Monday, 28 September 2020

पकोड़ी का दोना

 नाटक 


"पकोड़ी का दोना"

पाञ :

1 - मुन्ना (उम्र 6 वर्ष)

2 - बबली (उम्र 10 वर्ष)

3 - ठग न0 1

4 - ठग न0 2

बाजार में सामान की रखवाली के लिए मुन्ना और बबली को छोड़कर उनके माता-पिता बाजार सामान लेने चले गए , साथ ही उन्हें ₹10 की पकौड़ी दिलवा गए ताकि वह सामान के पास बैठ कर उसे खाते रहे।

पर्दा उठता है :

मुन्ना : मम्मी मुझे पकौड़ी दिलवाकर गई हैं , मैं तुझे इसमें
से एक भी पकौड़ी नहीं खाने दूंगा ....

बबली : मुन्ना मेरे भैया एक पकौड़ी दे दे ना.....

मुन्ना : मैं नहीं दूंगा एक बार कह दिया ना ......

बबली : भैया मेरे भैया एक पकौड़ी दे दे ....

मुन्ना : नही दूंगा, नहीं दूंगा...................

ठग नंबर 1 : (मुन्ना के दोने से एक पकौड़ी निकाल
कर खा लेता है )

मुन्ना : यह मेरी पकौड़ी है , तुमने क्यों ली.....

बबली : तुमने मेरे भाई की पकौड़ी कैसे खाई ...

ठग नंबर 2 : (ठग नंबर 1 को एक चांटा
मारते हुए ) साले शर्म नहीं आती
बच्चों की पकौड़ी खा गया , जा
इन्हे सामने से पकौड़ी
दिलवा के ला .....

ठग नंबर 1 : ओह ! गलती हो गई ......मुझसे
"बच्चो" कान पकडता हूँ .....
चलो तुम्हें सामने ठेले से
"पकौड़ी का दोना" दिलवा कर लाता हूँ ।

ठग नंबर 1 : (पकौड़ी वाले के पास पहुंच कर )
अरे भैया , बच्चों को ₹10 की पकौड़ी दे
दो । (और वहां से ठग नंबर 1 नजर
बचाकर फरार हो गया )

ठग नंबर 2 बच्चों का सामान लेकर फरार हो गया ,
इस प्रकार बच्चों को "पकौड़ी का दोना" मिल जाता है और उनका सामान लूट जाता है ।

पर्दा गिरता है

(नाटक समाप्त)

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

कोरोना

 शीर्षक : कोरोना 


कोरोना बीमारी है ऐसी , इसका नाम बुरा होता है ।
हो जाए जिसे ये, उसका अंजाम बुरा होता है ।।
कोरोना के नाम पर , लोगों ने पैसा कमाया है बहुत ।
पर हम तो कहते हैं ,यह काम बुरा होता है।।
घर में बैठे हैं लोग , इस बीमारी के डर से ।
इससे ज्यादा , इसके लग जाने का इल्जाम बुरा होता है।।
मत घबरा ए बंदे, इस बीमारी के खौफ से ।
ठीक हो जाते हैं वो भी लोग, जिनका काम सुबह शाम
बुरा होता है ।।


(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com                                     

तुम्हारी बारी है

 "तुम्हारी बारी है"


बैनर टंग गया , मंच भी बन गया ।
नेता जी आ गए , मंच पर छा गए ।
जनता के बीच से आई आवाज "यह भ्रष्ट है , चोर है" नेताजी सकपकाए ,बोले मेरे भाये ।
मैं कुछ कहना चाहता हूं , आप ही का भ्राता हूं ।
नेता जी ने कहना शुरू किया , मैंने पैसा कमाया है ।
इसके पीछे , मेरे गरीब हालातों की छाया है ।
नेताजी आगे बोले , अब मैं कसम खाता हूं ।
नहीं दूंगा शिकायत का मौका , सबको बतलाता हूं ।
तभी नेता जी की पत्नी भी मंच पर खड़ी हो गई ।
उन्होंने कहा "यह इनकी बिल्कुल नई पारी है"
मेरा यकीन करो इस बार पैसा कमाने की "तुम्हारी बारी है"
जनता तो बेचारी है ,आज नेताजी की शपथ ग्रहण
की तैयारी है ।।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

Saturday, 26 September 2020

Aditi

 https://www.aakash.ac.in/blog/how-studying-at-aakash-institute-changed-the-life-of-aditi/amp/



Friday, 18 September 2020

सेटिंग

 कहानी : 

