यह   बताएं  कि वे  

            मेडिकल के किस वर्ष में है" 


वृद्ध व्यक्ति  : शीतल मेडिकल के चौथे वर्ष में है ।


गार्ड : "सर मै अभी पता करता हूँ" 


         * कुछ देर बाद *


गार्ड  : सर मैने पता पता किया है , एक छाञ एस पी  

            सिंह है , मगर वो तो प्रथम वर्ष में है ।


वृद्ध व्यक्ति  : "क्या बकता है वो तो चौथे वर्ष में है"


गार्ड  : नहीं सर आपको कुछ गलत फहमी है वो प्रथम 

          वर्ष में ही है ।


*गुस्से से तमतमाये वृद्ध व्यक्ति एस पी सिंह उर्फ शीतल प्रसाद के कमरे में पहुंचे *


वृद्ध व्यक्ति  : आराम करदा पिया  है शीतल ....


शीतल उर्फ एस पी सिंह : नहीं पापा जी ऐवेई लेटा सी....


वृद्ध व्यक्ति  : गार्ड ते कैनदा हैं , तू पहले साल इच है ....


शीतल उर्फ एस पी सिंह  : वो पापा जी मै कैरया  सी ....


वृद्ध व्यक्ति  : "कोई गल नी .... तू           खेलया होऊगा , सिनेमा देखेया होऊगा....


 शीतलउर्फ एस पी सिंह  : "पापा जी मैं ते कोई खेल  नी खेलदा.... ते मेनू सिनेमा अच्छा नहीं लगदा....


वृद्ध व्यक्ति  :  "कोई गल नहीं तू कुड़ियां छेड़ी होंयेगी..... 


 शीतल  :  "कुड़िया नाल दे मेनू बड़ी शर्म आउदी है ......


वृद्ध व्यक्ति  :  "कोई गल नहीं तू ताश खेली होयेगी,  शराबा  पीती होउगी ......


 शीतल  :  "मेनू ताश खेलनी आंऊदी नी,  ते शराब  ना बाबा ना ......


शीतल के पिताजी ने बेत उठाया और  3/4 बेत  शीतल को लगाते हुए बोले  : जे तू खेलेया नी , शराबा नी पीती सिनेमा नी देखया   "तू  किता की"  चल सामान बांध ते चल पंजाब तेरे बस दी नी डॉक्टरी .....


पर्दा गिरता है 


इसके बाद एसपी सिंह उर्फ शीतल प्रसाद सिंह ने अपना पूरा समान बांधा और अपने पिताजी के साथ वापस पंजाब चले गये ।


                      ( नाटक समाप्त )


( स्वरचित )


विवेक आहूजा 

बिलारी 

जिला मुरादाबाद 

@ 9410416986

Vivekahuja288@gmail.com 


Hindi translation of punjabi words present in bold letters


तू कित्ता की  : तूने क्या किया  ( शीर्षक का अर्थ)



वृद्ध व्यक्ति  : आराम करदा  पिया है शीतल ....

                  ( आराम कर रहा है शीतल)

शीतल उर्फ एस पी सिंह : नहीं पापा जी ऐवेई लेटा सी....

                                 ( नहीं पापा जी ऐसे ही लेटा हूँ)

वृद्ध व्यक्ति  : गार्ड ते कैनदा हैं , तू पहले साल इच है ....

                 ( गार्ड कह रहा है तू पहले साल में है)

शीतल उर्फ एस पी सिंह  : वो पापा जी मै कैरया  सी ....

                           ( वो पापा जी मै कह रहा था)

वृद्ध व्यक्ति  : "कोई गल नी .... तू           खेलया होऊगा , सिनेमा देखेया होऊगा....

                    ( कोई बात नहीं  .... तू खेला होगा, तूने 

                      सिनेमा देखा होगा)


 शीतलउर्फ एस पी सिंह  : "पापा जी मैं ते कोई खेल  नी   खेलदा.... ते मेनू सिनेमा अच्छा नहीं लगदा....

                         ( पापा जी मै कोई खेल नहीं खेलता 

                           और सिनेमा मुझे अच्छा नहीं लगता)


वृद्ध व्यक्ति  :  "कोई गल नहीं तू कुड़ियां छेड़ी होंयेगी..... 

                   ( कोई बात नहीं,  तूने लड़कीयो को छेडा

                       होगा)


 शीतल  :  "कुड़िया नाल दे मेनू बड़ी शर्म आउदी है ......

