"सर्द हवाएँ"
ए सर्द हवाओं , यूं ना सताओ
गरीब की मुश्किल , तुम ना बढ़ाओ
गरीब की जान पर , बन आती हो तुम
कुछ तो रहम करो , उसकी जान तुम बचाओ
किसी के लिए , शौक का परवाना हो तुम
आशियाना जिनका नहीं , उनके लिए कितना मुश्किल आना हो तुम
जरा धीरे चलो , थोड़ा रहम करो
बहुत हो चुका , अब चली भी जाओ
"सर्द हवाओं"
(स्वरचित)
विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com
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