Tuesday, 15 September 2020

हिंदी

 हिंदी दिवस के अवसर पर : 


प्रेमचंद हो ,महादेवी हो ,या हो जयशंकर प्रसाद । 
हिंदी दिवस पर आ रहे ,हमको सब ये याद ।
इन लोगों ने रखा है , सदा हिन्दी का मान ।
हमको अब हैं चाहिए, करना इनका सम्मान ।।


विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
Vivekahuja288@gmail.com 

हिंदी



"हिंदी"

कभी होती थी देश में ,भाषा हिंदी प्रधान ।
धीरे-धीरे खो रही , अपनी यह पहचान ।
कदम कदम पर हो रहा ,अब इसका अपमान ।
जगह जगह हो गया , कम इसका सम्मान ।
डिजिटल युग में हो रहा , नहीं इसका उत्थान ।
आंग्ल भाषा सबको प्रिय , इसका कौन करे गुणगान ।।


(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

Tuesday, 8 September 2020

आदर्श बहू

लघु कथा :
"आदर्श बहू"
आज मीना ने सुबह उठते ही एलान कर दिया "आज मेरा सम्मान समारोह है और मुझे पूरे दिन उसकी तैयारी करनी है, लिहाजा आप माता जी से कह दे कि वह अपना सारा काम खुद ही देख ले" रमेश ने भी चुपचाप मीना के ऐलान के सामने सरेंडर करते हुए हामी भर दी ।
सारा दिन मीना अपने कपड़ों की सेटिंग में लगी रही कि शाम को क्या पहनना है , कौन सी साड़ी मुझ पर अच्छी लगेगी ,मेकअप आदि .....
आखिर शाम को वह पल भी आ गया जिसका मीना को बरसों से इंतजार था । मंच से पुकार लगी श्रीमती मीना जी को उनकी पुस्तक "आदर्श बहू" के लिए इस वर्ष की सर्वश्रेष्ठ लेखिका का पुरस्कार दिया जाता है । ऐलान के साथ ही पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट के साथ गूंज उठा , मीना भी अपनी आंखों में चमक लिए स्टेज की तरफ बढ़ने लगी, रमेश व उसके माता-पिता सभागार में खोखली हंसी के साथ लोगों की शुभकामनाएं ग्रहण कर रहे थे ।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
Vivekahuja288@gmail.com
@9410416986

