Monday, 27 July 2020

मुद्दा :

दिखावा

आज के दौर में समाज में उपस्थित सभी वर्ग में सोशल मीडिया ने अपने पांव पसार लिए हैं ।सोशल मीडिया के विभिन्न एप्स जैसे फेसबुक, टि्वटर ,व्हाट्सएप आदि पूरे हिंदुस्तान पर अपना कब्जा जमा जमा हुए हैं ।चाहे 10 वर्ष का किशोर हो या 80 वर्ष का प्रौण सभी लोग इसकी चपेट में है ।कम उम्र के बच्चे अपनी उम्र अधिक दर्शा कर इसमें आसानी से अपना अकाउंट बना लेते हैं। इसमें प्रवेश संबंधी कोई सख्त कानून नहीं है, इसी कारण छोटे-छोटे बच्चे भी इसे आसानी से चला लेते हैं।
सोशल मीडिया में अपने आप को बड़ा दानवीर शूरवीर दिखाने का भी प्रचलन आजकल जोरों पर है। कुछ लोग गरीबों को सम्मान देते हुए या उनकी किसी प्रकार से मदद करते हुए फोटो पोस्ट करना बड़ा गर्व महसूस करते हैं। मुझे उनके मदद करने से कोई एतराज नहीं है बल्कि यह तो एक अच्छी बात है, मैं उनकी मदद करने की भावना की कद्र करता हूं, परंतु इन सोशल मीडिया के माध्यम से इस तरह की फोटो को पोस्ट करके दिखावा करना , इस नीति पर मुझे ऐतराज है। मेरा मानना यह है कि किसी गरीब की बार-बार मदद करना से अच्छा है उसे आत्मनिर्भर बनाया जाए, उसे कोई कार्य दिया जाए जिससे कि वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके और उसकी मांगने की आदत ना पड़े।
यदि आपको कोई दान ही करना है तो दान की महिमा दान को गुप्त रहने में ही है। यह बात हम नॉर्वे जो कि यूरोप का एक देश है भली-भांति सीख सकते हैं । मैं उसके विषय में आपके साथ दो चार बातें साझा करना चाहता हूं , उनकी इस प्रथा को देखकर हम सब को बड़ी हैरानी होगी कि लोग अपने लोगों की मदद किस प्रकार करते हैं। मदद करने वाले को यह पता नहीं होता कि मैं किसकी मदद कर रहा हूं और मदद लेने वाले को यह भी पता नहीं होता कि मैं किस से मदद ले रहा हूं । यह प्रथा अपने आप में बड़ी विचित्र है और इसे भारतवर्ष में भी अपनाने की अत्यंत आवश्यकता है।
इस बात को हम इस प्रकरण से आसानी से समझ सकते हैं ....
नॉर्वे के एक रेस्तरां के कैश काउंटर पर एक महिला आई और कहा, "पांच कॉफी, एक निलंबित" .
पांच कॉफी के पैसे दिए और चार कप कॉफी ले गई .
एक और आदमी आया , उसने कहा , "चार भोजन , दो निलंबित", उसने चार भोजन के लिए भुगतान किया और दो लंच पैकेट लिया .
एक और आया और उसने आदेश दिया , "दस कॉफी , छः निलंबित", उसने दस के लिए भुगतान किया और चार कॉफी ले ली .
थोड़ी देर के बाद एक बूढ़ा आदमी जर्जर कपड़ों मॅ काउंटर पर आया , "कोई निलंबित कॉफी है ?" उसने पूछा.
काउंटर पर मौजूद महिला ने कहा , "हाँ", और एक कप गर्म कॉफी उसको दे दी .
कुछ क्षण बाद जैसे ही एक और दाढ़ी वाला आदमी अंदर आया और उसने पूछा "एनी सस्पेंडेड मील्स ?" तो काउंटर पर मौजूद आदमी ने गर्म खाने का एक पार्सल और पानी की बोतल उसको दे दी .
अपनी पहचान न कराते हुए और किसी के चेहरे को जाने बिना भी अज्ञात गरीबों , जरुरमन्दों की मदद करना महान मानवता है ।
भारत में भी इस प्रकार की निलंबन प्रथा ( भोजन ) की संभावनाओं का पता लगाया जाना चाहिए ।

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

Tuesday, 21 July 2020

जय माता दी

विषय : यात्रा वृत्तांत लेखन
दिनांक : १९ व २० /०७/२०
विधा : गद्य
शीर्षक : "जय माता दी "