              ( लडकियो से मुझे बडी शर्म आती हैं)


वृद्ध व्यक्ति  :  "कोई गल नहीं तू ताश खेली होयेगी,  शराबा  पीती होउगी ......

                  ( कोई बात नहीं,  तूने शराब पी होगी ताश

                    खेली होगी )


 शीतल  :  "मेनू ताश खेलनी आंऊदी नी,  ते शराब  ना बाबा ना ......

          ( मुझे ताश खेलनी नहीं आती और शराब तो न

             बाबा न .....)

Tuesday, 15 September 2020

दिखावा

 मुद्दा :


दिखावा

आज के दौर में समाज में उपस्थित सभी वर्ग में सोशल मीडिया ने अपने पांव पसार लिए हैं । सोशल मीडिया के विभिन्न एप्स जैसे फेसबुक, टि्वटर ,व्हाट्सएप आदि पूरे हिंदुस्तान पर अपना कब्जा जमा जमा हुए हैं ।चाहे 10 वर्ष का किशोर हो या 80 वर्ष का प्रौण सभी लोग इसकी चपेट में है ।कम उम्र के बच्चे अपनी उम्र अधिक दर्शा कर इसमें आसानी से अपना अकाउंट बना लेते हैं। इसमें प्रवेश संबंधी कोई सख्त कानून नहीं है, इसी कारण छोटे-छोटे बच्चे भी इसे आसानी से चला लेते हैं।
सोशल मीडिया में अपने आप को बड़ा दानवीर शूरवीर दिखाने का भी प्रचलन आजकल जोरों पर है। कुछ लोग गरीबों को सम्मान देते हुए या उनकी किसी प्रकार से मदद करते हुए फोटो पोस्ट करना बड़ा गर्व महसूस करते हैं। मुझे उनके मदद करने से कोई एतराज नहीं है बल्कि यह तो एक अच्छी बात है, मैं उनकी मदद करने की भावना की कद्र करता हूं, परंतु इन सोशल मीडिया के माध्यम से इस तरह की फोटो को पोस्ट करके दिखावा करना , इस नीति पर मुझे ऐतराज है। मेरा मानना यह है कि किसी गरीब की बार-बार मदद करना से अच्छा है उसे आत्मनिर्भर बनाया जाए, उसे कोई कार्य दिया जाए जिससे कि वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके और उसकी मांगने की आदत ना पड़े।
यदि आपको कोई दान ही करना है तो दान की महिमा दान को गुप्त रहने में ही है। यह बात हम नॉर्वे जो कि यूरोप का एक देश है भली-भांति सीख सकते हैं । मैं उसके विषय में आपके साथ दो चार बातें साझा करना चाहता हूं , उनकी इस प्रथा को देखकर हम सब को बड़ी हैरानी होगी कि लोग अपने लोगों की मदद किस प्रकार करते हैं। मदद करने वाले को यह पता नहीं होता कि मैं किसकी मदद कर रहा हूं और मदद लेने वाले को यह भी पता नहीं होता कि मैं किस से मदद ले रहा हूं । यह प्रथा अपने आप में बड़ी विचित्र है और इसे भारतवर्ष में भी अपनाने की अत्यंत आवश्यकता है।
इस बात को हम इस प्रकरण से आसानी से समझ सकते हैं ....
नॉर्वे के एक रेस्तरां के कैश काउंटर पर एक महिला आई और कहा, "पांच कॉफी, एक निलंबित" .
पांच कॉफी के पैसे दिए और चार कप कॉफी ले गई .
एक और आदमी आया , उसने कहा , "चार भोजन , दो निलंबित", उसने चार भोजन के लिए भुगतान किया और दो लंच पैकेट लिया .
एक और आया और उसने आदेश दिया , "दस कॉफी , छः निलंबित", उसने दस के लिए भुगतान किया और चार कॉफी ले ली .
थोड़ी देर के बाद एक बूढ़ा आदमी जर्जर कपड़ों मॅ काउंटर पर आया , "कोई निलंबित कॉफी है ?" उसने पूछा.
काउंटर पर मौजूद महिला ने कहा , "हाँ", और एक कप गर्म कॉफी उसको दे दी .
कुछ क्षण बाद जैसे ही एक और दाढ़ी वाला आदमी अंदर आया और उसने पूछा "एनी सस्पेंडेड मील्स ?" तो काउंटर पर मौजूद आदमी ने गर्म खाने का एक पार्सल और पानी की बोतल उसको दे दी .
अपनी पहचान न कराते हुए और किसी के चेहरे को जाने बिना भी अज्ञात गरीबों , जरुरमन्दों की मदद करना महान मानवता है ।
भारत में भी इस प्रकार की निलंबन प्रथा ( भोजन ) की संभावनाओं का पता लगाया जाना चाहिए ।