संसमरण

 संस्मरण : बचपन की मधुर यादे

जीके और मै दोनों ने जल्द ही अपना हाईस्कूल का पूरा सिलेबस कर लिया था और बोर्ड की परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हुए थे । उन दिनों प्री बोर्ड का चलन नहीं था , लिहाजा छमाही परीक्षा ही प्री बोर्ड की तरह होती थी । छमाई परीक्षाओं में पूरा कोर्स आता था , हम दोनों अपने क्लास टीचर से मिलने गए और उनसे पूछा की इस अर्धवार्षिक परीक्षा का क्या महत्व है । तब हमारे क्लास टीचर ने कहा कि यह परीक्षा सिर्फ प्रैक्टिस के लिए है, इसके नंबर कहीं नहीं जुड़ेंगे ।शायद इसका रिजल्ट भी ना आए, क्लास टीचर से बात कर हम हॉस्टल आ गए और यह सोचने लगे की अर्धवार्षिक परीक्षा दे या ना दे, पहले तो दोनों ने यह विचार करा की चलो परीक्षा देने में क्या हर्ज है और इस प्रकार पहला पेपर दे दिया । परंतु पहला पेपर देने के बाद दोनों ने सोचा इस प्रकार तो काफी समय नष्ट हो जाएगा , हम परीक्षा ना देकर के घर पर ही तैयारी करें तो ज्यादा बेहतर होगा । हॉस्टल के वॉर्डन , स्कूल के टीचर आदि जितने भी शुभचिंतक थे उन लोगों ने हमको बहुत समझाया कि यह परीक्षा तुम्हारे फायदे के लिए ही है, लेकिन हम मानने को तैयार नहीं थे । हमारा तर्क था कि हम घर पर ज्यादा बेहतर तरीके से तैयारी कर सकते हैं ।इस प्रकार हमने अगला पेपर छोड़ दिया ।
अब मैने और जीके ने सोचा की घर जाकर तो तैयारी करनी है , तो पहले आज चलो पिक्चर देख लेते हैं और दोनों पिक्चर देखने चले गए । अगले दिन हम बिलारी आ गए , वहां से जीके अपने गांव चले गए घर पहुंचकर मैने अपनी माता जी को सारी बात बताई कि वह अर्धवार्षिक परीक्षा नहीं दे रहे हैं और घर पर रहकर ही बोर्ड एग्जाम की तैयारी करेंगे । मेरी बात सुनकर माताजी चुप रही व कुछ ना बोली , जब दोपहर को पिता जी घर आए तो उन्होंने मेरे द्वारा कही गई सारी बात पिताजी को बताई , अभी यह बात चल ही रही थी कि किसी ने दरवाजा खटखटाया , मैने फौरन दरवाजा खोल कर देखा तो वहां जीके व उसके दोनों बड़े भाई खड़े थे । अब तो मेरे पिताजी व जीके के दोनों भाइयों ने मिलकर हम दोनों की बहुत डांट लगाई और हमे तुरंत वापस जाकर अर्धवार्षिक परीक्षा में शामिल होने का आदेश पारित कर दिया , अभी तो घर पर हमने पिक्चर वाली बात नहीं बताई थी वरना क्या होता कहना मुश्किल था । घरवालों के हुक्म के मुताबिक हम दोनों वापस हॉस्टल आ गए और अगले दिन की अर्धवार्षिक परीक्षा की तैयारी मे जुट गए , सुबह जब क्लास टीचर , वार्डन आदि लोगों ने हमे देखा तो वह मन ही मन मुस्कुराए और उन्हें समझते देर न लगी के कान कहां से उमठे गए हैं । कुछ दिन तक हमे बड़ा असहज लगा लेकिन बाद में जीवन चर्या आराम से बीतने लगी ।


(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
9410416986

Friday, 4 September 2020

पासा

कहानी :
"पासा"
एक दिन रमेश के पास उसके बड़े भाई अजय का फोन आया, हालचाल जानने के पश्चात अजय ने रमेश से कहा "तुम तो गांव में रहते हो वहां पढ़ाई के लिए कोई अच्छा स्कूल भी नहीं है , लिहाजा अपनी बेटी रमा को मेरे पास पढ़ने के लिए भेज दो , मेरी भी कोई बेटी नहीं है मुझे भी बेटी का सुख मिल जाएगा" यह सुन रमेश अति प्रसन्न हुआ कि उसके बड़े भाई उसका कितना ख्याल रखते हैं । घर में पत्नी से मंत्रणा कर रमेश ने अपने बेटे विनय को के साथ रमा को अजय के घर छोड़ने के लिए भेज दिया , घर पहुंचते ही ताई जी ने विनय से पूछा कैसे आना हुआ सब खैरियत तो है । यह सुन विनय को बड़ा अचरज हुआ कि अजय ताऊ जी ने घर पर कुछ नहीं बताया था । लेकिन फिर भी विनय ने ताई जी से कहा मैं रमा को आपके घर छोड़ने के लिए आया हूं ,ताकि यह शहर में पढ़ाई कर सकें । ताई जी विनय की बात सुन , चुप हो गई । चाय पानी के पश्चात ताई जी विनय से बोली चलो थोड़ा सैर कर आते हैं सेहत के लिए अच्छी होती है । विनय ने हामी भर दी और उनके साथ सैर करने चला गया । रस्ते में ताई जी ने विनय से कहा तुम्हारे ताऊजी की तुम्हारे पापा से क्या बात हुई मुझे नहीं पता , रमा यहां पर रहे मुझे इस पर कोई एतराज नहीं है , मगर मैं तो बस इतना कहना चाहती हूं की लड़की जात है अगर कोई ऊंच-नीच हो गई तो मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी । ताई जी अपना "पासा" फेंक चुकी थी, विनय भी काफी समझदार था वह उनका मतलब अच्छे से समझ गया था । वह चुप रहा और घर आकर रमा से बोला चलो वापस घर चलते हैं , इस वर्ष स्कूलों में सभी सीटें फुल हो गई हैं अगले वर्ष एडमिशन की पुनः कोशिश करेंगे ।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