आज मैं बहुत प्रसन्न था क्योंकि अपनी बेटी के मेडिकल में प्रवेश के पश्चात मैं माता वैष्णो देवी के दर्शन का काफी समय से अभिलाषी था और वह समय अब आ गया था। जब परिवार में पत्नी व बेटा माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए जून माह में जाने का मन बना चुके थे । बेटी की मेडिकल की पढ़ाई की वजह से वह कॉलेज में थी । मुरादाबाद से पहले अमृतसर तत्पश्चात वहां से एसी बस के द्वारा कटरा और वापसी जम्मू से सीधे मुरादाबाद इस तरह मैंने टिकट बुक करा लिये ।
निर्धारित तिथि पर अपनी पत्नी सोनिया व पुत्र पार्थ के साथ अमृतसर को रवाना हो गया अमृतसर पहुंचने के पश्चात एक दिन विश्राम कर अगली सुबह एसी बस द्वारा अमृतसर से कटरा के लिए रवाना हुए जो ठीक 11:30 बजे दिन मे कटरा पहुंच गई। मैंने कटरा में एक होटल में रूम बुक पहले ही करा रखा था। अतः कटरा पहुंचकर हम तुरंत होटल पहुंच गए। होटल के रिसेप्शन पर मैंने दर्शन की सारी प्रक्रिया की जानकारी ली । कुछ देर रूम में आराम करने के पश्चात हम माता के दर्शन की पर्ची कटवाने श्राइन बोर्ड के ऑफिस पहुंचे व आईडी दिखा कर हमें दर्शन की पर्ची प्राप्त हो गई।
होटल आकर हमने एक छोटा सा बैग बनाया व शाम 6:00 बजे दरबार की चढ़ाई आरंभ कर दी व बाढ़ गंगा पहुंच गए ।कटरा से माता वैष्णो देवी का दरबार करीब 13 किलोमीटर है ।उसकी चढ़ाई के लिए श्राइन बोर्ड द्वारा काफी अच्छी व्यवस्था की गई है। बच्चों व बुजुर्गों के लिए पिट्ठू और घोड़ों द्वारा चढ़ाई की व्यवस्था है। कटरा से दरबार तक जाने के लिए पिट्टठू का इतिहास भी काफी पुराना है यह लोग पीढ़ी दर पीढ़ी यही व्यवसाय कर रहे हैं और इनके जीवन यापन सिर्फ इसी बात पर टिका है कि लोग दर्शन के लिए यहाँ आये। इन लोगों का रहन सहन वेशभूषा सब कश्मीरी है और सैकड़ों वर्षो से यह लोग पीढ़ी दर पीढ़ी इसी काम को कर रहे हैं।
हम लोगो ने पैदल ही चढ़ाई शुरू कर दी ।करीब आधे रास्ते पहुंच कर अर्ध कुमारी पर दरबार के लिए बोर्ड द्वारा दो रास्तों का निर्माण किया गया है एक रास्ता पैदल यात्रियों के लिए वह दूसरा रास्ता वृद्धजनों व वरिष्ठ नागरिकों के लिए बैटरी संचालित वेन की व्यवस्था की गई है । हमने पैदल पथ पर ही जाना उचित समझा और जय माता दी का जयघोष करते हुए रात्रि 1:00 बजे माता वैष्णो देवी के दरबार पहुंच गए ।
मगर वहां का नजारा देख हमारे पैरों तले जमीन खिसक गई वहा अभूतपूर्व भीड़ थी। पैर रखने की जगह ना थी । जिसे जहां जगह मिली वह वहीं पर ही बैठ कर आराम कर रहा था ।मैं पत्नी सोनिया व पुत्र पार्थ इतनी भीड़ देखकर घबरा गए कि दर्शन किस प्रकार होंगे । हमने वहां एक दुकानदार से दर्शनों की प्रक्रिया को समझा कि किस प्रकार दर्शन करने हैं । दुकानदार ने हमें बताया कि सर्वप्रथम अंदर पिंडी दर्शन के लिए बोर्ड की दुकान से प्रसाद लेना होगा । उसके पश्चात स्नानादि करके साफ कपड़े पहन दर्शन की लाइन में लगना होगा ।
पत्नी के आग्रह पर हमने पहले दर्शन का निर्णय लिया और उसके बाद ही आराम करने का फैसला किया । यह सोच मैं प्रसाद की लाइन में लग गया और आधे पौन घंटे में ही हमें प्रसाद मिल गया ।रात्रि के 2:00 बजे हम स्नानादि करके साफ कपड़े पहन कर तैयार हो चुके थे। लेकिन बैग के साथ दर्शनों का प्रवेश वर्जित था अतः बैग क्लॉक रूम मे रख मैं मेरी पत्नी व पुत्र पार्थ के साथ पिंडी दर्शन के लिए लाइन में लग गए। दर्शनों की लाइन में काफी भीड़ थी हमने सोचा यहां हमें काफी समय लग जाएगा परंतु माता रानी के आशीर्वाद से 1 घंटे के भीतर ही हम दर्शन करके गुफा से बाहर आ चुके थे और अपने आप को सौभाग्यशाली समझ रहे थे कि हमें इतनी जल्दी दर्शन का सुख प्राप्त हो गया ।
सुबह के 4:00 बजे थे और हम काफी थके हुए थे और सोने की व्यवस्था देख रहे थे लेकिन पैर रखने की जगह भी दिखाई नहीं पड़ रही थी । ठंड भी काफी थी और हमारे पास ओड़ने के लिए भी कुछ नहीं था हमने एक बुजुर्ग व्यक्ति से आराम करने की व्यवस्था के बारे में पूछा तो उसने हमें बताया कि यहां सभी प्रकार की व्यवस्था है परंतु भीड़ अधिक होने के कारण सभी व्यवस्था ध्वस्त हो गई है ।अतः जहां आपको जहाँ जगह मिले आप आराम कर लीजिए। हमने छः कंबल किराए पर लिए व कंबल बिछाकर लेट गए लेटते ही कब नींद आ गई पता ही नहीं चला सुबह के 10:00 बज चुके थे सूर्य देवता अपने चरम पर थे। हम लोग भी उठ कर स्नान आदि कर हम वापस कटरा जाने को तैयार हो गए ।उससे बाद भैरव बाबा के दर्शन हेतु इलेक्ट्रिक बोगी में जाने का प्रयास भी किया परंतु भीड़ अधिक होने की वजह हमने उन्हें दरबार से ही प्रणाम कर कटरा की ओर चल दिए ।इसके पश्चात हम जय माता दी करते हुए चरन पादुका ,हाथी मत्था होते हुये शाम 4:00 बजे तक बाढ़ गंगा पहुंच गए और वहां से ऑटो कर होटल आये । कुछ देर आराम करने के पश्चात रात्रि 9:00 बजे हम कटरा स्थित बस स्टैंड की मेन मार्केट में आए और वहां से अपने परिवारिक मित्रों के लिए प्रसाद लिया तत्पश्चात रात्रि का भोजन कर 10:30 बजे तक वापस होटल आ गए ।
अगले दिन रात्रि 10:30 बजे कि हमारी मुरादाबाद की ट्रेन थी जो हमें जम्मू से पकड़नी थी। अगली सुबह नाश्ता आदि कर हमने कटरा का मेन मार्केट घुमा और मल्टीप्लेक्स में "कबीर सिंह" पिक्चर देखी ।उसके पश्चात शाम 4:30बजे जम्मू के लिए बस पकड़ ली क्योंकि जम्मू का बस स्टैंड रेलवे स्टेशन के सामने ही है । हम पैदल ही रेलवे स्टेशन पहुंच गए। शाम के 6:30 बजे थे और हमारी ट्रेन रात्रि 10:30 बजे की थी सो हमने क्लॉक रूम में सामान रखकर रघुनाथ मंदिर दर्शन का फैसला किया और ऑटो से रघुनाथ मंदिर आ गए । रघुनाथ मंदिर की यह विशेषता है कि हिंदू धर्म में की मान्यता के अनुसार सभी 33 करोड़ देवी देवताओं के पिंड स्वरूप यहां उपस्थित हैं लोग यहां उन्हीं के दर्शन के लिए ही आते हैं और अपने आप को सौभाग्यशाली समझते हैं। आसपास मार्केट देखकर हमने 9:00 बजे तक स्टेशन पर वापसी कर ली ।क्लॉक रूम से अपना सामान निकाल कर हम प्लेटफार्म पर पहुंचे हमारी गाड़ी वापसी की तैयार खड़ी थी। हमने रिजर्वेशन वाली सीट पर अपना सामान रख दिया निर्धारित समय 10:30 बजे ट्रेन मुरादाबाद की ओर चल पड़ी और हमने माता रानी को प्रणाम कर अपनी सफल यात्रा के लिए धन्यवाद दिया और जयकारा लगाया।

"जय माता दी"

स्वरचित

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
Vivekahuja288@gmail.com 

श्रम का महत्व



अब्राहम लिंकन के पिता जूते बनाते थे, जब वह राष्ट्रपति चुने गये तो अमेरिका के अभिजात्य वर्ग को बड़ी ठेस पहुँची!
सीनेट के समक्ष जब वह अपना पहला भाषण देने खड़े हुए तो एक सीनेटर ने ऊँची आवाज़ में कहा, *मिस्टर लिंकन याद रखो कि तुम्हारे पिता मेरे और मेरे परिवार के जूते बनाया करते थे!* इसी के साथ सीनेट भद्दे अट्टहास से गूँज उठी! लेकिन लिंकन किसी और ही मिट्टी के बने हुए थे! उन्होंने कहा कि, *मुझे मालूम है कि मेरे पिता जूते बनाते थे! सिर्फ आप के ही नहीं यहाँ बैठे कई माननीयों के जूते उन्होंने बनाये होंगे! वह पूरे मनोयोग से जूते बनाते थे, उनके बनाये जूतों में उनकी आत्मा बसती है! अपने काम के प्रति पूर्ण समर्पण के कारण उनके बनाये जूतों में कभी कोई शिकायत नहीं आयी! क्या आपको उनके काम से कोई शिकायत है? उनका पुत्र होने के नाते मैं स्वयं भी जूते बना लेता हूँ और यदि आपको कोई शिकायत है तो मैं उनके बनाये जूतों की मरम्मत कर देता हूँ! मुझे अपने पिता और उनके काम पर गर्व है!*
सीनेट में उनके ये तर्कवादी भाषण से सन्नाटा छा गया और इस भाषण को अमेरिकी सीनेट के इतिहास में बहुत बेहतरीन भाषण माना गया है और उसी भाषण से एक थ्योरी निकली *Dignity of Labour (श्रम का महत्व)* और इसका ये असर हुआ की जितने भी कामगार थे उन्होंने अपने पेशे को अपना सरनेम बना दिया जैसे कि - *कोब्लर, शूमेंकर, बुचर, टेलर, स्मिथ, कारपेंटर, पॉटर आदि।*
अमरिका में आज भी श्रम को महत्व दिया जाता है इसीलिए वो दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति है।
वहीं भारत में जो श्रम करता है उसका कोई सम्मान नहीं है वो छोटी जाति का है नीच है। यहाँ जो बिलकुल भी श्रम नहीं करता वो ऊंचा है।
जो यहाँ सफाई करता है, उसे हेय (नीच) समझते हैं और जो गंदगी करता है उसे ऊँचा समझते हैं।
ऐसी गलत मानसिकता के साथ हम दुनिया के नंबर एक देश बनने का सपना सिर्फ देख सकते है, लेकिन उसे पूरा नहीं कर सकते। जब तक कि हम श्रम को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखेंगे।जातिवाद और ऊँच नीच का भेदभाव किसी भी राष्ट्र निर्माण के लिए बहुत बड़ी बाधा है।

संकलित

विवेक आहूजा
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 

कोरोनाकाल

 आज पूरे विश्व में कोरोना का प्रकोप अपने भयावह रूप में जारी है ।हर देश और प्रत्येक व्यक्ति इससे त्रस्त है । इसका प्रकोप दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है और प्रत्येक व्यक्ति इससे बाहर निकलने की कोशिश में लगा हुआ है ।लाखों की तादाद में लोग मर रहे हैं लेकिन इससे बचने के उपाय अभी नजर नहीं आ रहा हैं ।
इस कोरोना काल में दो तरह की धारणाएं पूरे विश्व में काम कर रही हैं। एक धारणा के अंतर्गत वह लोग आते हैं जो अपने घरों में छुप कर बैठे हैं और अपने परिवार को भी घर के अंदर दुबका के रखा हुआ है। इस धारणा के व्यक्ति बहुत जरूरी होने पर ही घरों से बाहर निकल रहे हैं और कोशिश कर रहे हैं जितना सामान घर पर उपलब्ध है उसी से ही काम चल जाए, अगर इसके अतिरिक्त भी कोई रास्ता ना हो तभी वह घर से बाहर निकलते हैं। असल में यह वही लोग हैं जो सरकार द्वारा निर्देशित गाइड लाइन पर ही चल रहे हैं और इस बीमारी की गंभीरता से डरे हुए है ।इसके अलावा करोना कॉल में दूसरी धारणा भी काम कर रही है जिसे मानने वाले लोग सड़कों पर खुलेआम घूम रहे हैं, जरूरी ना होने पर भी छोटी-छोटी चीजों के लिए बाजारों में पहुंच जाते हैं, अपने बच्चों को स्कूटर पर घुमा रहे हैं अगर सच पूछो तो इस धारणा को मानने वाले लोग सरकार द्वारा निर्देशित गाइडलाइन के बिल्कुल विपरीत चल रहे हैं। इनका मानना है कि यह कोई गंभीर बीमारी नहीं है इससे कुछ नहीं होगा ,हम बहुत स्ट्रांग हैं ,असल में इसी धारणा के 80% व्यक्ति ही कोरोना पॉजिटिव होकर अस्पतालों की शोभा बढ़ा रहे है, और बाकी लोगों को भी मुसीबत में डाल रहे हैं ।
अतः आप सभी पाठकों से विनम्र निवेदन है की प्रथम धारणा को ही अपनाएं घर बैठे, जरूरी होने पर ही निकले, सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन का पालन करें, और स्वस्थ रहें ।अन्य दूसरी धारणा का पालन करने पर आप कब संकट में पड़ जाएंगे कुछ कह नहीं सकते।