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com

लाडली

 लाडली


ओ मेरी लाडली , घर के बाहर तुम जाना नहीं ,
बाहर गर जाओ ,तो लेकर कुछ खाना नहीं ।
बड़ी हो गई हो तुम , ज्यादा पड़ेगा तुम्हें समझाना नहीं , वक्त है खराब ,भलाई का जमाना नहीं ।
अच्छे से समझ लो तुम ,गर तुमने मेरा कहा माना नहीं ,
जमाने का क्या भरोसा, बाद में पछताना नहीं ।।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com


बचपन

 "बचपन"

बचपन के दिन भूल ना जाना ,
रस्ते में वो चूरन खाना ,
छतों पे चढ़कर पतंग उड़ाना ,
रूठे यारों को वह मनाना ,बचपन के दिन भूल ना जाना । 
अपना था वो शाही जमाना ,
सिनेमा हॉल को भग जाना ,
दोस्तों की मंडली बनाना ,बचपन के दिन भूल न जाना । 
खेलने जाने का वो बहाना ,
पढ़ने से जी को चुराना ,
मास्टर जी से वो मार खाना, बचपन के दिन भूल ना जाना 
हाथ में होते थे चार आना , ।
फितरत होती थी सेठाना ,
मुश्किल है ये सब कुछ भुलाना, बचपन के दिन भूल ना
जाना ।।



(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986

हिंदी

 हिंदी दिवस के अवसर पर : 


प्रेमचंद हो ,महादेवी हो ,या हो जयशंकर प्रसाद । 
हिंदी दिवस पर आ रहे ,हमको सब ये याद ।
इन लोगों ने रखा है , सदा हिन्दी का मान ।
हमको अब हैं चाहिए, करना इनका सम्मान ।।


विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
Vivekahuja288@gmail.com 

हिंदी



"हिंदी"

कभी होती थी देश में ,भाषा हिंदी प्रधान ।
धीरे-धीरे खो रही , अपनी यह पहचान ।
कदम कदम पर हो रहा ,अब इसका अपमान ।
जगह जगह हो गया , कम इसका सम्मान ।
डिजिटल युग में हो रहा , नहीं इसका उत्थान ।
आंग्ल भाषा सबको प्रिय , इसका कौन करे गुणगान ।।


(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

Tuesday, 8 September 2020

आदर्श बहू

लघु कथा :
"आदर्श बहू"
आज मीना ने सुबह उठते ही एलान कर दिया "आज मेरा सम्मान समारोह है और मुझे पूरे दिन उसकी तैयारी करनी है, लिहाजा आप माता जी से कह दे कि वह अपना सारा काम खुद ही देख ले" रमेश ने भी चुपचाप मीना के ऐलान के सामने सरेंडर करते हुए हामी भर दी ।
सारा दिन मीना अपने कपड़ों की सेटिंग में लगी रही कि शाम को क्या पहनना है , कौन सी साड़ी मुझ पर अच्छी लगेगी ,मेकअप आदि .....
आखिर शाम को वह पल भी आ गया जिसका मीना को बरसों से इंतजार था । मंच से पुकार लगी श्रीमती मीना जी को उनकी पुस्तक "आदर्श बहू" के लिए इस वर्ष की सर्वश्रेष्ठ लेखिका का पुरस्कार दिया जाता है । ऐलान के साथ ही पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट के साथ गूंज उठा , मीना भी अपनी आंखों में चमक लिए स्टेज की तरफ बढ़ने लगी, रमेश व उसके माता-पिता सभागार में खोखली हंसी के साथ लोगों की शुभकामनाएं ग्रहण कर रहे थे ।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
Vivekahuja288@gmail.com
@9410416986

