Saturday, 6 November 2021

जिन्दा

 लघुकथा :


"जिन्दा"

विनय स्कूटर को स्टैंड पर खड़ा करके अपने अपार्टमेंट में आता है । उसे बहुत तेज प्यास लगी थी , वह रसोई में जाकर पानी पीता है , फ्रिज खोलकर कुछ खाने की कोशिश करता है , तभी उसकी नजर बाहर खिड़की पर पड़ती है और वह यह देख कर चौक जाता है कि उसका स्कूटर बाहर चौराहे पर गिरा पड़ा है , लोगों की भीड़ वहां जमा है , वह यह देखकर अचंभित हो जाता है । वह फौरन अपना अपार्टमेंट को लॉक कर एक्सीडेंट वाली जगह पहुंचता है । वहां जाकर विनय देखता है कि स्कूटर के साथ लहूलुहान एक लड़का सड़क पर गिरा पड़ा है और वो भी एकदम उसकी शक्ल , यह देख विनय घबराता है । वह लोगों से बात करने की कोशिश करता है , तो वो किसी से बात नहीं कर पा रहा था , वह उस लड़के को उठाने की कोशिश करता है तो वह उसे उठा नहीं पा रहा था ।
तभी एक जोर का घुसा उसके मुंह पर आकर पड़ता हैं और वह बुरी तरह घबराकर उठ बैठता है , मोहन उसे कहता है कि जब इतना ही डर लगता है तो रात को हॉरर फिल्में मत देखा कर , विनय की अब जान में जान आई क्योंकि वह "जिंदा" था ।


✍विवेक आहूजा
बिलारी 

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