Tuesday, 29 December 2020

Learning of lockdown

 article :


                  "Learning of lockdown"


This corona call has caused a terrible crisis all over the world. Every country, individual, community is struggling with this crisis, people are imprisoned in homes. Organizations like the government, health department, WHO etc. have issued a lot of guidelines from time to time to prevent this epidemic, and have also put lockdowns. This type of crisis is seen for the first time in the present India and the people are fully supporting the guidelines of the government. People have been locked in houses for hundreds of days in lockdown and are awaiting the exit of the epidemic. The time of lock-down has been painful for many people in India as people lost their jobs during this period, business class business is towards an end. But we have a lot to learn from this lockdown. Today we will discuss this subject in a systematic way, what we learned in this difficult time of lockdown.

 1 - Until now, it was believed that the level of health services in India is not very good.

 Because much richer countries like America, Russia, France, Italy have much better health facilities than here, but in this epidemic, doctors of India have proved that the level of healthcare here is ahead of European countries. We can say this because if we observe the mortality rate in this epidemic, then the death rate of those who died of this disease in India is much lower than in other countries and this is because the doctors here have given their merit to this corona It is shown by proving in the call.

2 - Avoidance of junk food is very important in the guidelines issued by WHO in this epidemic, because junk food is available mostly on the market in the market and there is a danger of infection going home. For this reason junk food is said to be avoided. At one time in India, more than 50% of children or old people were using junk food every day and this was affecting their health. But in this lockdown, people are enjoying homemade delicacies and have called junk food bye-bye, so better eating homemade food has led to good health for the people, which also has great immunity to them.

3 - It has also been proved in this lockdown that it is better to facilitate mutual relations by gathering a large number of people, that at least domestic arrangements should be organized among the people, this saves a lot of extravagance and mutual harmony. It used to be strong. Earlier people used to show their clout by inviting hundreds of thousands of people in wedding ceremonies, but now this event is being organized among 50 people, in all this, the extravagance done by people has been put to a break.

 4 - Now we are talking about the important learning of this lock-down, during this time, people have done their own work by cutting their hair, shaving, cooking, etc., as a result of this, they did not go out and do it at home Due to these actions taken, people save a lot of money.

5 - In this lockdown, it is best realized that there is no better capital than health in the world, because if it had not happened, even the biggest capitalists would not have died due to this disease, whereas those whose people Health is good, they are not easily caught in it and if they come due to any reason, then they are able to get out of it due to their good immunity.

6 - In this lockdown, people have made good use of their time by staying indoors and have tried to take out their inner talent by taking learning classes through internet. Many people wrote stories, poems, some learned to sing from YouTube, some learned to dance, and some even made it to the YouTube channel, thus this time proved to be a perfect time to enhance their inner talent. is .

7 - In the end, we learned the biggest and most important thing about this Lok Down, that nothing more than family, people who used to roam around in connection with the work throughout the year, now got a chance to be with their family. is . No matter how close you are in this Corona period, he has also welcomed you outside the house, and finally we have found refuge at home. In many families, mutual differences between family members have also reduced considerably during this period. Therefore, the importance of family has come to the understanding of the people well, this lockdown has come as a strengthening factor to the family.



( Self made )


Vivek Ahuja

Bilari

District Moradabad

@ 9410416986

@ 8923831037


Vivekahuja288@gmail.com

Sunday, 15 November 2020

"रेट वेट और क्वालिटी"

 


"रेट वेट और क्वालिटी"