संसमरण

 संस्मरण : बचपन की मधुर यादे

जीके और मै दोनों ने जल्द ही अपना हाईस्कूल का पूरा सिलेबस कर लिया था और बोर्ड की परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हुए थे । उन दिनों प्री बोर्ड का चलन नहीं था , लिहाजा छमाही परीक्षा ही प्री बोर्ड की तरह होती थी । छमाई परीक्षाओं में पूरा कोर्स आता था , हम दोनों अपने क्लास टीचर से मिलने गए और उनसे पूछा की इस अर्धवार्षिक परीक्षा का क्या महत्व है । तब हमारे क्लास टीचर ने कहा कि यह परीक्षा सिर्फ प्रैक्टिस के लिए है, इसके नंबर कहीं नहीं जुड़ेंगे ।शायद इसका रिजल्ट भी ना आए, क्लास टीचर से बात कर हम हॉस्टल आ गए और यह सोचने लगे की अर्धवार्षिक परीक्षा दे या ना दे, पहले तो दोनों ने यह विचार करा की चलो परीक्षा देने में क्या हर्ज है और इस प्रकार पहला पेपर दे दिया । परंतु पहला पेपर देने के बाद दोनों ने सोचा इस प्रकार तो काफी समय नष्ट हो जाएगा , हम परीक्षा ना देकर के घर पर ही तैयारी करें तो ज्यादा बेहतर होगा । हॉस्टल के वॉर्डन , स्कूल के टीचर आदि जितने भी शुभचिंतक थे उन लोगों ने हमको बहुत समझाया कि यह परीक्षा तुम्हारे फायदे के लिए ही है, लेकिन हम मानने को तैयार नहीं थे । हमारा तर्क था कि हम घर पर ज्यादा बेहतर तरीके से तैयारी कर सकते हैं ।इस प्रकार हमने अगला पेपर छोड़ दिया ।
अब मैने और जीके ने सोचा की घर जाकर तो तैयारी करनी है , तो पहले आज चलो पिक्चर देख लेते हैं और दोनों पिक्चर देखने चले गए । अगले दिन हम बिलारी आ गए , वहां से जीके अपने गांव चले गए घर पहुंचकर मैने अपनी माता जी को सारी बात बताई कि वह अर्धवार्षिक परीक्षा नहीं दे रहे हैं और घर पर रहकर ही बोर्ड एग्जाम की तैयारी करेंगे । मेरी बात सुनकर माताजी चुप रही व कुछ ना बोली , जब दोपहर को पिता जी घर आए तो उन्होंने मेरे द्वारा कही गई सारी बात पिताजी को बताई , अभी यह बात चल ही रही थी कि किसी ने दरवाजा खटखटाया , मैने फौरन दरवाजा खोल कर देखा तो वहां जीके व उसके दोनों बड़े भाई खड़े थे । अब तो मेरे पिताजी व जीके के दोनों भाइयों ने मिलकर हम दोनों की बहुत डांट लगाई और हमे तुरंत वापस जाकर अर्धवार्षिक परीक्षा में शामिल होने का आदेश पारित कर दिया , अभी तो घर पर हमने पिक्चर वाली बात नहीं बताई थी वरना क्या होता कहना मुश्किल था । घरवालों के हुक्म के मुताबिक हम दोनों वापस हॉस्टल आ गए और अगले दिन की अर्धवार्षिक परीक्षा की तैयारी मे जुट गए , सुबह जब क्लास टीचर , वार्डन आदि लोगों ने हमे देखा तो वह मन ही मन मुस्कुराए और उन्हें समझते देर न लगी के कान कहां से उमठे गए हैं । कुछ दिन तक हमे बड़ा असहज लगा लेकिन बाद में जीवन चर्या आराम से बीतने लगी ।