सैटिग
आज इलेक्शन का रिजल्ट आने वाला था ,दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं को पूर्ण यकीन था कि जीत हमारी ही होगी । पूरे वातावरण में नारेबाजी हो रही थी ,आखिर वह पल भी आ गया जब रिजल्ट की घोषणा हुई ,रमेश कुमार को निरंजन सिंह ने बहुत कम अंतर से हरा दिया था । निरंजन सिंह के कार्यकर्ताओं में जीत का उत्साह देखते ही बन रहा था ,वही रमेश कुमार के कार्यकर्ता हार से मायूस होकर घर की ओर प्रस्थान कर रहे थे । रमेश कुमार ने अपने कार्यकर्ताओं को ढांढस बधाते हुए कहा मायूस ना हो हम फिर जीतेंगे । सरकार भी बदल चुकी थी अब तो निरंजन सिंह को सरकार के विधायक का दर्जा प्राप्त था ।
रमेश कुमार ने अपने कार्यकर्ताओं की एक मीटिंग अपने घर पर बुलाई और बोले "अब हमारी सरकार नहीं रही लिहाजा सोच समझ कर चले और कोई भी गड़बड़ की तो मुझसे कोई उम्मीद ना रखें" निरंजन सिंह का स्वागत पूरे शहर में हो रहा था । आज गांधी मैदान में बहुत बड़ा जलसा होना था , जिसमें व्यापारी वर्ग विधायक निरंजन सिंह का स्वागत करने वाले थे ,समारोह शुरू हुआ विधायक जी को भाषण देने के लिए बुलाया गया , निरंजन सिंह बोले "यह जो रमेश कुमार है जो पहले आपका विधायक रहा था यह चोर है , लुटेरा है और अवैध तरीके से पैसा कमाता था मैं उसे जेल भिजवा कर रहूंगा" "हमारी सरकार चल रही है" समारोह में बहुत से रमेश कुमार के समर्थक भी बैठे थे ,यह सुन वह सब घबरा गए , यह तो हमारे नेता को भी नहीं छोड़ेगा जेल डलवाने की बात कर रहा है, हमारी तो औकात ही क्या है ।
कुछ दिन पश्चात रमेश कुमार के घर एक प्रोग्राम का आयोजन हुआ रमेश कुमार के कार्यकर्ताओं को भी नहीं पता था की आयोजन का मुख्य उद्देश्य क्या है । कुछ ही देर में नीली बत्ती गाड़ी के साथ निरंजन सिंह विधायक जी ने रमेश कुमार के घर प्रवेश किया , कार्यक्रम शुरू हुआ , रमेश कुमार के कार्यकर्ता यह देख भौचक्का रह गए की रमेश कुमार जी निरंजन सिंह विधायक के गले में माला डाल उनका स्वागत कर रहे थे । एक कार्यकर्ता ने रमेश कुमार के खासम खास ऐलची से पूछा "माजरा क्या है" ऐलची ने जवाब दिया ,अब आपको घबराने की कोई जरूरत नहीं है, हमारी विधायक जी से "सेटिंग" हो गई है। कार्यकर्ता ने ठंडी सांस ली और कार्यक्रम का आनंद लेने लगा ।


(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

Thursday, 17 September 2020

तू कित्ता की

 नाटक  : 

                              तू कित्ता की 

पाञ : 


1 - एस पी सिंह उर्फ शीतल प्रसाद 


2- वृद्ध व्यक्ति : शीतल प्रसाद के पिता 


3 -हासॅटल का गार्ड 



डॉ एस पी सिंह अपने पूरे मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल में शाही अंदाज के लिए जाना जाता था । उसके पास कपड़ों की,  जूतों की , भरमार थी कोट पैंट 6 जोड़ी , पेंट कमीज 12 जोड़ी , जूते 6 जोड़ी वगैरा वगैरा वगैरा ....

अपने इसी अंदाज के चलते हैं उसकी गिनती रईस छात्रों में होती थी । घर से अंधाधुध जेबखर्च  मिलने की वजह से एसपी सिंह 4 वर्ष होने के पश्चात भी मेडिकल कॉलेज में प्रथम वर्ष से आगे नहीं बढ़ पाया था । 


पर्दा उठता है 


 हॉस्टल के गेट पर एक शानदार गाड़ी आकर रूकी , उसमें से एक वृद्ध  सिल्क का सफेद कुर्ता पजामा पहने उत्तरे ,उन्होंने हॉस्टल के गार्ड से पूछा 


वृद्ध व्यक्ति  : भइया , शीतल प्रसाद का कमरा कहां है 


 गार्ड  : "अंकल जी  !  शीतल प्रसाद  नाम का तो कोई 

            छात्र यहां नहीं रहता , आप यह   बताएं  कि वे  

            मेडिकल के किस वर्ष में है" 