सुधा आज पहली बार दिल्ली अपनी छोटी बहन सुमन के घर आई थी । घर पर आते ही सुधा ने सुमन की क्लास लगानी शुरू कर दी , जैसे यह समान कहां से लाती है घर खर्च कैसे करती हो फिजूलखर्ची तो नहीं करती हो ।सीधी साधी सुमन अपनी बड़ी बहन सुधा से काफी छोटी थी और उसकी शादी को अभी 3 वर्ष ही हुए थे । सुमन, सुधा की सारी बातों को बड़े गौर से सुन रही थी व बराबर उनके सवालों के जवाब दे रही थी । बातों बातों में सामान की खरीदारी का जिक्र चल पड़ा , सुधा ने सुमन से पूछा तू घर पर किराने और सब्जी कहां से लाती है , तो सुमन ने कहा दीदी मैं यही अपार्टमेंट के नीचे मार्केट से सामान ले लेती हूँ । सुधा ने पूछा जरा बता आलू कितने रुपए किलो है और प्याज कितने रुपए किलो तो सुमन ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया यहां आलू ₹50 किलो और प्याज ₹100 किलो है । सुधा ने रेट सुनते ही सर पकड़ लिया और बोली हे राम ! हमारे यहां तो आलू ₹30 और प्याज ₹60 किलो है । इतनी महंगाई ......डांटते हुए सुधा ने सुमन से कहा ....तुझे कुछ नहीं आता कल मैं सामान लेने खुद जाऊंगी , फिर देखती हूं कैसे महंगा मिलता
है ........
अगले दिन सुधा थैला उठाकर खुद ही सुमन के घर के लिए सामान लेने चली गई , सुधा ने अपार्टमेंट के नीचे मार्केट से सामान ना लेकर पास की एक छोटी सी बस्ती में वहां से सामान खरीदा , तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि सारा सामान उसके गांव के रेट के बराबर ही मिल रहा था । उसने फटाफट सामान खरीदा और तुरंत घर आकर सुमन से शेखी मारते हुए बोली..... "देखो बहना .....मैं शहर में भी गांव के बराबर रेट पर समान ले आई हूं" सुमन को भी बड़ा आश्चर्य हुआ , कुछ देर पश्चात जब सुमन ने अपने घरेलू बाट से सभी सब्जियों का तोल करा तो पता चला सभी सामान 250 से 300 ग्राम प्रति किलो कम है यह देख सुधा भी काफी शर्मिंदा हुई कि बस्ती के दुकानदार ने उसे ठग लिया है और उसे पूरा माल नहीं दिया ।
सुधा व सुमन आपस में समान की खरीदारी को लेकर चर्चा करने लगी कि अपार्टमेंट के नीचे बाजार में सामान का वेट और क्वालिटी तो बहुत अच्छी है परंतु रेट बहुत ज्यादा और बस्ती में रेट और क्वालिटी तो अच्छा है परंतु वेट में गड़बड़ी है । अब यदि किसी व्यक्ति को रेट , वेट और क्वालिटी तीनों ही सही चाहिए तो कहां जाए काफी जद्दोजहद के बाद दोनों ने यह फैसला किया की बड़ी मंडी में शायद यह तीनों चीजें ठीक से मिल जाए । यही सोच के साथ अगले दिन सुधा और सुमन दोनों बड़ी मंडी पहुंच गई और वहां पहुंच कर उन्होंने सभी चीजों के रेट ट्राई करें तो उन्हें यह देख बड़ी प्रसन्नता हुई कि यहां पर रेट , वेट और क्वालिटी तीनों ही शानदार है यह सोच सुमन ने थैला निकाला और दुकानदार को देते हुए बोली....... सारी सब्जी 1/ 1 किलो दे दो सुमन की बात सुनकर दुकानदार उनका मुंह देखने लगा और बोला "बहन जी क्यों मजाक करती हो , यहां आपको रेट ,वेट ,क्वालिटी तीनों तभी मिलेंगे जब आप सभी समान 5/ 5 किलो खरीदोगे"
यह सुन सुधा और सुमन दुकानदार पर बिगड़ गई । आसपास के दुकानदार भी वहां इकट्ठा हो गए , उन्होंने सुमन और सुधा को समझाया कि यहां आपको अच्छा सामान कम कीमत पर तभी मिलेगा जब आप कवॅन्टिटी में खरीदेंगे । यह सुन दोनों ने कान पकड़े और वापस अपने अपार्टमेंट आ गई , सुमन को अच्छे से समझ आ चुका था कि रेट , वेट और क्वालिटी तीनो आपको तभी मिल सकते हैं जब आप क्वांटिटी में सामान लेते हैं ।? यही सोचते सोचते वह अपार्टमेंट के नीचे दुकान से सामान लेने चली गई ।

( मासूम उपभोक्ताओं को समर्पित )

स्वरचित

विवेक आहूजा
बिलारी 

"सलाह न मानने की सज़ा

 कहानी : 


"सलाह न मानने की सज़ा"