(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
9410416986

Friday, 4 September 2020

पासा

कहानी :
"पासा"
एक दिन रमेश के पास उसके बड़े भाई अजय का फोन आया, हालचाल जानने के पश्चात अजय ने रमेश से कहा "तुम तो गांव में रहते हो वहां पढ़ाई के लिए कोई अच्छा स्कूल भी नहीं है , लिहाजा अपनी बेटी रमा को मेरे पास पढ़ने के लिए भेज दो , मेरी भी कोई बेटी नहीं है मुझे भी बेटी का सुख मिल जाएगा" यह सुन रमेश अति प्रसन्न हुआ कि उसके बड़े भाई उसका कितना ख्याल रखते हैं । घर में पत्नी से मंत्रणा कर रमेश ने अपने बेटे विनय को के साथ रमा को अजय के घर छोड़ने के लिए भेज दिया , घर पहुंचते ही ताई जी ने विनय से पूछा कैसे आना हुआ सब खैरियत तो है । यह सुन विनय को बड़ा अचरज हुआ कि अजय ताऊ जी ने घर पर कुछ नहीं बताया था । लेकिन फिर भी विनय ने ताई जी से कहा मैं रमा को आपके घर छोड़ने के लिए आया हूं ,ताकि यह शहर में पढ़ाई कर सकें । ताई जी विनय की बात सुन , चुप हो गई । चाय पानी के पश्चात ताई जी विनय से बोली चलो थोड़ा सैर कर आते हैं सेहत के लिए अच्छी होती है । विनय ने हामी भर दी और उनके साथ सैर करने चला गया । रस्ते में ताई जी ने विनय से कहा तुम्हारे ताऊजी की तुम्हारे पापा से क्या बात हुई मुझे नहीं पता , रमा यहां पर रहे मुझे इस पर कोई एतराज नहीं है , मगर मैं तो बस इतना कहना चाहती हूं की लड़की जात है अगर कोई ऊंच-नीच हो गई तो मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी । ताई जी अपना "पासा" फेंक चुकी थी, विनय भी काफी समझदार था वह उनका मतलब अच्छे से समझ गया था । वह चुप रहा और घर आकर रमा से बोला चलो वापस घर चलते हैं , इस वर्ष स्कूलों में सभी सीटें फुल हो गई हैं अगले वर्ष एडमिशन की पुनः कोशिश करेंगे ।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

Tirupati balaji

 



करोड़ों के चढ़ावे के बाद भी क्यों गरीब माने जाते हैं #तिरुपति_बालाजी_महाराज जानें क्या है पौराणिक कहानी
आंध्र प्रदेश में स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर चढ़ावे में आए सोना, चांदी, कीमती सामान और पैसों की वजह से सुर्खियों में रहता है। इसी वजह से तिरुपति बालाजी मंदिर को वीआईपी मंदिर भी माना जाता है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो हर साल भगवान तिरुपति पर करोड़ों का चढ़ावा चढ़ता है लेकिन फिर भी पौराणिक कहानी के अनुसार भगवान तिरुपति यानी विष्णु के अवतार इस देवता को गरीब माना जाता है। 
क्या है पौराणिक कहानी
प्राचीन कथा के अनुसार एक बार महर्षि  भृगु बैकुंठ पधारे और आते ही शेष शैय्या पर योगनिद्रा में लेटे भगवान विष्णु छाती पर एक लात मारी। भगवान विष्णु ने तुरंत भृगु के चरण पकड़ लिेए और पूछने लगे कि ऋषिवर पैर में चोट तो नहीं लगी। भगवान विष्णु  का इतना कहना था कि भृगु ऋषि ने दोनों हाथ जोड़ लिए और उन्होंने अपनी गलती स्वीकार कर ली। भृगु ऋषि हाथ जोड़कर बोले ‘प्रभु आप ही सबसे सहनशील देवता हैं इसलिए यज्ञ भाग के प्रमुख अधिकारी आप ही हैं, लेकिन इस अपमान से देवी लक्ष्मी भृगु ऋषि  को दंड देना चाहती थी। भगवान विष्णु केे कुछ न कहने पर देवी लक्ष्मी नाराज हो गई। नाराजगी इस बात से थी कि भगवान ने भृगु ऋषि को दंड क्यों नहीं दिेया। नाराजगी में देवी लक्ष्मी बैकुंठ छोड़कर चली गई। भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी को ढूंढना शुरु किया तो पता चला कि देवी ने पृथ्वी पर पद्मावती नाम की कन्या के रुप में जन्म लिया है। भगवान विष्णु ने भी तब अपना रुप बदला और पहुंच गए पद्मावती के पास। भगवान ने पद्मावती के सामने विुवाह का प्रस्ताव रखा जिसे देवी ने स्वीकार कर लिया लेकिन प्रश्न सामने यह आया कि विवाह के लिए धन कहां से आएगा।
देवी लक्ष्मी से शादी के लिए लिया कर्ज 
विष्णु जी ने समस्या का समाधान निकालने के लिए भगवान शिव और ब्रह्मा जी को साक्षी रखकर कुबेर से काफी धन कर्ज लिया। इस कर्ज से भगवान विष्णु के वेंकटेश रुप और देवी लक्ष्मी के अंश पद्मवती ने विवाह किया। कुबेर से कर्ज लेते समय भगवान ने वचन दिया था कि कलियुग के अंत तक वह अपना सारा कर्ज चुका देंगे। कर्ज समाप्त होने तक वह ब्याज चुकाते रहेंगे। भगवान के कर्ज में डूबे होने की इस मान्यता के कारण बड़ी मात्रा में भक्त धन-दौलत भेंट करते हैं, ताकि भगवान कर्ज मुक्त हो जाएं।


