Monday 15 August 2022

याञी - द ट्रैवलर

 "यात्री - द ट्रैवलर"


EPISODE : 1

सुरभि आज अपने कॉलेज जाने के लिए जल्दी तैयार हो गई थी क्यों ना हो आज उसका कॉलेज का पहला दिन जो था । कॉलेज के शुरुआती दिन में सब अच्छा हो यही सोच वह घर के सभी बड़ों का आशीर्वाद लेकर अपने कॉलेज की शुरुआत करना चाहती थी , मम्मी ने सुरभि को रात को ही ऑल द बेस्ट कह दिया था लेकिन पापा से रात को भी ज्यादा बात नहीं हो पाई थी , सुरभि ने मम्मी से पूछा पापा कहां है ? मुझे उनसे मिलकर कॉलेज जाना है । सुरभि की मम्मी ने उसे बताया कि आकाश (सुरभि का पिता) को पता नहीं आजकल क्या हो गया जब से उनके माता-पिता व भाई की कार एक्सीडेंट में मृत्यु हुई है ,वो बहुत ही खोए खोए से रहते हैं , रोज सुबह सुबह ही समुद्र किनारे चले जाते हैं और घंटो वहीं बैठे रहते हैं । सुरभि को अपनी मां की बात सुन बहुत आश्चर्य हुआ और वह अपनी मां से शिकायत भरे लहजे में बोली पापा इतने परेशान हैं और आपने मुझे बताया तक नहीं , मैं आज ही पापा से बात करूंगी ।
इतना कह सुरभि अपने शहर कुट्टी के बाहरी छोर जहां समुद्र का किनारा था वहां चली गई । कुट्टी एक दक्षिण भारत का खूबसूरत कस्बा था जो कि समुद्र के किनारे बसा हुआ था , शहर के लोग अक्सर घूमने समुद्र के किनारे आ जाया करते थे । आकाश भी यही अक्सर आता था , सुरभि अपने घर से आकाश को मिलने के लिए निकल पड़ी । समुद्र के किनारे पहुंच सुरभि ने आकाश को पैनी निगाह से ढूंढना शुरू किया काफी देर ढूंढने के पश्चात उसे आकाश एक कोने में बैठा मिल गया , सुरभि दूर से ही आकाश को देख रही थी । आकाश की आंखों से आंसू बह रहे थे और वह कुछ बडबडा रहा था , दूर होने के कारण सुरभि कुछ सुन नहीं पा रही थी सुरभि आकाश के और नजदीक आ गई और गौर से आकाश की आवाज सुनने लगी । आकाश फूट-फूट कर रो रहा था और कह रहा था "पापा , मम्मी , भैया मैं एक बार फिर अनाथ हो गया , अब मुझे कौन सहारा देगा , पहले तो आप सब ने मुझे संभाल लिया , अब कौन संभालेगा"
सुरभि ने आकाश के कंधे पर हाथ रखा तो आकाश ने पीछे मुड़कर देखा , हाथों से आंखों के आंसू पहुंचते हुए सुरभि से बोला "आओ सुरभि बैठो" सुरभि ने आकाश से कहा..... "पापा आप आजकल कहां है , हम सब आपके साथ हैं ,मैं हूं , मम्मी है" आकाश ने रुंधे गले से सुरभि के सर पर हाथ फेरते हुए कहा .. .मां-बाप व भाई की कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता और आकाश अपने मुंह कंधे मे छुपाए बैठ गया ।
सुरभि ने पापा को ढाढ़स बधाते हुए कहा ..... "पापा एक बात पुछू"
आकाश ने कहा ...."पूछो"
बेटी सुरभि ने कहा..... पापा आप रोते हुए कह रहे थे एक बार फिर अनाथ हो गया इसका क्या मतलब हुआ मेरी समझ में नहीं आया ।
आकाश ने सुरभि की बात सुन सकपका गया और बात बीच में ही काटते हुए बोला कोई बात नहीं है चलो घर चलते हैं । आकाश की हड़बड़ाहट को सुरभि भाप गई और आकाश से बोली पापा आप हम पर विश्वास नहीं करते क्या ? आकाश ने कहा..... "ऐसी कोई बात नहीं" सुरभि ने बीच में ही बात काटते हुए आकाश का हाथ अपने सर पर रख दिया और बोली "पापा आप को मेरी कसम है , सच सच सच बताओ आपको क्या परेशानी है"
आकाश ने कहना शुरू किया यह उन दिनों की बात है जब मैं बारहवीं कक्षा में पढ़ता था । हम कुट्टी के हंसी-खुशी जीवन व्यतीत कर रहे थे । मेरे माता-पिता और मैं बहुत झगड़े होते थे , लेकिन वह जल्द ही एक दूसरे को मना भी लेते थे ,मेरी बहन रोजी का ध्यान पढ़ाई में कम और मेकअप में ज्यादा रहता था । कुल मिलाकर लड़ते झगड़ते एक दूसरे को मनाते हमारा परिवार चल रहा था ।
एक शाम हम सब समुद्र के किनारे सैर पर आए हुए थे कि अचानक से खतरे का अलार्म बज गया और लोगों को समुद्र तट से अपने घरों को जाने का आर्डर हो गया । कारण यह था कि यहा बहुत ही भयंकर तूफान आने वाला था इसी कारण प्रशासन समुद्र तट पर चौकसी कर रहा था , हम सब लोग भी तूफान का नाम सुन घबरा गए और अपना सामान समेटकर जाने की तैयारी करने लगे । अभी हम लोग अपना सामान समेट ही रहे थे कि अचानक से समुद्र की बड़ी-बड़ी लहरें तट पर प्रवेश कर गई और सब कुछ बहा कर अपने साथ ले जाने लगी , धीरे-धीरे वह लहरें बढ़ने लगी और हमारे जैसे सैकड़ों परिवार उसकी चपेट में आ गए । मेरा पूरा परिवार उस समुद्री तूफान में बह गए , मैं भी समुद्री लहरों में चपेट में आने से अपनी सद्बुद्धि खो बैठा और मुझे कुछ याद ना रहा की लहरें हमें कहां ले जा रही हैं ।