Tirupati balaji

 



करोड़ों के चढ़ावे के बाद भी क्यों गरीब माने जाते हैं #तिरुपति_बालाजी_महाराज जानें क्या है पौराणिक कहानी
आंध्र प्रदेश में स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर चढ़ावे में आए सोना, चांदी, कीमती सामान और पैसों की वजह से सुर्खियों में रहता है। इसी वजह से तिरुपति बालाजी मंदिर को वीआईपी मंदिर भी माना जाता है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो हर साल भगवान तिरुपति पर करोड़ों का चढ़ावा चढ़ता है लेकिन फिर भी पौराणिक कहानी के अनुसार भगवान तिरुपति यानी विष्णु के अवतार इस देवता को गरीब माना जाता है। 
क्या है पौराणिक कहानी
प्राचीन कथा के अनुसार एक बार महर्षि  भृगु बैकुंठ पधारे और आते ही शेष शैय्या पर योगनिद्रा में लेटे भगवान विष्णु छाती पर एक लात मारी। भगवान विष्णु ने तुरंत भृगु के चरण पकड़ लिेए और पूछने लगे कि ऋषिवर पैर में चोट तो नहीं लगी। भगवान विष्णु  का इतना कहना था कि भृगु ऋषि ने दोनों हाथ जोड़ लिए और उन्होंने अपनी गलती स्वीकार कर ली। भृगु ऋषि हाथ जोड़कर बोले ‘प्रभु आप ही सबसे सहनशील देवता हैं इसलिए यज्ञ भाग के प्रमुख अधिकारी आप ही हैं, लेकिन इस अपमान से देवी लक्ष्मी भृगु ऋषि  को दंड देना चाहती थी। भगवान विष्णु केे कुछ न कहने पर देवी लक्ष्मी नाराज हो गई। नाराजगी इस बात से थी कि भगवान ने भृगु ऋषि को दंड क्यों नहीं दिेया। नाराजगी में देवी लक्ष्मी बैकुंठ छोड़कर चली गई। भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी को ढूंढना शुरु किया तो पता चला कि देवी ने पृथ्वी पर पद्मावती नाम की कन्या के रुप में जन्म लिया है। भगवान विष्णु ने भी तब अपना रुप बदला और पहुंच गए पद्मावती के पास। भगवान ने पद्मावती के सामने विुवाह का प्रस्ताव रखा जिसे देवी ने स्वीकार कर लिया लेकिन प्रश्न सामने यह आया कि विवाह के लिए धन कहां से आएगा।
देवी लक्ष्मी से शादी के लिए लिया कर्ज 
विष्णु जी ने समस्या का समाधान निकालने के लिए भगवान शिव और ब्रह्मा जी को साक्षी रखकर कुबेर से काफी धन कर्ज लिया। इस कर्ज से भगवान विष्णु के वेंकटेश रुप और देवी लक्ष्मी के अंश पद्मवती ने विवाह किया। कुबेर से कर्ज लेते समय भगवान ने वचन दिया था कि कलियुग के अंत तक वह अपना सारा कर्ज चुका देंगे। कर्ज समाप्त होने तक वह ब्याज चुकाते रहेंगे। भगवान के कर्ज में डूबे होने की इस मान्यता के कारण बड़ी मात्रा में भक्त धन-दौलत भेंट करते हैं, ताकि भगवान कर्ज मुक्त हो जाएं।


(संकलित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद 

मिञता modified

कहानी :