"बाकी आपकी मर्जी"

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
Vivekahuja288@gmail.com

मै मर्द हूँ


• डॉक्टर साहब की दुकान पर शाम को कोई मरीज नहीं था और वह खाली बैठे हुए थे । तभी उनके कुछ मित्र उनके पास आकर बैठ गए और राजनीतिक चर्चा शुरू होने लगी बातों बातों में इमरजेंसी की बात होने लगी कुछ लोग इसके पक्ष में तो कुछ लोग विपक्ष में चर्चा करने लगे । जब काफी देर तक कोई निष्कर्ष ना निकला तो डॉक्टर साहब ने उन्हें बीच में रोकते हुए कहा "मैं आपको इमरजेंसी से संबंधित एक घटना के बारे में बताता हूं इसे सुनने के पश्चात आप स्वयं निर्णय लें कि क्या सही है और क्या गलत" डॉक्टर साहब ने कहना शुरू किया .....
• यह बात सन 1975 की है जब इमरजेंसी की घोषणा हो चुकी थी । सभी दफ्तर सुव्यवस्थित रुप से चल रहे थे ,कांग्रेसी अपने विरोधियों को ढूंढ ढूंढ कर जेलों में डलवा रहे थे ।उसी दौरान एक गांव में रामलाल नाम का युवक जिसने अभी हाल ही में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की थी आगे की पढ़ाई के लिए बरेली यूनिवर्सिटी आया हुआ था । वह बीए की डिग्री बरेली यूनिवर्सिटी से करना चाहता था । बरेली से मुरादाबाद वापसी के समय अपने मित्र के साथ वह रामपुर के बस स्टैंड पर उतर गया बस स्टैंड पर उसने कुछ लोगों की भीड़ देखी और वह भीड़ की ओर चल दिया । वहां जाकर उसने देखा की एक एंबुलेंस में कुछ लोगों को जबरदस्ती पकड़ कर ले जाया जा रहा है । इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता 2 सिपाही उसके पास आए और बोले "इस लड़के को भी ले चलो " यह सुन रामलाल बुरी तरह घबरा गया और अपना बचाव का भरसक प्रयास किया लेकिन सिपाहियों के आगे उसकी एक न चली और उन्होंने रामलाल को एक एंबुलेंस में डाल दिया । सारे रास्ते रामलाल एंबुलेंस के कर्मचारियों से पूछता रहा "भाई हमें कहां ले जा रहे हो और क्यों" मगर किसी ने रामलाल की बात का कोई उत्तर नहीं दिया । कुछ ही देर में एंबुलेंस सरकारी अस्पताल पहुंच गई वहां पहुंचकर सिपाहियों ने रामलाल को पकड़ा और ऑपरेशन थिएटर की तरफ ले गए । रामलाल की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है पूरा सरकारी अस्पताल पुलिस छावनी में बदला हुआ था। ऑपरेशन थिएटर पहुंचकर रामलाल ने रोते हुए डॉक्टर से पूछा "मुझे यहां क्यों लाया गया है" डॉक्टर ने कहा "हम एक मामूली सी जांच करेंगे उसके बाद तुम्हें घर भेज दिया जाएगा " रामलाल अभी भी कुछ नहीं समझ पा रहा था, कुछ समय पश्चात दो डॉक्टर आए और रामलाल को नशा सुघा कर उसके नाभि के नीचे कट लगाकर रामलाल का ऑपरेशन कर दिया । नशा कम होने पर जब रामलाल को होश आया तो वार्ड बॉय ने उसे बताया " तेरा बच्चे बदं का ऑपरेशन हो गया है " यह सुन रामलाल के पैरों तले जमीन निकल गई ।उसने रूआंसू होते हुए वार्ड बॉय को बताया कि " मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है " और जोर जोर से रोने लगा ।उसका रुदन सुन सारा स्टाफ इकट्ठा हो गया और सभी ने उसे समझाया कि अब कुछ नहीं हो सकता अगर विरोध करोगे तो जेल जाना पड़ेगा । यह सुन डर के मारे रामलाल चुपचाप वहां से अपने गांव आ गया गांव पहुंच कर उसने आपबीती पूरे परिवार को बताई । धीरे-धीरे यह बात उसके आस पड़ोस में भी पता लग गई । चूंकि राम लाल इंटर पास हो चुका था और इस उम्र में गांव देहात में लोग बच्चों की शादियां कर देते थे, अतः रामलाल के परिवार को भी यह उम्मीद थी कि अब उसके रिश्ते आने लगेंगे । लेकिन जब भी कोई लड़की वाला आता उसे कहीं ना कहीं से रामलाल के विषय में पता लग जाता की इसका बच्चे बंद का ऑपरेशन हो चुका है और यह नामर्द है । इस तरह कई रिश्ते आए और इन्हीं कारणों से टूट गए ।
• करीब 19 माह के लंबे अंतराल के बाद इमरजेंसी खत्म हुई और लोगों ने राहत की सांस ली अब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार थी। रामलाल का परिवार डॉक्टर साहब से काफी परिचित था और अपना इलाज कराने अक्सर उनके पास आया करता था उन्होंने डॉक्टर साहब कोअपनी आपबीती बताई और उनसे कुछ मदद करने का आग्रह किया । डॉक्टर साहब के प्रयासों से रामलाल के परिवार को स्थानीय विधायक, सांसद व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री तक मिलवाया गया और रामलाल के परिवार ने अपनी आपबीती उन्हें सुनाई केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री एवं सांसद के प्रयासों से रामलाल का पुनः ऑपरेशन हो गया, जिसमें डॉक्टर ने बच्चे बंद की गांठ को खोल दिया। अब राम लाल का परिवार काफी प्रसन्न था ।उन्हें यह उम्मीद थी की उनके ऊपर जो नामर्दी का धब्बा लगा है वह धुल गया है और शीघ्र ही रामलाल की शादी हो जाएगी। परंतु ऑपरेशन के काफी समय बाद तक शादी का कोई प्रस्ताव नहीं आया और जो भी प्रस्ताव आए वह लोग इस बात से संतुष्ट नहीं हुए की रामलाल की मर्दानगी वापस आ गई है गांव में लोगों ने यह अफवाह फैला दी कि रामलाल का कोई ऑपरेशन नहीं हुआ है यह झूठ बोलते हैं ।अब राम लाल अपना दुखड़ा लेकर डॉक्टर साहब के पास पहुंचा और और उन्हें सारी बात से अवगत कराया ।उसने कहा कि " मेरे घर कोई रिश्ता लेकर नहीं आ रहा है सभी को इस बात पर संदेह है कि मै पूर्णता स्वस्थ हो गया हू और बच्चा पैदा करने में सक्षम हूँ " अब उन्हें कैसे समझाएं कि मेरा ऑपरेशन हो चुका है और" मै पूरी तरह मर्द हूँ " उसकी बात सुन डॉक्टर साहब भी पशोपेश में पड़ गए और उन्होंने कहा कि मैं इसमें तुम्हारी कैसे मदद कर सकता हूं क्योंकि उस समय तक ऐसा कोई तरीका नहीं था जो यह साबित कर सके कि रामलाल बच्चा पैदा करने में सक्षम हैं । रामलाल अब 35 वर्ष का हो चुका था विवाह की सभी संभावनाएं करीब-करीब खत्म हो चुकी थी एक दिन अचानक वह घर से रात को कहीं चला गया पूरे परिवार ने उसे बहुत ढूंढा पर कोई नतीजा न निकला, रामलाल का कहीं कोई पता ना था। रामलाल को घर से गए करीब 6 माह का समय बीत चुका था ।परिवार को भी लगने लगा कि वह अब जीवित भी है कि नहीं ।तभी गांव का एक व्यक्ति भागा भागा उनके घर आया और उसने बताया कि करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक गांव में एक मंदिर है वह उसमें जो महात्मा है उसकी शक्ल रामलाल से बहुत मिलती है। पूरा परिवार भागा भागा उस मंदिर में पहुंचा तो उन्होंने देखा की रामलाल महात्मा बन चुका है। उन्होंने रामलाल को बहुत समझाया लेकिन रामलाल ने घर जाने से मना कर दिया और अपना पूरा जीवन मंदिर की सेवा में लगाने का फैसला उन्हें सुना दिया। परिवार के लोग यह सुन मायूस मायूस होकर घर वापस आ गए।
• डॉक्टर साहब ने अपनी वाणी को विराम दिया और उनके मित्र भी चुपचाप उनके समीप बैठे रहे ।तभी डॉक्टर साहब का कंपाउंडर भागा भागा उनके पास आया और बोला "डाक्टर साहब मंदिर वाले महात्मा जी का निधन हो गया हैं " यह सुन डॉक्टर साहब तुरंत उठ कर महात्मा जी के अंतिम दर्शन को चल दिए ।
• इमरजेंसी तो सरकार ने लगा दी लेकिन उसके परिणामों के बारे में नहीं सोचा ।इमरजेंसी में यदि पहला प्रेस की आजादी दूसरा फैमिली प्लानिंग तीसरा विपक्षी दलों के व्यक्तियों को जेल यह तीनों कृत्य ना किए गए होते तो वह समय भारत के लिए बहुत ही अनुशासन वाला था। लोग ऑफिसों में समय पर आते थे सभी काम सुव्यवस्थित चल रहा था। परंतु फैमिली प्लानिंग के चलते कस्बों में लगने वाली बाजारो में सालों तक प्रौण महिलाएं ही आती रही और पुरुष डर के मारे घरों और खेतों में दुबके रहे ।असल में फैमिली प्लानिंग का फैसला सरकार की मंशा को दर्शाता है सरकार की मंशा तो ठीक थी क्योंकि जनसंख्या पर नियंत्रण भी जरूरी था परंतु उसका तरीका बहुत गलत था। अतः इसका दुष्परिणाम भी देखने को मिला और रामलाल जैसे लोगों को यह दंश जीवन भर झेलना पड़ा ।