क्रमश:

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986


"यात्री - द ट्रैवलर"


EPISODE : 2


अगले दिन मैंने अपने आप को समुद्र के किनारे रेत पर पड़ा पाया , मैं उठकर जब वहां का नजारा देखा तो ऐसा लग ही नहीं रहा था कि यहां समुद्र में तूफान आया है ।
मैं तेजी से अपने घर की ओर भागा भागते भागते मैं कुछ ही समय में अपने घर पहुंच गया घर पर सब कुछ सामान्य था , मैंने डोर बेल बजाई तो दरवाजा मेरी मम्मी ने खोला और खुलते ही उन्होंने मुझे डाटा आकाश इतने गंदे होकर कैसे घूम रहे हो । मैंने कुछ नहीं कहा और सीधे अपने कमरे में चला गया , लेकिन अपने कमरे की हालत देख बहुत अचरज में पड़ गया अमूमन में अपना सामान बहुत ही व्यवस्थित रखता था लेकिन मेरे कमरे में सब कुछ बिखरा पड़ा था , कपड़े क्या किताबे क्या सब कुछ देख मैं आश्चर्यचकित हो गया । मैं तुरंत बाहर अपनी मम्मी के पास आया और उनसे पूछा कि मेरे कमरे का इतना बुरा हाल किसने किया तो मम्मी ने हंसते हुए कहा "यह तुम पूछ रहे हो कभी अपना सामान उठाकर इधर से उधर रखा है , हमेशा ही तो ऐसे रहता है , तुम्हारा कमरा"
मम्मी के यह शब्द सुन मेरे पैरों तले जमीन निकल गई । मेरे साथ यह क्या हो रहा है ,मैं भागकर रोते रोजी के कमरे में गया तो रोज अपनी पढ़ाई में व्यस्त थी उसके कमरे में प्रवेश कर ऐसा लग रहा था कि किसी अच्छे पढ़ने वाले बच्चे के कमरे में किताबों की रेक लगी हुई थी ,नाइट लैंप टेबल चेयर आदि को देख अचरज में पड़ गया रोजी और पढ़ाई , मैंने रोजी से पूछा तुम मेरे कमरे में गई थी क्या ? रोजी ने कहा ...."मैं तो रात से लगातार पड़ रही हूं , मुझे एग्जाम की तैयारी करनी है" मैं क्यों जाऊंगी ? रोजी के व्यवहार को देख मुझे एक और झटका लगा , यह क्या हो गया ? जो लड़की सारा दिन मेकअप करती रहती थी , वह अचानक से कैसे बदल
गई ।
लेकिन मैं चुप रहा और अपने कमरे में आकर सो गया । सुबह सुबह उठ मैं यह देख कर मुझे और भी ताज्जुब हुआ कि मम्मी पापा जो सुबह से ही लड़ना शुरू कर देते थे वह बड़े प्यार से हंस हंस कर बातें कर रहे थे । नाश्ते की टेबलपर पापा ने मुझसे पूछा आकाश तुम तो 10 दिन के स्कूल टूर पर गए थे इतनी जल्दी कैसे आ गए । मैं चुप रहा और कुछ नहीं बोला पापा ने आगे कहा चलो कोई बात नहीं अब अपने रूम मे जाकर पढ़ाई करो । मैं अपने रूम में आकर लेट गया और सोचने लगा यह सब मेरे साथ क्या हो रहा है पापा स्कूल टूर की बात क्यों कर रहे हैं और सोचते-सोचते मेरी आंख लग गई । मैं जब उठा तो मेरे साथ वही सब हैरान करने वाली बातें हो रही थी , सभी के स्वभाव में इतना परिवर्तन मेरे लिए बहुत परेशान करने वाला था , मैंने सोचा सभी लोगों एक साथ बदल नहीं सकते शायद मुझे ही कुछ हुआ है । मैं चुपके से एक मनोचिकित्सक के पास पहुंचा और उसे बताया कि मुझे सभी के स्वभाव में परिवर्तन नजर क्यों आ रहा है ,मनोचिकित्सक ने कुछ जरूरी जांच कर मुझे बताया कि तुम्हें कुछ नहीं हुआ है थोड़ा आराम करो सब ठीक हो जाएगा ।