मिञता
                     
आज सुबह विनय ने काफी जल्दी मेडिकल की दुुकान खोल ली थी और लगातार कई डॉक्टरों के दवाई लेने आने के कारण वह काफी थक भी गया था तभी उसके सामने उसकी हम उम्र चश्मा लगाए हुए एक व्यक्ति अपने पूरे परिवार सहित खड़ा हो गया , एक बार को तो विनय भौचक्का रह गया और उछलकर अपने मित्र जीके को गले लगा लिया , तदोपरांत वह जीके को अपने निवास पर लाया वहा अपनी पत्नी व बच्चों से जीके का परिचय करवाया। विनय की माता जी व पिताजी जीके से भलीभांति परिचित थे ,जीके ने तुरंत ही विनय की माता जी का पिता जी के चरण स्पर्श करें वह उनका आशीर्वाद लिया ।सभी लोग परस्पर एक दूसरे को अपना परिचय दे रहे थे और बातचीत कर रहे थे तभी जीके के छोटे पुत्र ने जीके से कहा "पापा आपने हमें कभी विनय अंकल के बारे में नहीं बताया कि वह आपके इतने घनिष्ठ मित्र हैं" यह सुनकर जीके को कोई जवाब देते नहीं बन रहा था । तभी विनय ने बीच में बात काटते हुए जीके के पुत्र से कहा कि आप हमारी मित्रता के बारे में जानना चाहते हो। सभी बच्चों ने विनय को चारों ओर से घेर लिया और अपने बारे में बताने का अनुरोध करने लगे विनय ने जीके की अनुमति से सुनाना शुरू किया ...
यह उन दिनों की बात है जब विनय नवी कक्षा का छात्र था और पारकर कॉलेज के हॉस्टल में रहता था रोज की तरह सुबह तैयार होकर वह कॉलेज गया और कॉलेज के उपरांत जब वापस हॉस्टल में आया तो देखा की एक तगड़ा सा लड़का विनय की चारपाई पर बैठा हुआ है। दो व्यक्ति भी उस लड़के के साथ मौजूद थे ,उन्होंने विनय से पूछा कि "आप बिलारी रहते हो" तो विनय ने तुरंत हामी भर दी । उन्होंने बताया कि यह लड़का उनका छोटा भाई है। जिसका नाम जीके हैं और यह अब तुम्हारे साथ हॉस्टल में रहेगा जीके भी तब नवी कक्षा में थे । वह जीके का विनय से पहला परिचय था ,भाइयों के जाने के पश्चात जीके और विनय परस्पर काफी देर तक बातें करते रहे । हॉस्टल में जीके और विनय को एक ही कमरा एलॉट हुआ तथा उनकी अलमारी भी एक थी कुछ समय में ही जीके और विनय बहुत ही घनिष्ट मित्र हो गए अब चाहे सुबह उठना हो नाश्ता करना हो पढ़ाई करनी हो या कॉलेज जाना हो ,दोनों संग संग ही जाते थे । क्योंकि जीके का गांव बिलारी के नजदीक था लिहाजा बिलारी से मुरादाबाद व मुरादाबाद से बिलारी आना जाना है सभी संग संग ही होता था ।आपसी सौहार्द के बीच जीके और विनय ने नवी कक्षा अच्छे नंबरों से पास कर ली जीके के माता पिता व विनय के माता पिता दोनों की परीक्षा फल से काफी संतुष्ट थे ।नवी कक्षा के बाद अब दसवीं कक्षा में जीके और विनय पर बोर्ड परीक्षाओं का काफी दबाव था जीके के भाई ने 10वीं व 12वीं की परीक्षा में कॉलेज टॉप किया था लिहाजा जीके पर भी अच्छे नम्बर लाने के लिए काफी दबाव था। जीके समय-समय पर अपने भाई से बोर्ड परीक्षा में अच्छे नंबर लाने हेतु टिप्स ले लिया करते थे । जीके और विनय दोनों ने जल्द ही अपना हाईस्कूल का पूरा सिलेबस कर लिया था और बोर्ड की परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हुए थे , उन दिनों प्री बोर्ड का चलन नहीं था लिहाजा छमाही परीक्षा ही प्री बोर्ड की तरह होती थी छमाई परीक्षाओं में पूरा कोर्स आता था विनय और जीके दोनों अपनी अपने क्लास टीचर से छमाही परीक्षा के टाइम मिलने गए और उनसे पूछा की इस अर्धवार्षिक परीक्षा का