स्वरचित

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
Vivekahuja288@gmail.com
@9410416986

Monday, 6 July 2020

अदिति



आज दिसम्बर की बीस तारीख सन् 2014 है को मैं और मेरी पत्नि डा0 सोनिया आहूजा (बी0ए0एम0एस0) ठिठुरते हुये दिल्ली के आनन्द बिहार बस स्टेण्ड पर एसी बस से उतरे। वहां हमने जस्ट डायल कम्पनी के माध्यम से पता किया कि आनन्द बिहार बस स्टैण्ड के निकट मेडिकल कोचिंग इस्टीट्यूट की कौन सी शाखा है। जस्ट डायल कम्पनी से हमें यह पता चला कि प्रीत बिहार में यहां से सबसे निकट मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा है। हमने बिना समय गवांये फौरन वहां के लिये आटो किया व जल्द ही कोचिग की ब्रांच पहुंच गये।
असल में मैं और मेरी पत्नी  मेरे बीमार चाचा जी की मिजाज पुर्शी के लिये दिल्ली आये थे, साथ ही हमारे जहन में अपनी बेटी अदिती अहूजा के लिये भविष्य में अच्छी कोचिंग, जोकि उसे मेडिकल प्रवेश परीक्षा में सहायक हो सके, का भी पता करने का था। ज्यादातर अपने मित्रगणों से सलाह के पश्चात मैं और मेरी पत्नि इस नतीजे पर पहुंचे कि यह इंस्टीट्यूट मेडिकल कोचिंग के लिये बेहतर विकल्प है।
हम मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की प्रीत विहार की शाखा में पंहुचकर वहां के अधिकारी से मिले तब हमें उन्होंने यह बताया कि मेडिकल प्रवेश परीक्षा की कोचिंग वह दसवीं क्लास के बाद करवाते हैं तथा दसवीं क्लास के दौरान वह एक स्कालरशिप परीक्षा का आयोजन करते हैं, जिसका नाम एन्थे हैं। उन्होंने हमसे सितम्बर माह में सम्पर्क करने को कहा जब अदिती दसवीं में हो तब। यह जानकारी हासिल कर हम लारेंस रोड स्थित अपने चाचा जी के आवास पर उनका हाल जानने पहुंच गये। इस बात को करीब एक वर्ष बीतने को था अदिती दसवीं में आ चुकी थी। हमें मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की एन्थे परीक्षा की बात ध्यान थी। परीक्षा का फार्म कैसे प्राप्त हो, यह बड़ी समस्या थी, तब हमारी बहन आरती डोगरा पत्नि श्री राजेश डोगरा निवासी चण्डीगढ़ ने वहां स्थित कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा से ऐन्थे का फार्म प्राप्त किया व स्पीड पोस्ट से हमें भेज दिया। अब ऐन्थे का फार्म भर कर हमें जमा करना था इसके लिये हमने कोचिंग इंस्टीट्यूट की मुख्य शाखा में फोन पर जानकारी हासिल की तो पता चला कि फार्म आप किसी भी मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा में जमा करवा सकते हैं। हमारे निकटतम मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की शाखा मेरठ में थी अतः हमने फार्म मेरठ स्थित अपने मौसेरे भाई श्री राजेश अरोरा जी को स्पीड पोस्ट कर दिया, श्री अरोरा जी ने स्वंय कोचिंग इंस्टीट्यूट के ऑफिस जाकर ऐन्थे का फार्म जमा किया।
दिसम्बर 2015 में ऐन्थे की परीक्षा हुई जिसका परीक्षा केन्द्र मेरठ ही था, मैं और मेरे मौसेरे भाई श्री राजेश जी अदिती को लेकर परीक्षा केन्द्र पहुंचे व 3 घण्टे परीक्षा के दौरान वही बाहर खड़े होकर उसका इंतजार करने लगे। परीक्षा के उपरान्त अदिती ने बताया कि परीक्षा अच्छी हुई है। तत्पश्चात मैं और अदिती बिलारी बापस आ गये व अदिती अपनी दसवीं की बोर्ड परीक्षा की तैयारी में जुट गई।
जनवरी 10 या 15 2016 की बात थी मैं मोबाइल में नेट चला रहा था दिमाग में आया चलो अदिती ने जो एन्थे की परीक्षा दी थी उसे जांच लेते हैं कि परीक्षा फल कब आयेगा। मैंने मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की साइट चैक करी तो पता चला कि एन्थे का परीक्षाफल तो आ चुका है, मैं फौरन भागा-भागा अपने कमरे में आया व अदिती का प्रवेश पत्र निकाल कर उसका रोल नम्बर देखा व फिर दोबारा से मेडिकल कोचिंग इंस्टीट्यूट की बेवसाइट चेक करी तो एन्थे का रिजल्ट मेरे सामने था, मैं पैनी नजरों से अदिती का रोल नम्बर ढूढ रहा था, मैंने पहले 50% , 60% , 70% , 80% स्कालरशिप कॉलमों में अदिती का रोल नं0 देखा परन्तु मुझे उसका कोई रोल नम्बर कही नहीं मिला। काफी खोजबीन करने पर मुझे ज्ञात हुआ कि रोल नं0 डालकर भी सीधा परीक्षाफल प्राप्त किया जा सकता है। मैंने अदिती का रोल नम्बर इन्स्टीट्यूट की साइट में डाला तो उसका परीक्षाफल देखकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। अदिती को 100% स्कालरशिप मिला था व उसकी ऑल इण्डिया रैक ढेड लाख बच्चों में से 121 थी। इन्स्टीट्यूट में 100% स्कालरशिप का अर्थ करीब 3.50 लाख रूपये की छूट थी। घर में खुशी का माहौल था जैसे हमने आधा मैदान मार लिया लिया था। मैने मेडिकल कोचिंग के मुख्य शाखा दिल्ली में फोन कर अदिती का परीक्षाफल कन्फर्म किया तब उन्होंने मुझे बताया कि अदिती को 100% स्कालरशिप मिला है व अदिती को इस्टीट्यूट में एक रूपया भी नहीं देना है बल्कि वह 11वी व 12वी में  दो वर्षों तक अदिती को मेडिकल प्रवेश परीक्षा की कोचिंग करवायेगा। इसके साथ ही उन्होनें हमें पूरे भारत वर्ष में कोचिंग की किसी भी शाखा में फ्री (निशुल्क) कोचिंग का ऑफर दिया। मैंने उनसे सोचने के लिये कुछ वक्त मांगा कि कोचिंग कहा करवानी है, उन्होंने हमें 15-20 दिनों का वक्त दिया और कहा आप हमें सोच समझकर बता दें। घर के सभी लोग अदिती के स्कूल से घर लौटने का इंतजार करने लगे ताकि उसे उसकी उपलब्धी से अवगत करा सके। अदिती के स्कूल से आते ही दादा, दादी, मम्मी, भाई पार्थ सबने उसे गले से लगा लिया व 100% व स्कालरशिप व पूरे भारत में कहीं भी मेडिकल कोचिंग की बात बताई। अदिती ने अपने चिर परिस्थिति अंदाज में कह दिया पापा वह पहले 10 की बोर्ड परीक्षा की तैयारी करेगी,