इसी तरह हैरानी भरे करीब करीब 10 दिन बीत गए 1 दिन सुबह अचानक डोर बेल बजी तो पापा ने मुझ को कहा देखो आकाश कौन है , मैंने जैसे ही दरवाजा खोला तो सामने क्या देखता हूं कि हूबहू मेरी तरह एक लड़का दरवाजे के सामने खड़ा है । ऐसा लग रहा था जैसे मैं ही नहीं शीशे के सामने खड़ा हो गया हूं , वो भी मुझे देखकर ऐसे ही भौचक्का रह गया जैसे कि मैं , परिवार के सभी लोग भी दरवाजे पर आ चुके थे और वह हम दोनों को हैरानी से देख रहे थे । तभी चुप्पी तोड़ते हुए दरवाजे पर खड़े लड़के ने मेरे पापा से पूछा पापा यह कौन है , पापा मम्मी को कुछ कहते नहीं बन रहा था । उन्होंने हिम्मत करके उस लड़के से पूछा...... तुम कौन हो ? तो उस लड़के ने बताया उसका नाम आकाश है और वह स्कूल टूर पर गया था आज वह टूर से वापस आया है । टूर की बात सुन पापा मम्मी रोजी समझ मे सारा माजरा आ गया कि दरवाजे पर खड़ा लड़का ही असली आकाश है , अब तो उन सब लोगों ने मुझे कस कर पकड़ लिया कि यह कोई बहरूपिया है । लेकिन मैंने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की , कि मैं भी आकाश हूं और आपका बेटा हूं । मैंने उन्हें अपने साथ घटी सारी घटनाएं विस्तार से बताई कि किस प्रकार मैं अपने परिवार के साथ समुद्र तट पर गया और तूफान की चपेट मे आकर मेरा पूरा परिवार बह गया जब मुझे होश आया तो मैं सीधे घर आ गया और मुझे यहां सब कुछ बदला बदला नजर आया । जैसे रोजी का व्यवहार आपका व्यवहार ,मनोचिकित्सक को भी दिखाया मेरी बातें सुन मम्मी पापा और रोजी को यकीन आ गया क्योंकि उन्होंने भी मेरे साथ पिछले 10 दिनों में यह सब महसूस किया था ।
लेकिन उनके पुत्र आकाश को मेरी बात पर यकीन ना था और वह मुझे पुलिस के हवाले करने पर आमादा था । लेकिन मम्मी पापा ने उसे रोक दिया और कहा अगर इसने चोरी करनी होती तो अब तक कर ली होती और 10 दिनों में यह कभी भी चोरी कर सकता
था ।
रोजी ने अपने मम्मी पापा व भाई आकाश की बात बीच में काटते हुए कहा यदि आप आज्ञा दे तो मैं कुछ कहू ।सभी को रोजी की विद्वता पर यकीन था क्योंकि नई-नई चीजें वैज्ञानिक जानकारी का भंडार थी रोजी । रोजी ने कहा "मैं जो बातें कहने जा रही हूं इसकी मेरे पास कोई प्रमाण तो नहीं लेकिन यह विज्ञान में एक थ्योरी भी बताई जाती है , जिसे सुन शायद आपको यकीन ना हो" सभी ने रोजी से कहा हमें तुम पर पूरा यकीन है तुम निसंकोच होकर बताओ रोजी ने बताया ...... विज्ञान में एक समानांतर दुनिया की परिकल्पना भी है जिसमे हमारी दुनिया की तरह ही एक और दुनिया भी है जिसमें सभी कुछ एक समान है , व्यक्ति , घर सामान सब कुछ , इस तरह एक दुनिया से दूसरी दुनिया में प्रवेश करने को ब्लैक होल हैं , जिससे व्यक्ति एक दुनिया से दूसरी दुनिया में जा सकता है ।
यह व्यक्ति ट्रैवलर कहलाते हैं, रोजी आगे कहती है कि मुझे यह पूरा अंदेशा है कि आकाश भी एक ट्रैवलर है जो कि गलती से हमारी दुनिया में आ गया हैं । रोजी के मां-बाप उससे पूछते हैं कि ट्रैवलर किस तरह से वापसी अपनी दुनिया में जा सकते हैं , इस बारे में रोजी को स्पष्ट जानकारी नहीं थी । मैं एक तरफ बैठा नीचे मुँह कर रो रहा था , तभी आकाश के पापा मेरे पास आए और उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा वह दुनिया ना सही ,यह दुनिया ही सही , तुम यहां हमारे बेटे बन कर रहो हम सब से कह देंगे कि यह हमारा जुड़वा बेटा है और कहीं बाहर चला गया था । उसके बाद से मै इसी परिवार के साथ घरेलू सदस्य के रूप में रह रहा हूं और आकाश शांत हो गया ।
सुरभि ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा पापा आप की यह दुनिया भी अपनी है हम भी आपके अपने हैं अब आज के बाद आप अपने आपको ट्रैवलर नहीं समझेंगे , आकाश की सुरभि को गले लगा लिया और दोनों घर की ओर चल दिए ।