क्या महत्व है , तब उनके क्लास टीचर ने कहा कि यह परीक्षा सिर्फ प्रैक्टिस के लिए है , इसके नंबर कहीं नहीं जुड़ेंगे शायद इसका रिजल्ट भी ना आए । अब जीके और विनय दोनों क्लास टीचर से बात कर कर हॉस्टल आ गए और यह सोचने लगे की अर्धवार्षिक परीक्षा दे या ना दे पहले तो दोनों में यह विचार करा की चलो परीक्षा देने में क्या हर्ज है और इस प्रकार पहला पेपर दे दिया , परंतु पहला पेपर देने के बाद दोनों ने सोचा इस प्रकार तो काफी समय नष्ट हो जाएगा , हम परीक्षा ना दे करके घर पर ही तैयारी करें तो ज्यादा बेहतर होगा । हॉस्टल के वॉर्डन स्कूल के टीचर आदि जितने भी शुभचिंतक थे उन लोगों ने विनय और जीके को को बहुत समझाया कि यह परीक्षा तुम्हारे फायदे के लिए ही है ,लेकिन विनय और जीके मानने को तैयार नहीं थे । उनका तर्क था कि हम घर पर ज्यादा बेहतर तरीके से तैयारी कर सकते हैं इस प्रकार विनय और जीके ने अगला पेपर छोड़ दिया ।अब विनय और जीके ने सोचा की घर जाकर तो तैयारी करनी है तो पहले आज चलो पिक्चर देख लेते हैं और दोनों पिक्चर देखने चले गए । अगले दिन विनय और जीके बिलारी आ गए वहां से जीके अपने गांव चले गए घर पहुंचकर विनय ने अपनी माता जी को सारी बात बताई कि वह अर्धवार्षिक परीक्षा नहीं दे रहे हैं और घर पर रहकर ही बोर्ड एग्जाम की तैयारी करेंगे विनय की बात सुनकर विनय की माताजी चुप रही और कुछ ना बोली जब दोपहर को विनय के पिता जी घर आए तो उन्होंने विनय के द्वारा कही गई सारी बात विनय के पिताजी को बताई ,अभी यह बात चल ही रही थी कि किसी ने दरवाजा खटखटाया और विनय ने फौरन दरवाजा खोल कर देखा जीके व उसके दोनों बड़े भाई विनय के घर आए हुए थे । अब तो विनय के पिताजी व जीके के दोनों भाइयों ने मिलकर विनय और जीके दोनों की बहुत डांट लगाई और उन्हें तुरंत वापस जाकर अर्धवार्षिक परीक्षा में शामिल होने के लिए कहा अभी तो घर में विनय और जीके ने पिक्चर वाली बात नहीं बताई थी , वरना क्या होता कहना मुश्किल था । घरवालों के हुक्म के मुताबिक विनय और जीके दोनों वापस हॉस्टल आ गए और अगले दिन की अर्धवार्षिक परीक्षा की तैयारी करने लगे सुबह जब क्लास टीचर , वार्डन आदि लोगों ने विनय और जीके को देखा तो वह मन ही मन मुस्कुराए और उन्हें समझते देर न लगी के कान कहां से उमेठे गए हैं । कुछ दिन तक तो विनय और जीके को बड़ा असहज लगा लेकिन बाद में जीवन चर्या आराम से बीतने लगी । जल्द ही अर्धवार्षिक परीक्षा का परिणाम भी आ गया विनय व जीके के सभी विषयों में नंबर अच्छे थे सिवाय उन दो पेपरों के जिनमें वह अनुपस्थित रहे थे । इसके पश्चात विनय व जीके दोनों अपने-अपने घर आ गए और बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी करने लगे । धीरे-धीरे बोर्ड की परीक्षाएं नजदीक आ रही थी और आखिर वह दिन भी आ गया जब बोर्ड की परीक्षाएं विनय और जीके को देनी थी । बोर्ड की सभी परीक्षाएं विनय और जीके की बहुत अच्छी हुई , परीक्षाओं के पश्चात विनय और जीके दोनों अपने-अपने घर आ गए और बोर्ड की परीक्षा का परिणाम का इंतजार करने लगे । उस समय इंटरनेट नहीं हुआ करता था इसलिए अखबारों में ही परीक्षा का परिणाम आया करता था विनय प्रथम श्रेणी में बोर्ड की परीक्षाओं में पास हुआ जिसकी सूचना विनय के ताऊ जी स्वयं लेकर चंदौसी से आए विनय को जीके के परिणाम की भी चिंता थी ।