गर्मी के दिन चल रहे थे , डॉक्टर तिलक अपने अस्पताल पर आज जल्दी आ गए , क्योंकि आज नगर का साप्ताहिक बाजार का दिन था । डॉक्टर साहब का अस्पताल बाजार के बिल्कुल मध्य में स्थित था, इस कारण वहां काफी लोग ऐसे ही मिलने भी आ जाया करते थे ।सुबह 10:00 बजे डॉक्टर साहब के मित्र मांगीलाल अपने छोटे भाई को बैलगाड़ी में लेकर आए और डॉक्टर साहब से बोले "डॉक्टर साहब जल्दी से मेरे भाई को देखो इसके सीने में बहुत तेज दर्द हो रहा है और इसे पसीना भी आ रहा है" डॉक्टर साहब ने अपने बाकी के मरीजों को छोड़कर इमरजेंसी मरीज को जल्दी से भाग कर देखा डॉक्टर साहब को समझते देर न लगी कि मांगीलाल के भाई को हार्ट अटैक आया है । मांगीलाल डॉक्टर साहब का परम मित्र था डॉक्टर साहब ने उसे समझाया यह बहुत गंभीर बीमारी है और इसमें रिस्क भी बहुत ज्यादा होता है, यदि आप कहें तो मैं इसका इलाज कर सकता हूं ।मांगीलाल का डॉक्टर साहब में परम विश्वास था अतः मांगीलाल ने डॉक्टर साहब को इलाज की स्वीकृति दे दी ।
डॉक्टर साहब ने मरीज का इलाज शुरू कर दिया व मरीज के घर वालों को सख्त हिदायत दी कि दो-तीन घंटे तक सीधे होकर ही लेटना है और यह बिल्कुल भी ना हिले ,असल में गांव देहात की यह परंपरा रही है कि जब भी कोई गाड़ी ठेला आदि गांव से शहर की ओर आता है तो वह घरेलू सामान लाने के लिए पूरी लिस्ट बना लेते हैं ताकि एक ही बार में सब सामान आ जाए क्योंकि बार-बार गांव से शहर आना संभव नहीं हो पाता है ।यही सोच के साथ मांगीलाल अपने भाई को डॉक्टर साहब के अस्पताल पर छोड़ बाजार सामान लेने चला गया । मांगीलाल अपने परिवार के सदस्यों को मरीज के साथ मिजाज पुर्सी के लिए छोड़ गया ,डॉक्टर साहब भी जब मांगीलाल के भाई को थोड़ा आराम आया तो अपने मरीज में व्यस्त हो गए ।
दोपहर के 1:00 बजे होंगे तभी मंदिर के पुजारी सुमति बाबा भागे भागे डॉक्टर साहब के पास आए और बोले "डॉक्टर साहब जल्दी चलिए मंदिर में एक भक्त की अचानक बहुत तबियत खराब हो गई है
और वह चक्कर खाकर गिर गया है" डॉक्टर साहब ने तुरंत अपनी दवा की पेटी उठाई और सुमति बाबा के साथ मंदिर की ओर चल दिए रास्ते में डॉक्टर साहब ने समिति बाबा से पूछा बाबा मरीज को क्या परेशानी है, सुमति ने जवाब दिया डॉक्टर साहब यह व्यक्ति अभी-अभी स्कूटर से मंदिर आया था और अचानक इसके सीने में दर्द होने लगा और इसे पसीना भी आया और एकदम से यह चक्कर खाकर गिर गया । डॉक्टर साहब ने मंदिर पहुंचकर मरीज को देखा तो उन्हें बड़ी हैरानी हुई क्योंकि यह भी हार्टअटैक का ही मामला था डॉक्टर साहब ने इलाज शुरू किया कुछ देर में मरीज को होश आ गया , उसने बताया "मेरा नाम मिस्टर कपूर है और मैं शुगर मिल में काम करता हूं, हार्ट की बीमारी से पीड़ित हूं" यह सुन डाक्टर साहब ने मिस्टर कपूर को कहा "अगर आपका हार्ट का इलाज चल रहा है तो आपको स्कूटर चला कर ऐसे नहीं आना चाहिए था, इससे हार्ट पर जोर पड़ता है" मिस्टर कपूर ने अपनी गलती को माना और जल्द ही ठीक करने की डॉक्टर साहब से विनती की ,डॉक्टर साहब ने कहा यदि आपको ठीक होना है तो दो-तीन घंटे तक शवासन में लेटे रहे बिल्कुल भी नहीं हिले । मिस्टर कपूर ने डॉक्टर साहब की सलाह पर सीधे होकर मंदिर में ही एक चारपाई पर लेट गए । मिस्टर कपूर को थोड़ा आराम मिलने पर डॉक्टर साहब दो-तीन घंटे बाद दोबारा देखने को कहकर वापस अपने अस्पताल आ गए ।