यह कहानी विज्ञान की एक प्रबल परिकल्पना समानांतर दुनिया से प्रेरित है कुछ लोगों को का ऐसा मानना है कि समानांतर दुनिया होती है और ट्रैवलर इस दुनिया से दूसरी दुनिया में भ्रमण करते रहते हैं व कुछ वापस आ जाते हैं तथा कुछ आकाश की तरह यहीं के होकर रह जाते हैं ।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986

Saturday 6 November 2021

जिन्दा

 लघुकथा :


"जिन्दा"

विनय स्कूटर को स्टैंड पर खड़ा करके अपने अपार्टमेंट में आता है । उसे बहुत तेज प्यास लगी थी , वह रसोई में जाकर पानी पीता है , फ्रिज खोलकर कुछ खाने की कोशिश करता है , तभी उसकी नजर बाहर खिड़की पर पड़ती है और वह यह देख कर चौक जाता है कि उसका स्कूटर बाहर चौराहे पर गिरा पड़ा है , लोगों की भीड़ वहां जमा है , वह यह देखकर अचंभित हो जाता है । वह फौरन अपना अपार्टमेंट को लॉक कर एक्सीडेंट वाली जगह पहुंचता है । वहां जाकर विनय देखता है कि स्कूटर के साथ लहूलुहान एक लड़का सड़क पर गिरा पड़ा है और वो भी एकदम उसकी शक्ल , यह देख विनय घबराता है । वह लोगों से बात करने की कोशिश करता है , तो वो किसी से बात नहीं कर पा रहा था , वह उस लड़के को उठाने की कोशिश करता है तो वह उसे उठा नहीं पा रहा था ।
तभी एक जोर का घुसा उसके मुंह पर आकर पड़ता हैं और वह बुरी तरह घबराकर उठ बैठता है , मोहन उसे कहता है कि जब इतना ही डर लगता है तो रात को हॉरर फिल्में मत देखा कर , विनय की अब जान में जान आई क्योंकि वह "जिंदा" था ।