(संकलित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद 

मिञता modified

कहानी :

मिञता
                     
आज सुबह विनय ने काफी जल्दी मेडिकल की दुुकान खोल ली थी और लगातार कई डॉक्टरों के दवाई लेने आने के कारण वह काफी थक भी गया था तभी उसके सामने उसकी हम उम्र चश्मा लगाए हुए एक व्यक्ति अपने पूरे परिवार सहित खड़ा हो गया , एक बार को तो विनय भौचक्का रह गया और उछलकर अपने मित्र जीके को गले लगा लिया , तदोपरांत वह जीके को अपने निवास पर लाया वहा अपनी पत्नी व बच्चों से जीके का परिचय करवाया। विनय की माता जी व पिताजी जीके से भलीभांति परिचित थे ,जीके ने तुरंत ही विनय की माता जी का पिता जी के चरण स्पर्श करें वह उनका आशीर्वाद लिया ।सभी लोग परस्पर एक दूसरे को अपना परिचय दे रहे थे और बातचीत कर रहे थे तभी जीके के छोटे पुत्र ने जीके से कहा "पापा आपने हमें कभी विनय अंकल के बारे में नहीं बताया कि वह आपके इतने घनिष्ठ मित्र हैं" यह सुनकर जीके को कोई जवाब देते नहीं बन रहा था । तभी विनय ने बीच में बात काटते हुए जीके के पुत्र से कहा कि आप हमारी मित्रता के बारे में जानना चाहते हो। सभी बच्चों ने विनय को चारों ओर से घेर लिया और अपने बारे में बताने का अनुरोध करने लगे विनय ने जीके की अनुमति से सुनाना शुरू किया ...
यह उन दिनों की बात है जब विनय नवी कक्षा का छात्र था और पारकर कॉलेज के हॉस्टल में रहता था रोज की तरह सुबह तैयार होकर वह कॉलेज गया और कॉलेज के उपरांत जब वापस हॉस्टल में आया तो देखा की एक तगड़ा सा लड़का विनय की चारपाई पर बैठा हुआ है। दो व्यक्ति भी उस लड़के के साथ मौजूद थे ,उन्होंने विनय से पूछा कि "आप बिलारी रहते हो" तो विनय ने तुरंत हामी भर दी । उन्होंने बताया कि यह लड़का उनका छोटा भाई है। जिसका नाम जीके हैं और यह अब तुम्हारे साथ हॉस्टल में रहेगा जीके भी तब नवी कक्षा में थे । वह जीके का विनय से पहला परिचय था ,भाइयों के जाने के पश्चात जीके और विनय परस्पर काफी देर तक बातें करते रहे । हॉस्टल में जीके और विनय को एक ही कमरा एलॉट हुआ तथा उनकी अलमारी भी एक थी कुछ समय में ही जीके और विनय बहुत ही घनिष्ट मित्र हो गए अब चाहे सुबह उठना हो नाश्ता करना हो पढ़ाई करनी हो या कॉलेज जाना हो ,दोनों संग संग ही जाते थे । क्योंकि जीके का गांव बिलारी के नजदीक था लिहाजा बिलारी से मुरादाबाद व मुरादाबाद से बिलारी आना जाना है सभी संग संग ही होता था ।आपसी सौहार्द के बीच जीके और विनय ने नवी कक्षा अच्छे नंबरों से पास कर ली जीके के माता पिता व विनय के माता पिता दोनों की परीक्षा फल से काफी संतुष्ट थे ।नवी कक्षा के बाद अब दसवीं कक्षा में जीके और विनय पर बोर्ड परीक्षाओं का काफी दबाव था जीके के भाई ने 10वीं व 12वीं की परीक्षा में कॉलेज टॉप किया था लिहाजा जीके पर भी अच्छे नम्बर लाने के लिए काफी दबाव था। जीके समय-समय पर अपने भाई से बोर्ड परीक्षा में अच्छे नंबर लाने हेतु टिप्स ले लिया करते थे । जीके और विनय दोनों ने जल्द ही अपना हाईस्कूल का पूरा सिलेबस कर लिया था और बोर्ड की परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हुए थे , उन दिनों प्री बोर्ड का चलन नहीं था लिहाजा छमाही परीक्षा ही प्री बोर्ड की तरह होती थी छमाई परीक्षाओं में पूरा कोर्स आता था विनय और जीके दोनों अपनी अपने क्लास टीचर से