 परीक्षा के बाद ही मेडिकल कोचिंग का सोचेगी। अब घर में मंथन शुरू हुआ कि अदिती कोचिंग कहा करेगी। सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि अदिती 10th डी०पी०एस०, मुरादाबाद से कर रही थी व हमारा 10/12 भी वहीं से कराने का इरादा था। पता यह चला कि कोचिंग का समय सुबह 8 बजे से दोपहर 2.30 बजे तक है, तो अदिती अपनी 10/12वी की पढ़ाई कैसे करेगी। कुछ मित्रो ने सलाह दी कि डमी एडमीशन कराकर कोचिंग करा सकते हैं। किन्तु इसके लिये मन नहीं माना। अपनी दुविधा मैंने इन्स्टीट्यूट की मुख्य शाखा, दिल्ली में फोन करके बताई कि हमारा परिवार अदिती को दिल्ली की साउथ एक्स शाखा में कोचिंग कराना चाहता है, किन्तु डी0पी0एस0 मुरादाबाद में भी एडमीशन बरकरार रखकर 11°/12 वी करवाना चाहते हैं, यह कैसे सम्भव होगा। हमारी दुविधा को इंस्टीट्यूट वालो ने समझा व हमें यह सलाह दी कि वह वीकेन्ड क्लास भी कोचिंग कराते है। उन्होने हमसे कहा कि आप डी0पी0एस0 मुरादाबाद में 11वी प्रवेश करा के सोमवार से शुक्रवार तक अदिती को पढ़ाकर शनिवार व रविवार को वीकेंड क्लासेस साउथ एक्स, दिल्ली शाखा में ज्वाइन करा सकते हैं। साथ ही उन्होनें यह भी कहा यह काम मुश्किल जरूर है लेकिन असम्भव नहीं है। मुझे उनकी वीकेंड क्लास वाली बात पसन्द आई व परिवार, मित्रों, अदिती को यकीन दिलाकर कि यही हमारे लिये सही है मैं जनवरी 2016 के अन्तिम सप्ताह स्वंय जाकर इन्स्टीट्यूट की साउथ एक्स शाखा में अदिती का रजिस्ट्रेशन करा दिया। उन्होनें हमें मार्च 2016 की अन्तिम सप्ताह से वीकेंड क्लास शुरू होने की बात कहीं व समय से आने का निर्देश दिया।
मार्च 2016 से अन्तिम सप्ताह में अदिती की वीकेंड क्लासेस शुरू हो गई, मैं और अदिती प्रत्येक शुक्रवार शाम 4.30 बजे बिलारी से बस से निकलते 5.15 पर कोहिनूर चौराहा, मुरादाबाद पहुंचकर 5.30 बजे एसी0 बस दिल्ली जाने वाली पकड़ लेते थे, एसी0 बस ठीक रात्री 9 बजे कौशम्बी (दिल्ली) बस स्डेण्ड पहुंच जाती थी, वहां से साउथ एक्स, दिल्ली का आटो पकड़कर आर0के0 लौज पंहुच जाते थे। शनिवार सुबह 8 बजे अदिती कोचिंग क्लास चली जाती थी और मैं सुबह 9.30 बजे तैयार होकर चांदनी चौक, भागीरथ पैलेस सर्जीकल मार्केट चला जाता था। दोपहर 2.30 बजे अदिती की क्लास छूटती थी मैं भी 2.30 बजे तक सर्जिकल मार्केट से लौट आ जाता था। इसके बाद हम फोन पर बंगाली स्वीट को आडर देकर खाना मंगवाकर खाते थे। उसके पश्चात शाम 4.30 बजे तक आराम कर अदिती अपनी पढ़ाई में लग जाती मैं भी कुछ किताब पड़ने या लिखने में लग जाता। रात्री 9.30 बजे मैं मैकडोनाल्ड से अदिती के लिये बर्गर आदि लाकर देता व कुछ हल्का फुल्का खुद खाकर 10 बजे तक सो जाता था। अदिती 12 या 1 बजे तक पढ़ती रहती थी। व रविवार सुबह 8 बजे उठकर कोचिंग क्लास चली जाती। रविवार के दिन में सुबह 11 बजे तक तैयार होकर कमरा खाली कर देता था व सारा सामान आर0के0 लौज के रिस्पशन पर रखकर, सर्जिकल सामान की सप्लाई के लिये निकट के मार्केट जैसे, कोटला, लाजपतनगर, आईएनए आदि चला जाता था। करीब 2.15 बजे दोपहर तक मार्केट से वापस आकर लौज से सारा सामान उठाकर मैं इस्टीट्यूट के बाहर अदिती के आने का इंतजार करता व ठीक दोपहर 2.30 बजे जब उसकी छुट्टी होती तो हम आटो से कौशम्बी बस स्टेण्ड आ जाते, वहां हम 3.30 या 4 बजे शाम वाली एसी बस से मुरादाबाद आ जाते, फिर मुरादाबाद से बिलारी की बस पकड़ कर रात्रि करीब 9 या 10 बजे तक बिलारी पहुंचते थे। ऐसा रूटीन था हमारा शुक्रवार से रविवार के मध्य और ऐसा रूटीन अप्रेल 2016 से सितम्बर 2016 तक लगातार चला। हमारे कई मित्र जब इस रूटीन को सुनते तो ताजुब्ब करते थे और कहते थे कि आपने बहुत मुश्किल राह चुन ली है, मगर मुझे गीता की उस श्लोक का स्मरण था जिसका अर्थ है "कर्म कर कल की चिन्ता मत कर' सितम्बर 2016 तक हम हर सप्ताह दिल्ली आते रहे व अदिती की पढ़ाई भी अच्छी चल रही थी। इस्टीट्यूट में होने वाले टेस्टों में अदिती अच्छा प्रदर्शन कर रही थी यह देखकर मेरी भी हिम्मत बढ़ती रही।
अचानक एक दिन सितम्बर 2016 के अन्तिम सप्ताह की बात है, अदिती घर में एक कमरे में लाइट बंद करके बैठी हुई थी। मैंने लाइट खोली तो देखा अदिती रो रही थी, मैंने अपनी पत्निी डा0 सोनिया आहूजा व माता जी को बुलाया व अदिती से रोने का कारण पूछां, अदिती ने रोते हुये कहा-पापा मैं बहुत थक जाती हूं व 11 की पढ़ाई भी मैं ढंग से नहीं कर पा रही हूं। अदिती की बात सुनकर घर के सभी लोग स्तम्भ रह गये, लेकिन हमें अदिती की भावनओं को भी समझना था अतः हमने अदिती का पक्ष लेते हुये उसे समझाया कि हम सब उसके साथ वह अपनी पढ़ाई सम्बन्धी निर्णय लेने के लिये स्वतन्त्र हैं।
इसके बाद सितम्बर 2016 से हमनें दिल्ली आकाश की शाखा में जाना बन्द कर दिया। इधर अदिती भी अपनी 11वी की पढ़ाई में व्यस्त हो गई, दो तीन सप्ताह इस्टीट्यूट न जाने की बजह से हमें वहा से बार-बार फोन आने लगे कि आप क्यों नहीं आ रहे है। अदिती को एक माह लगातार 11 की पढ़ाई मुरादाबाद करने के बाद अपनी भूल का अहसास हुआ व एक दिन वो मेरे व सोनिया के पास आकर बोली पापा मैं कोचिंग पुनः शुरू करना चाहती हूं। हमारी खुशी का ठिकाना न था, क्योंकि अदिती ने स्वंय कोचिंग करने को उसी शक्रवार से कोचिंग शुरू करने को कहा, और उससे पूछा कि पिछले एक माह में जो कोचिंग का नुकसान हुआ है उसे वह किस प्रकार पूरा करेगी। अदिती ने कहा मैं दिल्ली से मुरादाबाद जाने वाली बस में चार घण्टे मोबाइल पर यूट्यूब क्लास ले लेगी व रात को भी देर तक पढ़कर अपने एक माह के नुकसान की भरपाई कर लेगी। हमें अदिती पर पूर्ण विश्वास था और हमने उसकी कोचिंग पुनः चालू करवा दी। उसके बाद चाहे एक दिन के लिये भी क्लास लगी अदिती ने कभी छुट्टी नहीं की।
इस प्रकार हम अक्टूबर 2017 तक प्रत्येक शुक्रवार को दिल्ली आते रहे कभी अदिती की मम्मी व कभी दादी भी समय-समय पर उत्साहवर्धन के लिये उसके साथ दिल्ली आती रही।
अक्टूबर 2017 तक अदिती ने अपनी कोचिंग क्लास में 11 व 12* का पूरा कोर्स कर लिया उसके बाद मेडिकल कोचिंग इस्टीट्यूट की यह नियम था कि वह 11th का कोर्स दोबारा शुरू कर देते थे। अदिती ने हमसे कहा कि उसने 11 व 12* का कार्स अच्छे से कर लिया है। फिर 11th का कोर्स दोबारा करने के लिये वीकेंड पर आना जरूरी नहीं "मैं अच्छे से घर पर ही तैयारी कर पाउगीं।" हमने इस बार भी अदिती के निर्णय को प्रथमिकता दी व अक्टूबर 2017 से वीकेंड क्लास में आना बंद कर दिया।