वृद्ध व्यक्ति  : शीतल मेडिकल के चौथे वर्ष में है ।


गार्ड : "सर मै अभी पता करता हूँ" 


         * कुछ देर बाद *


गार्ड  : सर मैने पता पता किया है , एक छाञ एस पी  

            सिंह है , मगर वो तो प्रथम वर्ष में है ।


वृद्ध व्यक्ति  : "क्या बकता है वो तो चौथे वर्ष में है"


गार्ड  : नहीं सर आपको कुछ गलत फहमी है वो प्रथम 

          वर्ष में ही है ।


*गुस्से से तमतमाये वृद्ध व्यक्ति एस पी सिंह उर्फ शीतल प्रसाद के कमरे में पहुंचे *


वृद्ध व्यक्ति  : आराम करदा पिया  है शीतल ....


शीतल उर्फ एस पी सिंह : नहीं पापा जी ऐवेई लेटा सी....


वृद्ध व्यक्ति  : गार्ड ते कैनदा हैं , तू पहले साल इच है ....


शीतल उर्फ एस पी सिंह  : वो पापा जी मै कैरया  सी ....


वृद्ध व्यक्ति  : "कोई गल नी .... तू           खेलया होऊगा , सिनेमा देखेया होऊगा....


 शीतलउर्फ एस पी सिंह  : "पापा जी मैं ते कोई खेल  नी खेलदा.... ते मेनू सिनेमा अच्छा नहीं लगदा....


वृद्ध व्यक्ति  :  "कोई गल नहीं तू कुड़ियां छेड़ी होंयेगी..... 


 शीतल  :  "कुड़िया नाल दे मेनू बड़ी शर्म आउदी है ......


वृद्ध व्यक्ति  :  "कोई गल नहीं तू ताश खेली होयेगी,  शराबा  पीती होउगी ......


 शीतल  :  "मेनू ताश खेलनी आंऊदी नी,  ते शराब  ना बाबा ना ......


शीतल के पिताजी ने बेत उठाया और  3/4 बेत  शीतल को लगाते हुए बोले  : जे तू खेलेया नी , शराबा नी पीती सिनेमा नी देखया   "तू  किता की"  चल सामान बांध ते चल पंजाब तेरे बस दी नी डॉक्टरी .....


पर्दा गिरता है 


इसके बाद एसपी सिंह उर्फ शीतल प्रसाद सिंह ने अपना पूरा समान बांधा और अपने पिताजी के साथ वापस पंजाब चले गये ।


                      ( नाटक समाप्त )


( स्वरचित )


विवेक आहूजा 

बिलारी 

जिला मुरादाबाद 

@ 9410416986

Vivekahuja288@gmail.com 


Hindi translation of punjabi words present in bold letters


तू कित्ता की  : तूने क्या किया  ( शीर्षक का अर्थ)



वृद्ध व्यक्ति  : आराम करदा  पिया है शीतल ....

                  ( आराम कर रहा है शीतल)

शीतल उर्फ एस पी सिंह : नहीं पापा जी ऐवेई लेटा सी....

                                 ( नहीं पापा जी ऐसे ही लेटा हूँ)

वृद्ध व्यक्ति  : गार्ड ते कैनदा हैं , तू पहले साल इच है ....

                 ( गार्ड कह रहा है तू पहले साल में है)

शीतल उर्फ एस पी सिंह  : वो पापा जी मै कैरया  सी ....

                           ( वो पापा जी मै कह रहा था)

वृद्ध व्यक्ति  : "कोई गल नी .... तू           खेलया होऊगा , सिनेमा देखेया होऊगा....

                    ( कोई बात नहीं  .... तू खेला होगा, तूने 

                      सिनेमा देखा होगा)


 शीतलउर्फ एस पी सिंह  : "पापा जी मैं ते कोई खेल  नी   खेलदा.... ते मेनू सिनेमा अच्छा नहीं लगदा....

                         ( पापा जी मै कोई खेल नहीं खेलता 

                           और सिनेमा मुझे अच्छा नहीं लगता)


वृद्ध व्यक्ति  :  "कोई गल नहीं तू कुड़ियां छेड़ी होंयेगी..... 

                   ( कोई बात नहीं,  तूने लड़कीयो को छेडा

                       होगा)


 शीतल  :  "कुड़िया नाल दे मेनू बड़ी शर्म आउदी है ......

              ( लडकियो से मुझे बडी शर्म आती हैं)


वृद्ध व्यक्ति  :  "कोई गल नहीं तू ताश खेली होयेगी,  शराबा  पीती होउगी ......