जैसे ही डॉक्टर साहब अपने अस्पताल पर आए तो उन्होंने देखा कि मांगीलाल का भाई जिसे वह अपने अस्पताल पर आराम करता छोड़ गए थे ,वह अस्पताल से नदारद है उन्होंने तुरंत कंपाउंडर को बुलाया और पूछा "मैं उस मरीज को आराम करने को कह गया था फिर वह कहां चला गया" कंपाउंडर ने डरते डरते कहा, वह मरीज हमारी नजर से बचकर कहीं चला गया है ।डॉक्टर साहब अपने मरीजों में व्यस्त हो गए तभी कुछ देर पश्चात उन्होंने देखा कि मांगीलाल का भाई बाजार से थैला उठाए आ रहा है । उसने अस्पताल में थैला रखा और अस्पताल के सामने सड़क पार कर पेशाब करने बैठ गया यह देख डॉक्टर साहब बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने तुरंत मांगीलाल को बुलवाया और उससे कहा "मैंने जब मना किया था तो आपका भाई चारपाई से उठा कैसे" मांगीलाल चुप रहा इतनी देर में मांगीलाल का भाई भी आ गया, डॉक्टर साहब ने उससे पूछा "आप कहां उठकर चले गए थे जब आपकी इतनी तबीयत खराब थी" तो मांगीलाल के भाई ने उत्तर दिया "अब मैं बिल्कुल ठीक हूं मैं जरा बाजार से गुड़ लेने चला गया था" इतना कहना ही था कि मांगीलाल के भाई के सीने में फिर जोर से दर्द होने लगा, उसे पसीना भी आने लगा ,यह देख डॉक्टर साहब ने उन्हें फौरन अपने मरीज को लिटाने को कहा और बताया "यह बहुत तीव्र हृदय आघात है ,अब मैं भी कुछ नहीं कर सकता" कुछ ही पलों में मरीज के प्राण पखेरू उड़ गए । पूरे बाजार में शोर मच गया कि डॉक्टर साहब की दुकान पर एक मरीज की मृत्यु हो गई है। मांगीलाल समझ चुका था कि उसके भाई की गलती है और उसे बगैर सलाह के ऐसे बाजार में नहीं जाना चाहिए था ।
अब डॉक्टर साहब को मंदिर वाले मरीज मिस्टर कपूर का ख्याल आया , क्योंकि उन्हें भी हृदयाघात हुआ था और डॉक्टर साहब भागे भागे मंदिर पहुंचे तो देखा मिस्टर कपूर चारपाई पर विश्राम कर रहे हैं ।यह देख डॉक्टर साहब की जान में जान आई और मिस्टर कपूर से उनका हाल पूछा मिस्टर कपूर ने बताया "मैं बिल्कुल ठीक हूं और आपकी सलाह के अनुसार बिल्कुल सीधे होकर लेटा हुआ हूँ, अब जब आप कहेंगे तभी मैं घर की ओर प्रस्थान करूंगा" मिस्टर कपूर की स्थिति देख डॉक्टर साहब ने राहत की सांस ली और पुजारी जी से कहा "बाबा आप स्वयं रिक्शे पर बिठाकर मिस्टर कपूर को उनके घर छोड़कर आए" और इस प्रकार मिस्टर कपूर ने डॉक्टर साहब की सलाह पर चलकर अपने जीवन को बचा लिया और मांगीलाल के भाई ने डॉक्टर साहब की सलाह पर कोई ध्यान नहीं दिया व डॉक्टर साहब की "सलाह ना मानने की सजा" उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ी ।
आज के परिवेश में पूरे विश्व में कोरोना का प्रकोप है इस महामारी से रोज लाखों की तादाद में लोग मर रहे हैं सरकार , डब्ल्यूएचओ , स्वास्थ्य विभाग सभी जनता को समझाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं ।परंतु लोग सड़कों पर भीड़ लगाकर घूम रहे हैं और स्वास्थ्य कर्मियों की सलाह को दरकिनार कर नियमों की अवहेलना कर रहे हैं, मैं तो बस इतना ही कहूंगा कहीं डॉक्टर की सलाह ना मानना जनता को भारी न पड़ जाए ।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
Vivekahuja288@gmail.com 