अब अदिती ने घर पर ही तैयारी शुरू कर दी व अक्टूबर 2017 से दिसम्बर 2017 तक पूरी 11वी का कोर्स तैयार कर लिया। इसी बीच अदिती ने हमें बताया कि दिल्ली कोचिंग की भागदौड़ में वह 12th बोर्ड की परीक्षा की इंग्लिश की तैयारी नहीं कर पाई है। अदिती ने पहले यूट्यूब से इग्लिश की क्लास ली पर यूट्यूब में उसे काफी समय लग रहा था और बोर्ड परीक्षा काफी नजदीक थी। तब हमने मुरादाबाद एक अंग्रेजी की अध्यापिका जोकि काफी प्रतिष्ठित स्कूल में कार्यरत हैं उनसे मिलकर अपनी समस्या बताई। अदिती से मिलकर वो काफी प्रभावित हुई व उन्होनें अदिती को अंग्रेजी पढ़ाने का वादा किया। लेकिन उन्होने कहा कि वह कभी-कभी ही पढ़ा सकती है, हमने उनकी सभी शर्ते स्वीकर कर अदिती को वहां ट्यूशन शुरू कर दिया। अंग्रेजी की अध्यापिका ने 5 या 6 बार बुलाकर 3-3 घण्टे पढ़ाकर अंग्रेजी का 12 का कोर्स करा दिया परिणाम स्वरूप अदिती के 12 बोर्ड परीक्षा में पूरे स्कूल में अधिकतम नम्बर आये जो 96.4% थे। इसके अतिरिक्त अदिती ने पूरे जिले में चौथा स्थान प्राप्त किया।
अदिती 12वी की परीक्षा हो चुकी थी और वीकेंड क्लास जिसमें हम पिछले दो वर्षों से जा रहे थे उसकी मुख्य परीक्षा नीट 2018 भी होने वाली थी, चूंकि अदिती ने अक्टूबर 2017 से कोचिंग सेन्टर जाना बंद कर दिया था, अतः हमने परीक्षा के बीच करीब एक माह के समय में अदिती क्रेश कोर्स कर ले ताकि उसने जो भी दो वर्षों में तैयारी की है उसका रिविजन हो जाये। इसके लिये अदिती ने क्रेश कोर्स र्हेतु फिर स्कालरशिप की परीक्षा दी जिसमें उसे 80% स्कालरशिप मिली, हमने बाकी की 20% फीस देकर अदिती का क्रेश कोर्स में रजिस्ट्रेशन करा दिया।
चूंकि क्रेश कोर्स प्रतिदिन होना था, अतः हमने यह निर्णय लिया कि 12th की बोर्ड परीक्षा के तुरन्त बाद मैं अदिती के साथ दिल्ली में एक माह रहकर क्रेश कोर्स पूर्ण
करवाऊगां। जब क्रेश कोर्स से पूर्व हम दिल्ली पहुंचे तो हमें इन्स्टीट्यूट की शाखा से पता चला कि इस्टीट्यूट की तरफ से जो हमने दो वर्षों तक वीकेन्ड क्लास की थी उस पूरे कोर्स के 12 टेस्ट नीट 2018 से पहले लिये जायेगें। हम फिर दुविधा में फंस गये कि क्रेश कोर्स करे या 12 टेस्ट दें। हमने अदिती से उसकी राय पूछी तो उसने कहा कि हम जो कोर्स करने दिल्ली आये थे, उसे ही पूरा करेगें व उससे सम्बन्धित 12 पेपर देगें। अगर समय बचा तो क्रेश कोर्स के अन्त में मुख्य टेस्ट दे देगें। हमने एक बार अदिती के निर्णय को प्राथमिकता दी व नीट 2018 से पूर्व 12 टेस्ट दिये।
अंत में नीट 2018 के पेपर का दिन भी आ गया, उस पेपर का केन्द्र हमने दिल्ली ही रखा था ताकि अन्तिम समय में हमें इधर-उधर न भागना पड़े। पेपर से ठीक एक दिन पहले अदिती की मम्मी भी दिल्ली पहुंच गई ताकि अदिती का उत्साह वर्धन हो सके। अदिती का पेपर बंसत बिहार स्थित हरकिशन पब्लिक स्कूल में हुआ पेपर सुबह 10 से दोपहर 1 बजे तक था, मैं और सोनिया बाहर कड़कती धूप में इंतजार करते रहे, ठीक 1 बजे अदिती का पेपर खत्म हुआ बाहर आकर उसने हमसे कहा कि पेपर ठीक हो गया है। हमने ईश्वर का धन्यवाद दिया व चैन की सांस ली। उसके बाद हम आर0के0 लौज पहुंचे व अपना सारा सामान समेटकर बस द्वारा बिलारी की ओर रवाना हो गये व रात्रि 10 बजे तक बिलारी पहुंच गये।
अगले दिन अपने दो वर्षों की थकान मिटाकर सुबह सब तैयार बैठे थे, सभी ने परम पिता परमेश्वर से आर्शीवाद लेने का निर्णय किया व अदिती को लेकर हम मन्दिर पौड़ा खेड़ा पहुंचे व शिवलिंग पर जल चढ़ाकर ईश्वर से आर्शीवाद प्राप्त किया। मन्दिर से लौटकर मैंने अदिती को नेट से नीट 2018 की उत्तर कुंजी निकाल कर दी व उससे बिल्कुल सटीक नम्बर गिनने को कहा। अदिती ने तुरन्त ही उत्तर कुंजी से नम्बर गिनने शुरू किये व इस निष्कर्ष पर पहुंची थी उसके 581 से 590 नम्बर बीच नीट 2018 में आ जायेगें। यह सुन हमारा पूरा परिवार संतुष्ट हो गया कि अदिती अब डॉक्टर बनने के करीब है बस नीट 2018 के रिजल्ट आना बाकी है। अब वो दिन भी आ चुका था जब नीट 2018 का रिजल्ट आना था, असल में नीट ने पहले 5 जून 2018 रिजल्ट को कहा था, मैंने अनायास ही 4 जून 2018 को इन्स्टीट्यूट की शाखा दिल्ली में फोन कर लिया व पूछा कि नीट का रिजल्ट कब आयेगा, तब उन्होनें मुझे बताया कि
नीट 2018 का परीणाम आज ही आने वाला है। मैंने तुरन्त अदिती को तैयार होकर परम पिता से आर्शीवाद लेने को कहा, तत्पश्चात मैं व अदिती अपने घर के समीप गुल प्रिंटर्स पर रिजल्ट देखने पहुंचे, वहां पता चला कि रिजल्ट आ चुका है ।अदिती का रोल नम्बर व सेन्टर नं0 उन्हें बताया तब उन्होनें जैसे ही अदिती का रोल नम्बर व सेन्टर नं0 कम्प्यूटर में डाला तो रिजल्ट स्क्रीन पर था अदिती के 581 नम्बर आये थे और उसकी ऑल इण्डिया रैंक 2988 थी अब वह डॉक्टर बन चुकी थी। मेरे व अदिती की आंखो से आंसू निरन्तर बह रहे थे, हमारी दो वर्षों की मेहनत सफल हो चुकी थी। वहां खड़े सभी लोगों ने हमें ढेरो शुभकामनायें दी, हम नीट 2018 के रिजल्ट का प्रिंट आउट लेकर घर आ गये और ये खुश खबरी पूरे परिवार को बता दी। इसके बाद दोपहर एक 1 बजे से रात्रि 10 बजे तक फोन पर व व्यक्तिगत रूप से पूरे बिलारी के हमारे सभी मित्रों ने बधाई दी। पूरे परिवार में सभी हंस खुशी के पल में आंसू भी बहा रहे थे, ये खुशी के आंसू थे क्योंकि यह सफलता 2 वर्षों के अथक प्रयासों के बाद अर्जित हुई थी।
नीट 2018 के रिजल्ट के बाद काउंसलिंग का दौर शुरू हुआ जो करीब दो माह तक चला जिसमें अदिती को स्टेट काउंसिलिंग के माध्यम से कानपुर मेडिकल कालेज जी0एस0वी0एम0 में दाखिला मिला, चूंकि अदिती की स्टेट रैंक 263 व ऑल इण्डिया रैंक 2988 रही इस कारण अदिती अपनी पंसद का कॉलेज चुनने में भी सफल रही। आज अदिती जी०एस०वी०एम० मेडिकल कालेज, कानपुर में एम0बी0बी0एस की पढ़ाई कर रही है और अपना भविष्य संवारने के लिये प्रयासरत है, मैं उसके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं। लेकिन जंग अभी जारी हैं..
इस प्रेरणा दायक कहानी लिखने का मेरा मकसद कोई सहानूभति लेना नहीं है, मैं बस इतना चाहता हूं कि इसे पढ़कर यदि एक छात्र भी प्रेरित होकर अपना भविष्य संवार पाये तो मेरा प्रयास सफल होगा।