उसने अपने व्यक्तिगत सूत्रों से पता लगवाया की जीके का परीक्षा परिणाम क्या रहा तो पता चला कि जीके भी प्रथम श्रेणी में पास हुआ है । 8 दिनों बाद जीके और विनय दोनों अपनी मार्कशीट लेने कॉलेज साथ-साथ आए मार्कशीट आ चुकी थी। विनय और जीके दोनों मार्कशीट लेने तुरंत अपने क्लास टीचर के पास पहुंचे तो पता चला कि विनय के 65% वह जीके के 75% नंबर आए थे ,यह देख कर विनय का फ्यूज उड़ गया और वह सोचने लगा की जीके ने और उसने तैयारी तो साथ साथ की है लेकिन नंबरों में इतना फर्क कैसे 8 या 10 नंबर ज्यादा होते तो बात अलग थी ,मगर विनय ने जीके से उस समय कोई बात नहीं की और दोनों चुपचाप वापस बिलारी आ गए । घर पर सब बहुत खुश थे , विनय और जीके के माता पिता उनकी परफॉर्मेंस से अत्यंत प्रसन्न थे । परंतु विनय के मन में यह सवाल बार-बार खाए जा रहा था की जीके के नंबर इतने अधिक कैसे आए ,इसी दौरान जीके के यहां एक प्रोग्राम का निमंत्रण विनय के घर आया और जीके ने विनय से जरूर आने का वादा लिया, विनय जीके के घर प्रोग्राम से पूर्व भी पहुंच गया, वहा उनके माता-पिता का आशीर्वाद लिया, जीके का घर गांव में बड़ा आलीशान बना हुआ था । जीके अपने घर की छत पर विनय को ले गया वहां जीके और विनय दोनों चुपचाप बैठे रहे जीके विनय की प्रश्न सूचक दृष्टि भाप गया था और उसने विनय से पूछा कि तुम मेरे इतने अच्छे नंबरों से प्रसन्न नहीं हो , विनय ने जीके से कहा ऐसी कोई बात नहीं । जीके ने विनय से कहा मैं तुम्हारा मित्र हूं अगर कोई बात है तो मुझसे बेहिचक पूछो तब विनय ने जीके के ऊपर प्रश्नों की बौछार कर दी , जिसक सार यह था की जब वह दोनों साथ-साथ पढ़े साथ साथ घूमे और साथ साथ ही तैयारी करी तो दोनों के नंबरों में इतना फर्क कैसे । जीके यह सुन थोड़ी देर शांत रहे फिर उन्होंने बताया कि वह सिलेबस में प्रयुक्त गणित व साइंस की किताबों के अतिरिक्त अन्य किताबों से भी पढ़ाई किया करते थे । जिससे कि अच्छे नंबर आ सकें । विनय को जीके की यह बात सुनकर बहुत गुस्सा आया और विनय ने जीके से कहा कि यह बात तुम्हें मुझे बतानी चाहिए थी कि तुम अन्य लेखकों की किताबें भी पढ़ते हो , जीके ने तुरंत अपनी गलती स्वीकारी व भविष्य में कभी इस प्रकार की प्रतिस्पर्धा ना करने की कसम ली काफी देर आपसी बहस के बाद दोनों इस नतीजे पर पहुंचे की 11वीं कक्षा में एक जैसे विषय होने पर प्रतिस्पर्धा तो होगी और मित्रता बचानी मुश्किल हो जाएगी, अतः 11वीं में विनय और जीके ने अलग अलग विषयों का चयन किया इस प्रकार दोनों अपने-अपने विषयों में अपनी-अपनी तैयारी करते थे ।इस प्रकार दोनों ने 12वीं में गुड सेकंड डिवीजन से पास की विनय तत्पश्चात चंदौसी व जीके आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ चले गए । विनय और जीके का संपर्क काफी टाइम तक बना रहा परंतु अब की बार 10 वर्षों के पश्चात मुलाकात हुई यह कहकर विनय शांत हुआ और तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सभी बच्चों विनय और जीके की कहानी सुनकर खुश हुए । इसके पश्चात जीके ने विनय से विदा ली और जल्दी आने का वायदा किया।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
तिलक अस्पताल
बिलारी जिला मुरादाबाद
@9410416986
@7906933255
Vivekahuja288@gmail.com

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