✍विवेक आहूजा
बिलारी 

Tuesday 3 August 2021

मिञता, FRIENDSHIP

 



कहानी :


"मिञता"
                     
आज सुबह विनय ने काफी जल्दी मेडिकल की दुुकान खोल ली थी और लगातार कई डॉक्टरों के दवाई लेने आने के कारण वह काफी थक भी गया था तभी उसके सामने उसकी हम उम्र चश्मा लगाए हुए एक व्यक्ति अपने पूरे परिवार सहित खड़ा हो गया , एक बार को तो विनय भौचक्का रह गया और उछलकर अपने मित्र जीके को गले लगा लिया , तदोपरांत वह जीके को अपने निवास पर लाया वहा अपनी पत्नी व बच्चों से जीके का परिचय करवाया। विनय की माता जी व पिताजी जीके से भलीभांति परिचित थे ,जीके ने तुरंत ही विनय की माता जी का पिता जी के चरण स्पर्श करें वह उनका आशीर्वाद लिया ।
सभी लोग परस्पर एक दूसरे को अपना परिचय दे रहे थे और बातचीत कर रहे थे तभी जीके के छोटे पुत्र ने जीके से कहा "पापा आपने हमें कभी विनय अंकल के बारे में नहीं बताया कि वह आपके इतने घनिष्ठ मित्र हैं" यह सुनकर जीके को कोई जवाब देते नहीं बन रहा था । तभी विनय ने बीच में बात काटते हुए जीके के पुत्र से कहा कि आप हमारी मित्रता के बारे में जानना चाहते हो। सभी बच्चों ने विनय को चारों ओर से घेर लिया और अपने बारे में बताने का अनुरोध करने लगे विनय ने जीके की अनुमति से सुनाना शुरू किया ...
यह उन दिनों की बात है जब विनय नवी कक्षा का छात्र था और पारकर कॉलेज के हॉस्टल में रहता था रोज की तरह सुबह तैयार होकर वह कॉलेज गया और कॉलेज के उपरांत जब वापस हॉस्टल में आया तो देखा की एक तगड़ा सा लड़का विनय की चारपाई पर बैठा हुआ है। दो व्यक्ति भी उस लड़के के साथ मौजूद थे ,उन्होंने विनय से पूछा कि "आप बिलारी रहते हो" तो विनय ने तुरंत हामी भर दी , उन्होंने बताया कि यह लड़का उनका छोटा भाई है , जिसका नाम जीके हैं और यह अब तुम्हारे साथ हॉस्टल में रहेगा । जीके भी तब नवी कक्षा में थे , वह जीके का विनय से पहला परिचय था । भाइयों के जाने के पश्चात जीके और विनय परस्पर काफी देर तक बातें करते रहे , हॉस्टल में जीके और विनय को एक ही कमरा एलॉट हुआ तथा उनकी अलमारी भी एक थी । कुछ समय में ही जीके और विनय बहुत ही घनिष्ट मित्र हो गए अब चाहे सुबह उठना हो नाश्ता करना हो पढ़ाई करनी हो या कॉलेज जाना हो ,दोनों संग संग ही जाते थे । क्योंकि जीके का गांव बिलारी के नजदीक था लिहाजा बिलारी से मुरादाबाद व मुरादाबाद से बिलारी आना जाना संग संग होता था ।आपसी सौहार्द के बीच जीके और विनय ने नवी कक्षा अच्छे नंबरों से पास कर ली जीके के माता पिता व विनय के माता पिता दोनों की परीक्षा फल से काफी संतुष्ट थे ।