इमरजेंसी , आपातकाल , The Emergency

  इमरजेंसी


डॉक्टर साहब की दुकान पर शाम को कोई मरीज नहीं था और वह खाली बैठे हुए थे । तभी उनके कुछ मित्र उनके पास आकर बैठ गए और राजनीतिक चर्चा शुरू होने लगी बातों बातों में इमरजेंसी की बात होने लगी कुछ लोग इसके पक्ष में तो कुछ लोग विपक्ष में चर्चा करने लगे । जब काफी देर तक कोई निष्कर्ष ना निकला तो डॉक्टर साहब ने उन्हें बीच में रोकते हुए कहा "मैं आपको इमरजेंसी से संबंधित एक घटना के बारे में बताता हूं इसे सुनने के पश्चात आप स्वयं निर्णय लें कि क्या सही है और क्या गलत" डॉक्टर साइओहब ने कहना शुरू किया .....
यह बात सन 1975 की है जब इमरजेंसी की घोषणा हो चुकी थी । सभी दफ्तर सुव्यवस्थित रुप से चल रहे थे ,कांग्रेसी अपने विरोधियों को ढूंढ ढूंढ कर जेलों में डलवा रहे थे ।उसी दौरान एक गांव में रामलाल नाम का युवक जिसने अभी हाल ही में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की थी आगे की पढ़ाई के लिए बरेली यूनिवर्सिटी आया हुआ था । वह बीए की डिग्री बरेली यूनिवर्सिटी से करना चाहता था । बरेली से मुरादाबाद वापसी के समय अपने मित्र के साथ वह रामपुर के बस स्टैंड पर उतर गया बस स्टैंड पर उसने कुछ लोगों की भीड़ देखी और वह भीड़ की ओर चल दिया । वहां जाकर उसने देखा की एक एंबुलेंस में कुछ लोगों को जबरदस्ती पकड़ कर ले जाया जा रहा है ।
इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता 2 सिपाही उसके पास आए और बोले "इस लड़के को भी ले चलो " यह सुन रामलाल बुरी तरह घबरा गया और अपना बचाव का भरसक प्रयास किया लेकिन सिपाहियों के आगे उसकी एक न चली और उन्होंने रामलाल को एक एंबुलेंस में डाल दिया । सारे रास्ते रामलाल एंबुलेंस के कर्मचारियों से पूछता रहा "भाई हमें कहां ले जा रहे हो और क्यों" मगर किसी ने रामलाल की बात का कोई उत्तर नहीं दिया । कुछ ही देर में एंबुलेंस सरकारी अस्पताल पहुंच गई वहां पहुंचकर सिपाहियों ने रामलाल को पकड़ा और ऑपरेशन थिएटर की तरफ ले गए । रामलाल की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है पूरा सरकारी अस्पताल पुलिस छावनी में बदला हुआ था। ऑपरेशन थिएटर पहुंचकर रामलाल ने रोते हुए डॉक्टर से पूछा "मुझे यहां क्यों लाया गया है" डॉक्टर ने कहा "हम एक मामूली सी जांच करेंगे उसके बाद तुम्हें घर भेज दिया जाएगा " रामलाल अभी भी कुछ नहीं समझ पा रहा था, कुछ समय पश्चात दो डॉक्टर आए और रामलाल को नशा सुघा कर उसके नाभि के नीचे कट लगाकर रामलाल का ऑपरेशन कर दिया ।
नशा कम होने पर जब रामलाल को होश आया तो वार्ड बॉय ने उसे बताया " तेरा बच्चे बदं का ऑपरेशन हो गया है " यह सुन रामलाल के पैरों तले जमीन निकल गई ।उसने रूआंसू होते हुए वार्ड बॉय को बताया कि " मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है " और जोर जोर से रोने लगा ।उसका रुदन सुन सारा स्टाफ इकट्ठा हो गया और सभी ने उसे समझाया कि अब कुछ नहीं हो सकता अगर विरोध करोगे तो जेल जाना पड़ेगा । यह सुन डर के मारे रामलाल चुपचाप वहां से अपने गांव आ गया गांव पहुंच कर उसने आपबीती पूरे परिवार को बताई ।
धीरे-धीरे यह बात उसके आस पड़ोस में भी पता लग गई । चूंकि राम लाल इंटर पास हो चुका था और इस उम्र में गांव देहात में लोग बच्चों की शादियां कर देते थे, अतः रामलाल के परिवार को भी यह उम्मीद थी कि अब उसके रिश्ते आने लगेंगे । लेकिन जब भी कोई लड़की वाला आता उसे कहीं ना कहीं से रामलाल के विषय में पता लग जाता की इसका बच्चे बंद का ऑपरेशन हो चुका है और यह नामर्द है । इस तरह कई रिश्ते आए और इन्हीं कारणों से टूट गए ।
करीब 19 माह के लंबे अंतराल के बाद इमरजेंसी खत्म हुई और लोगों ने राहत की सांस ली,