धन्यवाद।

आपका

विवेक आहूजा (अदिती का पिता )

विभाजन : जिम्मेदार कौन


आज पूरे 1 वर्ष के बाद लवी अपने बच्चों के साथ मम्मी पापा से मिलने आई थी। बच्चे व लवी के भाई के बच्चे मिलकर शाम को खेल रहे थे लवी के मम्मी पापा टीवी देख रहे थे इसी बीच लवी के मम्मी पापा में बहस होने लगी और बात काफी आगे बढ़ गई लवी की मम्मी चाहती थी कि वह टीवी पर अपना प्रिय सीरियल बुनियाद देखें जो कि भारत-पाकिस्तान के विभाजन पर आधारित है जबकि लवी के पापा न्यूज़ देखना चाहते थे दोनों अपनी बात पर अड़े हुए थे मगर टीवी तो एक ही था सब बच्चे नाना नानी को लड़ते हुए देख रहे थे और मन ही मन मुस्कुरा रहे थे कि यह तो हमारी तरह लड़ रहे हैं। तभी लवी के पापा ने कहा की विभाजन का सीरियल क्या देखना है हमने तो विभाजन अपनी आंखों से देखा है । यह सुन बच्चे काफी रोमांचित हो गए और उन्होंने नाना जी को विभाजन की कहानी सुनाने को कहा टीवी बंद हो चुका था और नाना जी ने कहना शुरू किया।
मैं आपको विभाजन की कहानी सुनाता हूं। विभाजन मतलब पाक और हिंदुस्तान का विभाजन कैसे हुआ और उसमें वर्तमान पाकिस्तान के मशहूर प्रांत खैबर पख्तून पाकिस्तान का सबसे ऊपरी हिस्से का प्रांत है जिसकी सीमा अफगानिस्तान से मिलती है। भारत का सबसे आखरी रेलवे स्टेशन और उसका मशहूर जिला बन्नू के वह रहने वाले हैं । भारत और पाक के बंटवारे के संदर्भ में हमने विभाजन का वह दृश्य अपनी आंखों से देखा हमारा जिला बन्नू बहुत ही खूबसूरत और चारों ओर चारदीवारी से घिरा हुआ था ।जिसके 6 दरवाजे वहा से अफगानिस्तान की सीमा और नो कंट्री लैंड था । पख्तून बिलोज और कबाइली के कबीले रहते थे ।वह कबीले कभी भी आकर हमारे खूबसूरत जिले को घोड़ों के समूह में लुटेरों की तरह लूट लेते थे ।जिसको वहां की भाषा में गद्दी के नाम से पुकारा जाता था। बनू एक बहुत ही खूबसूरत जिला था जिसमें अधिकतर आबादी पठानों की थी सन 1947 की 7 अगस्त को हमारे पड़ोस के एक पठान परिवार के तांगे वाले ने हमें यह सलाह दी कि आप अगर यहां मुसलमान बनकर रहना चाहो तो कोई बात नहीं वरना यहां आपकी जिंदगी को खतरा हो सकता है। हमारे परिवार में यूनानी हिकमत का काम कई पुस्तो से होता था इसलिए वह तांगेवाला हमारे परिवार से बहुत प्रेम मानता था। उसकी सलाह पर हमने अपने खूबसूरत और खानदानी मकान को छोड़कर भारत की तरफ आने का फैसला किया। तब हमारे पिता हकीम जी हमारी माता हमारी बड़ी बहन और हम तीन भाई तांगे पर बैठे और जो जरूरी घरेलू सामान था वह उसमें लाद दिया तांगे वाले से हमने अपने शफा खाने की तरफ चलने को कहा जो सब्जी मंडी के पास था ।तांगा वहां पहुंचा हकीम जी ने दुकान खोली और एक पेटी जिसमें हमारे खानदानी कुश्ते रखे थे और हिकमत की कुछ किताबें जो हस्त लिखी थी तांगे में रखी उसी समय वहां मारकाट का दौर आरंभ हो गया तांगेवाला हमारे जिले के मशहूर आदमियों में गिना जाता था। हमारी तरफ
बढ़ती भीड़ को रोकते हुए उसने चेतावनी दी कि कोई भी हकीम साहब के परिवार को कुछ भी नहीं कह सकता अगर किसी ने ऐसी हिमाकत की तो मैं उसे गोली से शुट कर दूंगा दंगाई पीछे हट गए।
 तांगे वाले ने हिफाजत से हमें पंजाब की तरफ आने वाली ट्रेन में आंसू भरी निगाहों से विदा किया। यह हमारे खानदानी पैशे की ही मेहरबानी है कि हम वहां से हिफाजत से हिंदुस्तान की तरफ आ सके गाड़ी ने हमें पंजाब की तरफ रवाना किया और हम लोग फगवाड़ा के स्टेशन पर उतर गए। वहां की एक मशहूर धर्मशाला में हमारी बड़ी बहन और उनके जेठ और देवर सब परिवार सहित हमारा इंतजार कर रहे थे। वहां हमने एक रात आराम से काटी और दिल से उस तांगे वाले का शुक्रिया अदा किया तब तक पंजाब में भी फ्रंटियर की तरफ से आने वाले हिंदुओं की जुबानी बन्नू के बारे में पूरी जानकारी हो चुकी थी    ।
अब मैं कहानी को बननू फिर दोबारा ले चलता हूं यह 9 अगस्त 1945 की बात है सारे सरकारी कर्मचारी और चुने हुए जनप्रतिनिधि सब एक समुदाय विशेष के थे उन सब ने मिलकर के एक हवा बनाई की बनू से पंजाब की ओर 10 तारीख को एक आखरी ट्रेन जाएगी उसके बाद पंजाब की तरफ हिंदुस्तान की ओर कोई और ट्रेन नहीं जाएगी। इस अफवाह का यह असर हुआ के शहर के सभी संपन्न और मालदार आदमियों ने सिफारिश करके ट्रेनों में अपनी टिकट की व्यवस्था कर दी यही उन लुटेरों की स्कीम थी। जो मालदार आदमियों को लूटना चाहते थे 10 तारीख अगस्त 1947 मे ट्रेन खचाखच भरी हुई थी ट्रेन के पायदान के ऊपर छतों पर और जहां जिसको जगह मिली 500 आदमियों के डब्बे में हजार बारह सौ से ज्यादा लोग भरे यह नजारा उस तरह था। जिस तरह आपने फिल्म गदर के अंदर देखा होगा। ट्रेन अपने स्टेशन से चल पड़ी 12 किलोमीटर जाने के बाद ट्रेन की पटरी पर पेड़ों के बड़े-बड़े लट्ठे डाल दिए गए थे ट्रेन रुक गई और पख्तून कबीले के पठान और बंजारे लुटेरों ने बहुत बेदर्दी से ट्रेन को लूटा मालदार लोगों को बेदर्दी से लूटा गया जवान लड़कियों को उठाकर साथ ले गए बाकी लोगों को बेदर्दी से खत्म कर दिया गया। ट्रेन के इंजन को ट्रेन से अलग करके उसके ड्राइवर को कहा गया कि वह आगे जाकर के पंजाब के आदमियों को बता दें ही अब सारी ट्रेन कट कर ही आएंगी और ड्राइवर को कहा गया यह खबर आपको पंजाब में सबको बतानी है कि हम किसी को भी अब जिंदा नहीं भेजेंगे जब ट्रेन का इंजन पंजाब की सीमा मे गया और वहां पता लगा किस तरह फ्रंटियर के आदमियों को बेदर्दी से पूरी ट्रेन को काट दिया गया । तो पूरे पंजाब में एक कोहराम मच गया और सरदारों में इस बात की यह प्रतिक्रिया हुई वहां भी दूसरे समुदाय के आदमियों को मारकाट शुरू हो गई। हकीम साहब और उनके परिवार के लोग काफी घबरा गए थे हकीम साहब ने अपने तीनों लड़कों के हाथ पर ओम शब्द गुदवाया और उनके सिर मुंडवा कर चोटी रखें गले में जनेऊ डाला ताकि दूर से आने वाले आदमियों को यह महसूस हो जाए कि यह हिंदू समुदाय के हैं ।