छमाही परीक्षा के टाइम मिलने गए और उनसे पूछा की इस अर्धवार्षिक परीक्षा का क्या महत्व है , तब उनके क्लास टीचर ने कहा कि यह परीक्षा सिर्फ प्रैक्टिस के लिए है , इसके नंबर कहीं नहीं जुड़ेंगे शायद इसका रिजल्ट भी ना आए । अब जीके और विनय दोनों क्लास टीचर से बात कर कर हॉस्टल आ गए और यह सोचने लगे की अर्धवार्षिक परीक्षा दे या ना दे पहले तो दोनों में यह विचार करा की चलो परीक्षा देने में क्या हर्ज है और इस प्रकार पहला पेपर दे दिया , परंतु पहला पेपर देने के बाद दोनों ने सोचा इस प्रकार तो काफी समय नष्ट हो जाएगा , हम परीक्षा ना दे करके घर पर ही तैयारी करें तो ज्यादा बेहतर होगा । हॉस्टल के वॉर्डन स्कूल के टीचर आदि जितने भी शुभचिंतक थे उन लोगों ने विनय और जीके को को बहुत समझाया कि यह परीक्षा तुम्हारे फायदे के लिए ही है ,लेकिन विनय और जीके मानने को तैयार नहीं थे । उनका तर्क था कि हम घर पर ज्यादा बेहतर तरीके से तैयारी कर सकते हैं इस प्रकार विनय और जीके ने अगला पेपर छोड़ दिया ।अब विनय और जीके ने सोचा की घर जाकर तो तैयारी करनी है तो पहले आज चलो पिक्चर देख लेते हैं और दोनों पिक्चर देखने चले गए । अगले दिन विनय और जीके बिलारी आ गए वहां से जीके अपने गांव चले गए घर पहुंचकर विनय ने अपनी माता जी को सारी बात बताई कि वह अर्धवार्षिक परीक्षा नहीं दे रहे हैं और घर पर रहकर ही बोर्ड एग्जाम की तैयारी करेंगे विनय की बात सुनकर विनय की माताजी चुप रही और कुछ ना बोली जब दोपहर को विनय के पिता जी घर आए तो उन्होंने विनय के द्वारा कही गई सारी बात विनय के पिताजी को बताई ,अभी यह बात चल ही रही थी कि किसी ने दरवाजा खटखटाया और विनय ने फौरन दरवाजा खोल कर देखा जीके व उसके दोनों बड़े भाई विनय के घर आए हुए थे । अब तो विनय के पिताजी व जीके के दोनों भाइयों ने मिलकर विनय और जीके दोनों की बहुत डांट लगाई और उन्हें तुरंत वापस जाकर अर्धवार्षिक परीक्षा में शामिल होने के लिए कहा अभी तो घर में विनय और जीके ने पिक्चर वाली बात नहीं बताई थी , वरना क्या होता कहना मुश्किल था । घरवालों के हुक्म के मुताबिक विनय और जीके दोनों वापस हॉस्टल आ गए और अगले दिन की अर्धवार्षिक परीक्षा की तैयारी करने लगे सुबह जब क्लास टीचर , वार्डन आदि लोगों ने विनय और जीके को देखा तो वह मन ही मन मुस्कुराए और उन्हें समझते देर न लगी के कान कहां से उमेठे गए हैं । कुछ दिन तक तो विनय और जीके को बड़ा असहज लगा लेकिन बाद में जीवन चर्या आराम से बीतने लगी । जल्द ही अर्धवार्षिक परीक्षा का परिणाम भी आ गया विनय व जीके के सभी विषयों में नंबर अच्छे थे सिवाय उन दो पेपरों के जिनमें वह अनुपस्थित रहे थे । इसके पश्चात विनय व जीके दोनों अपने-अपने घर आ गए और बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी करने लगे । धीरे-धीरे बोर्ड की परीक्षाएं नजदीक आ रही थी और आखिर वह दिन भी आ गया जब बोर्ड की परीक्षाएं विनय और जीके को देनी थी । बोर्ड की सभी परीक्षाएं विनय और जीके की बहुत अच्छी हुई , परीक्षाओं के पश्चात विनय और जीके दोनों अपने-अपने घर आ गए और बोर्ड की परीक्षा का परिणाम का इंतजार करने लगे । उस समय इंटरनेट नहीं हुआ करता था इसलिए अखबारों में ही परीक्षा का परिणाम आया करता था विनय प्रथम श्रेणी में बोर्ड की परीक्षाओं में पास हुआ जिसकी सूचना विनय के ताऊ जी स्वयं लेकर चंदौसी से आए विनय को जीके के परिणाम की भी चिंता थी ।