अब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार थी। रामलाल का परिवार डॉक्टर साहब से काफी परिचित था और अपना इलाज कराने अक्सर उनके पास आया करता था । उन्होंने डॉक्टर साहब को आपबीती बताई और उनसे कुछ मदद करने का आग्रह किया । डॉक्टर साहब के प्रयासों से रामलाल के परिवार को स्थानीय विधायक, सांसद व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री तक मिलवाया गया और रामलाल के परिवार ने अपनी व्यथा उन्हें सुनाई केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री एवं सांसद के प्रयासों से रामलाल का पुनः ऑपरेशन हो गया, जिसमें डॉक्टर ने बच्चे बंद की गांठ को खोल दिया।
अब राम लाल का परिवार काफी प्रसन्न था ।उन्हें यह उम्मीद थी की उनके ऊपर जो नामर्दी का धब्बा लगा है वह धुल गया है और शीघ्र ही रामलाल की शादी हो जाएगी। परंतु ऑपरेशन के काफी समय बाद तक शादी का कोई प्रस्ताव नहीं आया और जो भी प्रस्ताव आए वह लोग इस बात से संतुष्ट नहीं हुए की रामलाल की मर्दानगी वापस आ गई है गांव में लोगों ने यह अफवाह फैला दी कि रामलाल का कोई ऑपरेशन नहीं हुआ है यह झूठ बोलते हैं ।अब राम लाल अपना दुखड़ा लेकर डॉक्टर साहब के पास पहुंचा और और उन्हें सारी बात से अवगत कराया ।उसने कहा कि " मेरे घर कोई रिश्ता लेकर नहीं आ रहा है सभी को इस बात पर संदेह है कि मै पूर्णता स्वस्थ हो गया हू और बच्चा पैदा करने में सक्षम हूँ " अब उन्हें कैसे समझाएं कि मेरा ऑपरेशन हो चुका है और "मै पूरी तरह मर्द हूँ " उसकी बात सुन डॉक्टर साहब भी पशोपेश में पड़ गए और उन्होंने कहा कि मैं इसमें तुम्हारी कैसे मदद कर सकता हूं क्योंकि उस समय तक ऐसा कोई तरीका नहीं था जो यह साबित कर सके कि रामलाल बच्चा पैदा करने में सक्षम हैं ।
रामलाल अब 35 वर्ष का हो चुका था विवाह की सभी संभावनाएं करीब-करीब खत्म हो चुकी थी एक दिन अचानक वह घर से रात को कहीं चला गया पूरे परिवार ने उसे बहुत ढूंढा पर कोई नतीजा न निकला, रामलाल का कहीं कोई पता ना था। रामलाल को घर से गए करीब 6 माह का समय बीत चुका था ।परिवार को भी लगने लगा कि वह अब जीवित भी है कि नहीं ।तभी गांव का एक व्यक्ति भागा भागा उनके घर आया और उसने बताया कि करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक गांव में एक मंदिर है वह उसमें जो महात्मा है उसकी शक्ल रामलाल से बहुत मिलती है। पूरा परिवार भागा भागा उस मंदिर में पहुंचा तो उन्होंने देखा की रामलाल महात्मा बन चुका है। उन्होंने रामलाल को बहुत समझाया लेकिन रामलाल ने घर जाने से मना कर दिया और अपना पूरा जीवन मंदिर की सेवा में लगाने का फैसला उन्हें सुना दिया। परिवार के लोग यह सुन मायूस मायूस होकर घर वापस आ गए।
डॉक्टर साहब ने अपनी वाणी को विराम दिया और उनके मित्र भी चुपचाप उनके समीप बैठे रहे ।तभी डॉक्टर साहब का कंपाउंडर भागा भागा उनके पास आया और बोला "डाक्टर साहब मंदिर वाले महात्मा जी का निधन हो गया हैं " यह सुन डॉक्टर साहब तुरंत उठ कर महात्मा जी के अंतिम दर्शन को चल दिए
इमरजेंसी तो सरकार ने लगा दी लेकिन उसके परिणामों के बारे में नहीं सोचा ।इमरजेंसी में यदि पहला प्रेस की आजादी दूसरा फैमिली प्लानिंग तीसरा विपक्षी दलों के व्यक्तियों को जेल यह तीनों कृत्य ना किए गए होते तो वह समय भारत के लिए बहुत ही अनुशासन वाला था। लोग ऑफिसों में समय पर आते थे सभी काम सुव्यवस्थित चल रहा था। परंतु फैमिली प्लानिंग के चलते कस्बों में लगने वाली बाजारो में सालों तक प्रौण महिलाएं ही आती रही और पुरुष डर के मारे घरों और खेतों में दुबके रहे ।असल में फैमिली प्लानिंग का फैसला सरकार की मंशा को दर्शाता है सरकार की मंशा तो ठीक थी क्योंकि जनसंख्या पर नियंत्रण भी जरूरी था परंतु उसका तरीका बहुत गलत था। अतः इसका दुष्परिणाम भी देखने को मिला और रामलाल जैसे लोगों को यह दंश जीवन भर झेलना पड़ा ।