                  ( कोई बात नहीं,  तूने शराब पी होगी ताश

                    खेली होगी )


 शीतल  :  "मेनू ताश खेलनी आंऊदी नी,  ते शराब  ना बाबा ना ......

          ( मुझे ताश खेलनी नहीं आती और शराब तो न

             बाबा न .....)

Tuesday, 15 September 2020

दिखावा

 मुद्दा :


दिखावा

आज के दौर में समाज में उपस्थित सभी वर्ग में सोशल मीडिया ने अपने पांव पसार लिए हैं । सोशल मीडिया के विभिन्न एप्स जैसे फेसबुक, टि्वटर ,व्हाट्सएप आदि पूरे हिंदुस्तान पर अपना कब्जा जमा जमा हुए हैं ।चाहे 10 वर्ष का किशोर हो या 80 वर्ष का प्रौण सभी लोग इसकी चपेट में है ।कम उम्र के बच्चे अपनी उम्र अधिक दर्शा कर इसमें आसानी से अपना अकाउंट बना लेते हैं। इसमें प्रवेश संबंधी कोई सख्त कानून नहीं है, इसी कारण छोटे-छोटे बच्चे भी इसे आसानी से चला लेते हैं।
सोशल मीडिया में अपने आप को बड़ा दानवीर शूरवीर दिखाने का भी प्रचलन आजकल जोरों पर है। कुछ लोग गरीबों को सम्मान देते हुए या उनकी किसी प्रकार से मदद करते हुए फोटो पोस्ट करना बड़ा गर्व महसूस करते हैं। मुझे उनके मदद करने से कोई एतराज नहीं है बल्कि यह तो एक अच्छी बात है, मैं उनकी मदद करने की भावना की कद्र करता हूं, परंतु इन सोशल मीडिया के माध्यम से इस तरह की फोटो को पोस्ट करके दिखावा करना , इस नीति पर मुझे ऐतराज है। मेरा मानना यह है कि किसी गरीब की बार-बार मदद करना से अच्छा है उसे आत्मनिर्भर बनाया जाए, उसे कोई कार्य दिया जाए जिससे कि वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके और उसकी मांगने की आदत ना पड़े।
यदि आपको कोई दान ही करना है तो दान की महिमा दान को गुप्त रहने में ही है। यह बात हम नॉर्वे जो कि यूरोप का एक देश है भली-भांति सीख सकते हैं । मैं उसके विषय में आपके साथ दो चार बातें साझा करना चाहता हूं , उनकी इस प्रथा को देखकर हम सब को बड़ी हैरानी होगी कि लोग अपने लोगों की मदद किस प्रकार करते हैं। मदद करने वाले को यह पता नहीं होता कि मैं किसकी मदद कर रहा हूं और मदद लेने वाले को यह भी पता नहीं होता कि मैं किस से मदद ले रहा हूं । यह प्रथा अपने आप में बड़ी विचित्र है और इसे भारतवर्ष में भी अपनाने की अत्यंत आवश्यकता है।
इस बात को हम इस प्रकरण से आसानी से समझ सकते हैं ....
नॉर्वे के एक रेस्तरां के कैश काउंटर पर एक महिला आई और कहा, "पांच कॉफी, एक निलंबित" .
पांच कॉफी के पैसे दिए और चार कप कॉफी ले गई .
एक और आदमी आया , उसने कहा , "चार भोजन , दो निलंबित", उसने चार भोजन के लिए भुगतान किया और दो लंच पैकेट लिया .
एक और आया और उसने आदेश दिया , "दस कॉफी , छः निलंबित", उसने दस के लिए भुगतान किया और चार कॉफी ले ली .
थोड़ी देर के बाद एक बूढ़ा आदमी जर्जर कपड़ों मॅ काउंटर पर आया , "कोई निलंबित कॉफी है ?" उसने पूछा.
काउंटर पर मौजूद महिला ने कहा , "हाँ", और एक कप गर्म कॉफी उसको दे दी .
कुछ क्षण बाद जैसे ही एक और दाढ़ी वाला आदमी अंदर आया और उसने पूछा "एनी सस्पेंडेड मील्स ?" तो काउंटर पर मौजूद आदमी ने गर्म खाने का एक पार्सल और पानी की बोतल उसको दे दी .
अपनी पहचान न कराते हुए और किसी के चेहरे को जाने बिना भी अज्ञात गरीबों , जरुरमन्दों की मदद करना महान मानवता है ।
भारत में भी इस प्रकार की निलंबन प्रथा ( भोजन ) की संभावनाओं का पता लगाया जाना चाहिए ।

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com

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