उसने अपने व्यक्तिगत सूत्रों से पता लगवाया की जीके का परीक्षा परिणाम क्या रहा तो पता चला कि जीके भी प्रथम श्रेणी में पास हुआ है । 8 दिनों बाद जीके और विनय दोनों अपनी मार्कशीट लेने कॉलेज साथ-साथ आए मार्कशीट आ चुकी थी। विनय और जीके दोनों मार्कशीट लेने तुरंत अपने क्लास टीचर के पास पहुंचे तो पता चला कि विनय के 65% वह जीके के 75% नंबर आए थे ,यह देख कर विनय का फ्यूज उड़ गया और वह सोचने लगा की जीके ने और उसने तैयारी तो साथ साथ की है लेकिन नंबरों में इतना फर्क कैसे 8 या 10 नंबर ज्यादा होते तो बात अलग थी ,मगर विनय ने जीके से उस समय कोई बात नहीं की और दोनों चुपचाप वापस बिलारी आ गए । घर पर सब बहुत खुश थे , विनय और जीके के माता पिता उनकी परफॉर्मेंस से अत्यंत प्रसन्न थे । परंतु विनय के मन में यह सवाल बार-बार खाए जा रहा था की जीके के नंबर इतने अधिक कैसे आए ,इसी दौरान जीके के यहां एक प्रोग्राम का निमंत्रण विनय के घर आया और जीके ने विनय से जरूर आने का वादा लिया, विनय जीके के घर प्रोग्राम से पूर्व भी पहुंच गया, वहा उनके माता-पिता का आशीर्वाद लिया, जीके का घर गांव में बड़ा आलीशान बना हुआ था । जीके अपने घर की छत पर विनय को ले गया वहां जीके और विनय दोनों चुपचाप बैठे रहे जीके विनय की प्रश्न सूचक दृष्टि भाप गया था और उसने विनय से पूछा कि तुम मेरे इतने अच्छे नंबरों से प्रसन्न नहीं हो , विनय ने जीके से कहा ऐसी कोई बात नहीं । जीके ने विनय से कहा मैं तुम्हारा मित्र हूं अगर कोई बात है तो मुझसे बेहिचक पूछो तब विनय ने जीके के ऊपर प्रश्नों की बौछार कर दी , जिसक सार यह था की जब वह दोनों साथ-साथ पढ़े साथ साथ घूमे और साथ साथ ही तैयारी करी तो दोनों के नंबरों में इतना फर्क कैसे । जीके यह सुन थोड़ी देर शांत रहे फिर उन्होंने बताया कि वह सिलेबस में प्रयुक्त गणित व साइंस की किताबों के अतिरिक्त अन्य किताबों से भी पढ़ाई किया करते थे । जिससे कि अच्छे नंबर आ सकें । विनय को जीके की यह बात सुनकर बहुत गुस्सा आया और विनय ने जीके से कहा कि यह बात तुम्हें मुझे बतानी चाहिए थी कि तुम अन्य लेखकों की किताबें भी पढ़ते हो , जीके ने तुरंत अपनी गलती स्वीकारी व भविष्य में कभी इस प्रकार की प्रतिस्पर्धा ना करने की कसम ली काफी देर आपसी बहस के बाद दोनों इस नतीजे पर पहुंचे की 11वीं कक्षा में एक जैसे विषय होने पर प्रतिस्पर्धा तो होगी और मित्रता बचानी मुश्किल हो जाएगी, अतः 11वीं में विनय और जीके ने अलग अलग विषयों का चयन किया इस प्रकार दोनों अपने-अपने विषयों में अपनी-अपनी तैयारी करते थे ।इस प्रकार दोनों ने 12वीं में गुड सेकंड डिवीजन से पास की विनय तत्पश्चात चंदौसी व जीके आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ चले गए । विनय और जीके का संपर्क काफी टाइम तक बना रहा परंतु अब की बार 10 वर्षों के पश्चात मुलाकात हुई यह कहकर विनय शांत हुआ और तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सभी बच्चों विनय और जीके की कहानी सुनकर खुश हुए । इसके पश्चात जीके ने विनय से विदा ली और जल्दी आने का वायदा किया।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
तिलक अस्पताल
बिलारी जिला मुरादाबाद
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