स्वरचित

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
Vivekahuja288@gmail.com
@9410416986




"इस दीपावली - स्वदेशी खरीदारी से करे अर्थव्यवस्था मजबूत"

 "इस दीपावली - स्वदेशी खरीदारी से करे अर्थव्यवस्था मजबूत" 


दीपावली का त्यौहार अब नजदीक ही है , कोरोना भी अब अंतिम चरण में चल रहा है , कोरोना काल के दौरान लोग घरों पर ही कैद हैं । पहले रक्षाबंधन , शिवरात्रि नवदुर्गा आदि सभी त्योहार लोगों ने बड़े सीमित संसाधनों के साथ ही मनाएं हैं । चूंकि दीपावली हिंदू धर्म उपासकों का सबसे बड़ा त्यौहार है अतः इस त्यौहार में चाहे कितने भी सीमित संसाधन हो लोग दीपावली को पूरे जोर-शोर से मनाएंगे । इस त्यौहार की विशेषता है कि यह 5 दिन तक मनाया जाता है पहला दिन धनतेरस दूसरा छोटी दीपावली तीसरा बड़ी दिवाली चौथा गोवर्धन और पांचवा दिन भाई दूज का होता है , 5 दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार में लोग एक दूसरे को उपहार देते हैं घरों की सजावट करते हैं और दीप जलाने का प्रचलन तो हजारों वर्ष पुराना है ।
इस वर्ष की दिवाली पिछले वर्षों से काफी भिन्न है इस वर्ष लोग पिछले आठ नौ महीने से घरों में ही कैद हैं, कारोबार के हालत में कुछ खास अच्छे नहीं है , कुछ लोगों की तो नौकरियां भी चली गई है । लेकिन त्यौहार की मर्यादा तो सभी निभानी है अतः एक दूसरे को उपहारों का आदान-प्रदान घरों की सजावट आदि त्यौहार में होने वाले सभी शगन लोग करेंगे ही ।
इस वर्ष लोगों को चाहिए कि वह इस दिवाली पर स्वदेशी चीजों को ही अपने घर की सजावट में प्रयोग में लाएं व घर पर बने हस्तशिल्प जो आपके द्वारा या स्वदेशी हो , को ही आपस में अपने स्वजनों को उपहार में दें । कोरोना के कारण कारण देश की अर्थव्यवस्था को भी भारी झटका लगा है , समय-समय पर लॉकडाउन लगने के कारण कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है । हालांकि सरकार द्वारा पैकेज की घोषणा हुई परंतु वह लोगों की जरूरत के हिसाब से ना काफी है ।
अब ऐसी स्थिति में देश की प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य बनता है कि वह इस त्योहार पर स्वदेशी चीजों का इस्तेमाल कर अपने देश के लोगों की मदद करें ताकि वह आर्थिक रूप से सुदृढ हो सके । इस दीपावली पर यही हमारा देश के लोगों को देशभक्ति का उपहार होगा ।



✍विवेक आहूजा
@ 9410416986

"सावधानी से मनाये , खुशियों का त्यौहार"

 



"सावधानी से मनाये , खुशियों का त्यौहार"

रावण के वध के पश्चात भगवान श्री राम , माता सीता व लक्ष्मण जी सहित 14 वर्ष का वनवास पूर्ण कर जब अयोध्या वापस लौटते हैं तो पूरी अयोध्या नगरी को दीपों से सजाया गया तभी से हजारों वर्षों के पश्चात भी यह परंपरा हिंदू धर्म उपासकों द्वारा आज भी जीवित है । समय के बदलाव के साथ खुशियों को प्रदर्शित करने के लिए आतिशबाजी का प्रचलन भी शुरू हुआ और आज दीपावली पर आतिशबाजी छोड़ना भी दीप जलाने की तरह ही इस परंपरा का हिस्सा है ।
छोटे से छोटे परिवार में भी सैकड़ों हजारों रुपए की आतिशबाजी (पटाखे) इस त्योहार पर छोड़ी जाती है । मगर आतिशबाजी से होने वाली दुर्घटना भी साल दर साल देखने को मिल रही है , इसलिए आतिशबाजी छोड़ने से पूर्व कुछ सावधानी बरतने की हमें आवश्यकता है । आज हम इसी विषय पर क्रमवार चर्चा करेंगे .......
1 - आतिशबाजी या पटाखे किसी खुले स्थान पर ही छोड़े जैसे मैदान आदि ...... अमूमन देखने को मिलता है लोग सड़कों पर , गलियों में या हाईवे पर पटाखे छोड़ते हैं जो कि काफी नुकसानदेह साबित हो सकता है । कृपया इस बात का ध्यान रखें कि आपके द्वारा छोड़े गए पटाखे से किसी को हानि न पहुंचे ।
2 - छोटे बच्चों को पटाखों से दूर रखें क्योंकि छोटे बच्चों का चंचल मन कोई नादानी ना कर बैठे जो कि काफी हानिकारक हो सकता है । बल्कि 10 से 15 वर्ष की आयु के बच्चों अपनी निगरानी में ही पटाखे छोड़ने की अनुमति दें ।
3 - देखने को मिलता है कि आतिशबाजी से आग लग गई या कहीं अचानक कोई रॉकेट आकर गिर गया उससे जलने का खतरा बन जाता है , ऐसी स्थिति से निपटने के लिए पटाखे छोड़ने वाले स्थान पर कम से कम दो बाल्टी पानी अवश्य रखा होना चाहिए ताकि किसी भी प्रकार की अनहोनी होने पर उससे तुरंत निपटा जा सके ।
4 - हर वर्ष दिवाली पर हजारों की तादाद में लोग आतिशबाजी को लापरवाही से छोड़ने की वजह से जल जाते हैं या गंभीर चोट खा बैठते हैं । इस वर्ष हमें इस बात पर विशेष ध्यान रखना है कि पटाखे छोड़ने में कोई लापरवाही ना हो एहतियात के तौर पर ऐसी ट्यूब जो जलने पर साधारणतया इस्तेमाल की जाती है घर पर फर्स्ट एड बॉक्स में उपलब्ध होनी चाहिए । पटाखे से चोट लगने पर उसे तुरंत ठंडे पानी से धो लेना चाहिए । इसके अतिरिक्त अगर गंभीर रूप से पटाखे के कारण चोट लगी है तो तुरंत किसी क्वालिफाइड चिकित्सक को दिखाना चाहिए ,इसमें कोई लापरवाही ना बरते ।
5 - हर वर्ष हजारों बच्चे / बड़ो को पटाखों के गलत इस्तेमाल के कारण आंखों पर वह चेहरे पर चोट लग जाती है तथा कई लोगों की तो आंखों की रोशनी तक चली जाती है , इस वर्ष हमें काफी एहतियात बरतना है । पटाखे को जलाने के पश्चात बहुत से लोग उसके समीप ही घूमते रहते हैं जोकि काफी नुकसानदेह हो सकता है । बहुत से लोग शेखी मारने के लिए हाथ मे ही पटाखे छोड़ने का प्रयास करते हैं , ऐसा करना बिल्कुल भी सही नहीं है । घरेलू उपचार मामूली चोटों के लिए हैं , यदि आपको ज्यादा चोट है तो तुरंत किसी चिकित्सक से संपर्क कर ले ।
अंत में मैं बस इतना ही कहना चाहूंगा आतिशबाजी बस एक त्यौहार का शगन है उसे शगन के तौर पर ही इस्तेमाल करना चाहिए , बहुत अधिक मात्रा में पटाखों का प्रयोग कहीं ना कहीं परेशानी का सबब हो सकता है । यदि इन पैसों से किसी जरूरतमंद की दीपावली को खुशहाल बनाया जाए तो वह इस वर्ष की आप की सर्वश्रेष्ठ दीपावली होगी ।
"शुभ दीपावली"