क्योंकि सरदार सिखों के अतिरिक्त सभी बिना पगड़ी वालों को दूसरे समुदाय का समझकर मारने लगे थे किसी तरह 10 तारीख की रात मुश्किल से हम लोगों ने फगवाडे में ही काटी मारकाट होने की वजह से लाशों को उठाने वाला कोई नहीं था ।सब और लूटपाट मच गई गिद्ध लाशों को नोच नोच कर खा रहे थे शहर में हैजा फैल गया हम लोग वहां से जालंधर की ओर रवाना हुए और हकीम साहब के दामाद और उनके कुनबे के लोग दिल्ली की ओर रवाना हुए जालंधर में पहुंचकर हम लोग अपनी एक रिश्तेदारी में रूके वहां भी ज्यादा दिन तक हम लोग नहीं रूक सके हमारे पिता हकीम साहब खानदानी हकीम थे वह हरिद्वार में रहने की ठान चुके थे। क्योंकि हरिद्वार ही आयुर्वेदिक दवाइयों का एक ऐसा स्थान है जहां आयुर्वेद की अनंत औषधियों का भंडार है। मगर किस्मत ने हमारी जिंदगी की कहानी किसी और शहर के लिए लिखि थी । जालंधर से जब हम ट्रेन में बैठ कर हरिद्वार की ओर चले तो सालदा ट्रेन में नगीने से एक मुसाफिर ट्रेन में चढ़ा और बहुत देर तक हकीम साहब के पास खड़ा रहा भीड़ भीड़ बहुत थी आदमी पर आदमी चढ़ा हुआ था हजारों की भीड़ में बैठने की जगह कहां हकीम साहब ने उस खड़े हुए आदमी को खुद खड़े होकर बैठने की जगह दी और कहा कि मैं बहुत दूर से आ रहा हूं आप बैठिए मैं थक गया हूं बातचीत आरंभ हुई उस आदमी ने हकीम साहब से उनकी दास्तान के बारे में पूछा तो मुसाफिर जिनका नाम रामप्रसाद था उन्होंने हकीम साहब से कहा कि हमारा एक दोस्त बहुत सख्त बीमार है उसको शहर के बाहर एक मकान में रखा गया आदमी बहुत मालदार है। लेकिन अपने कपड़े फाड देता है इस वजह से उसे आबादी से दूर एक मकान में रखा गया आप उनका इलाज कर दें हरिद्वार न जाए उनको आप ठीक कर दे मैं आपको मुंह मांगी कीमत दिलवा दूंगा । मुरादाबाद के स्टेशन से हम लोग चन्दौसी आने वाली ट्रेन में बैठ गए और चंदौसी पहुंचकर हम लोगों को उसी मकान में रहने की व्यवस्था कर दी गई हकीम साहब ने मरीज को देखा मरीज के हथेली के नाखूनों में कुछ देख कर उन्हें उनकी बीमारी के बारे में अंदाज हुआ मरीज बहुत मालदार था और और प्रदेश के अच्छे-अच्छे डॉक्टरों को दिखाकर मायूस हो चुका था। उसे अपनी सुध नहीं थी हकीम साहब ने राम प्रसाद से एक शर्त रखी यह दशहरे के दिन थे मैं मरीज को ठीक कर दूंगा चाहे मुझे इतनी मेहनत करनी पड़े मगर मैं जो मांगूंगा वह रकम आपको देनी होगी बात तो हो गई और हकीम साहब ने अपनी शर्त के हिसाब से दिवाली के दिन तक मरीज को ठीक कर दिया और उन्हें लेकर बाजार तक पैदल लेकर आए पूरे शहर में हंगामा हो गया कि यह हकीम जो फ्रंटियर से आया है। इसने एक ऐसे मरीज को ठीक किया है जिससे प्रदेश के अच्छे अच्छे डॉक्टर भी ठीक नहीं कर पाए। बात पूरे शहर में बिजली की तरह पहुंच गई मरीज अपनी दुकान पर पहुंचा शर्त के अनुसार जो रकम तय हुई थी उससे काफी कम रकम हकीम साहब को दी गई और उन्हें इस बात के लिए राज़ी करने की कोशिश की गई कि वह यहीं पर रह जाएं अपना शफाखाना यही खोल ले व हम एक फार्मेसी बनाएंगे आप उसमें अपने सभी नुस्खे फार्मेसी को दे दे । लेकिन किसी के अधीन होकर काम करना हकीम साहब को गवारा नहीं था ।उन्होंने उस रकम को लेकर बाजार के पास ही अपना एक किराए की दुकान का इंतजाम किया और जो रकम मिली थी वह एडवांस में 1 साल के किराए के रूप में दुकान मालिक को दे दी और खाली हाथ ही घर पर पहुंचे अगले दिन अपनी खानदानी कुशते की पेटी लेकर अपनी दुकान पर आए चटाई बिछाकर बैठ गए ।शहर में उनके आमद की खबर रंग लाई और मरीजों के लाइन लग गई ।हर मरीज को कुशते की पुड़ियां दे कर किसी ना किसी आयुर्वेदिक पौधा लाने के लिए कहा किसी को ग्लो लाने के लिए कहा तो किसी को नींम किसी को ग्वार का पाठा आयुर्वेदिक औषधियों का ज्ञान होने के कारण ग्रामीण अंचलों के आदमियों ने देसी दवाई उनके पास लानी शुरू कर गाड़ी चल निकली और हम चनदौसी के निवासी हो गए ।मुद्दा यह है यह विभाजन किसने करवाया और क्यों करवाया विभाजन से आए हुए लोगों को देश ने सम्मान पूर्वक तो लिया ।लेकिन हमारे नाम के आगे शरणार्थी भगोड़े पंजाबी कई नाम लगा दिए गए। पुश्तैनी जमीन और ज्यादा दिन छोड़कर भारत में आपसे अपने ही देश के लोगों को शरणार्थी का नाम दे दिया गया मन बहुत दुखी था। मगर राजनीति के खिलाड़ियों ने देश को टुकड़ों में बांट दिया और उसका नतीजा भुगता हमारे हिंदू समुदाय के व्यक्तियों बहुत कड़ी मेहनत और मशक्कत से अपने आप को एक नई जगह पर स्थापित करना अपने व्यवसाय को बनाना बच्चों को पालना उनको शिक्षित करना अपना मुकाम बनाना कोई बच्चों का खेल नहीं । यह आदमी के हाथ में उसकी लकीरें तो हैं लेकिन भाग्य आपको वहीं पर ले जाता है जहां आपने जिंदगी काटनी और दाना पानी जहां का लिखा हो वही जिंदगी कटती है विभाजन एक कलंक है जिसके लिए देशवासी कभी उन आदमियों को माफ नहीं करेंगे जो जो इस विभाजन के जिम्मेदार हैं ।
आज पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमंत्री इमरान खान साहब भी उसी प्रांत के है। एक बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मुशर्रफ दिल्ली आए थे तब वहां उन्होंने अपनी जन्म स्थान को देखने की ख्वाहिश जाहिर की और चांदनी चौक के एक मोहल्ले में जहां उनका जन्म हुआ था वहां वहां जाना उनकी सबसे बड़ी ख्वाहिश थी यह होती है दर्द दिल की जुबान कि आदमी का दिल हमेशा उसी स्थान के लिए देखना पसंद करता है जहां उसका जन्म हुआ ।इस पीड़ा को राजनेता कभी नहीं पहचानता है उम्मीद है वह लोग जो इस बंटवारे के इस विभाजन के जिम्मेवार है उन्हें कुदरत कभी न कभी सजा जरूर देगी ।
यह कहकर नाना जी शांत होकर बैठ गए सभी बच्चों ने ताली बजाकर नाना जी विभाजन की कहानी की बहुत प्रशंसा करी और नानी के हाथ से टीवी का रिमोट छीन कर नाना जी को दे दिया व अगले दिन एक कहानी और सुनाने का वादा लिया ।

डा तिलक राज आहूजा
तिलक अस्पताल
बिलारी , जिला मुरादाबाद
@9410829937
Vivekahuja288@gmail.com 

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