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी 

Thursday, 22 October 2020

नया भारत

 आलेख : 


"नया भारत"

भारतवर्ष को आजाद हुए 70 वर्ष से अधिक का समय बीत चुका है । आजादी के तुरंत बाद देश को अपने आपको स्थापित करने था , अंतरराष्ट्रीय समाज में अपनी पहचान बनाना , भारत का मुख्य लक्ष्य था । जबकि यहां की जनता को रोटी , कपड़ा और मकान की आवश्यकता थी । जिस व्यक्ति के पास यह तीनों चीजें आराम से उपलब्ध थी , वह उस समय संपन्न व्यक्तियों में माना जाता था । परंतु आज सन 2020 में जनता की जरूरतें ज्यों की त्यों बनी हुई है । रोटी ,कपड़ा ,मकान सभी को जरूरत है लेकिन इसमें दो चीजों का इजाफा और हुआ है ,उसके बगैर आज की दिनचर्या संभव ही नहीं है । यह है सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक सामान , आज के भारत के नागरिक को रोटी , कपड़ा और मकान तो चाहिए ही , यह जनता की मूलभूत आवश्यकता है ,लेकिन सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स भी उसकी प्राथमिक जरूरतों में से एक है । भारतवर्ष का कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसके पास मोबाइल ना हो बल्कि एक एक घर में दो दो ,तीन तीन मोबाइल तक उपलब्ध है ,चाहे व्यक्ति अमीर हो या गरीब मोबाइल सभी के पास है । इन्हीं मोबाइलों के माध्यम से भारत के नागरिक सोशल मीडिया एप्प जैसे फेसबुक , व्हाट्सएप , टि्वटर आदि से जुड़ा हुए है और उसे अपनी बात कहने का एक मंच मिला हुआ है । इसी प्रकार हर घर में बहुत से इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स भी उपलब्ध है , जैसे मोबाइल , एलसीडी , मिक्सी गीजर , डीटीएच , कम्पयूटर, माइक्रोवेव , वाशिंग मशीन आदि आज के दौर में व्यक्ति की प्राथमिक जरूरत बन गई हैं । बच्चे हो बूढ़े हो महिलाएं हो या युवा सभी लोगों को इनकी आवश्यकता पड़ती है । सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स के बगैर भारत में जीवन की कल्पना करना भी असंभव सा हो गया हैं । रोटी कपड़ा और मकान से दो पायदान और आगे हमारी जरूरतें बढ़ गई हैं , इसे हम एडिक्शन भी कह सकते हैं । अब से करीब 25 वर्ष पहले छोटे बच्चों का खेल पतंगबाजी , क्रिकेट , फुटबॉल , हॉकी आदि हुआ करता था , जबकि आज के दौर में बच्चे पबजी , यूट्यूब , वीडियो गेम्स की लत के शिकार हो चुके है । वहीं महिलाएं और बुजुर्ग भी सोशल मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक आइटम के आदी हो चुके हैं । इन सब बातों को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा यह भारतवर्ष बदल रहा है और इसके साथ भारत की जरूरतें भी बदल रही हैं और हम यह कह सकते हैं , भारत डिजिटल युग में प्रवेश कर चुका है । अब देखना यह है कि इस डिजिटल युग में भारत के लोग यदि तकनीक का सही प्रकार से इस्तेमाल कर लेते हैं , तो हमें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता ।


(स्वरचित)


विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

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