नवी कक्षा के बाद अब दसवीं कक्षा में जीके और विनय पर बोर्ड परीक्षाओं का काफी दबाव था जीके के भाई ने 10वीं व 12वीं की परीक्षा में कॉलेज टॉप किया था , लिहाजा जीके पर भी अच्छे नम्बर लाने के लिए काफी दबाव था। जीके समय-समय पर अपने भाई से बोर्ड परीक्षा में अच्छे नंबर लाने हेतु टिप्स ले लिया करते थे । जीके और विनय दोनों ने जल्द ही अपना हाईस्कूल का पूरा सिलेबस कर लिया था और बोर्ड की परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हुए थे । उन दिनों प्री बोर्ड का चलन नहीं था लिहाजा छमाही परीक्षा ही प्री बोर्ड की तरह होती थी छमाई परीक्षाओं में पूरा कोर्स आता था विनय और जीके दोनों अपनी अपने क्लास टीचर से मिलने गए और उनसे पूछा की इस अर्धवार्षिक परीक्षा का क्या महत्व है , तब उनके क्लास टीचर ने कहा कि यह परीक्षा सिर्फ प्रैक्टिस के लिए है , इसके नंबर कहीं नहीं जुड़ेंगे शायद इसका रिजल्ट भी ना आए । अब जीके और विनय दोनों क्लास टीचर से बात कर हॉस्टल आ गए और यह सोचने लगे कि अर्धवार्षिक परीक्षा दे या ना दे पहले तो दोनों में यह विचार करा की चलो परीक्षा देने में क्या हर्ज है और इस प्रकार पहला पेपर दे दिया । परंतु पहला पेपर देने के बाद दोनों ने सोचा इस प्रकार तो काफी समय नष्ट हो जाएगा , हम परीक्षा ना दे करके घर पर ही तैयारी करें तो ज्यादा बेहतर होगा । हॉस्टल के वॉर्डन स्कूल के टीचर आदि जितने भी शुभचिंतक थे , उन लोगों ने विनय और जीके को को बहुत समझाया कि यह परीक्षा तुम्हारे फायदे के लिए ही है ,लेकिन विनय और जीके मानने को तैयार नहीं थे । उनका तर्क था कि हम घर पर ज्यादा बेहतर तरीके से तैयारी कर सकते हैं इस प्रकार विनय और जीके ने अगला पेपर छोड़ दिया ।
अब विनय और जीके ने सोचा की घर जाकर तो तैयारी करनी है तो पहले आज चलो पिक्चर देख लेते हैं , और दोनों पिक्चर देखने चले गए । अगले दिन विनय और जीके बिलारी आ गए वहां से जीके अपने गांव चले गए घर पहुंचकर विनय ने अपनी माता जी को सारी बात बताई कि वह अर्धवार्षिक परीक्षा नहीं दे रहे हैं और घर पर रहकर ही बोर्ड एग्जाम की तैयारी करेंगे विनय की बात सुनकर विनय की माताजी चुप रही और कुछ ना बोली जब दोपहर को विनय के पिता जी घर आए तो उन्होंने विनय के द्वारा कही गई सारी बात उन्हे बताई ,अभी यह बात चल ही रही थी कि किसी ने दरवाजा खटखटाया और विनय ने दरवाजा खोल कर देखा जीके व उसके दोनों बड़े भाई विनय के घर आए हुए थे । अब तो विनय के पिताजी व जीके के दोनों भाइयों ने मिलकर विनय और जीके दोनों की बहुत डांट लगाई और उन्हें तुरंत वापस जाकर अर्धवार्षिक परीक्षा में शामिल होने के लिए कहा अभी तो घर में विनय और जीके ने पिक्चर वाली बात नहीं बताई थी , वरना क्या होता कहना मुश्किल था । घरवालों के हुक्म के मुताबिक विनय और जीके दोनों वापस हॉस्टल आ गए और अगले दिन की अर्धवार्षिक परीक्षा की तैयारी करने लगे सुबह जब क्लास टीचर , वार्डन आदि लोगों ने विनय और जीके को देखा तो वह मन ही मन मुस्कुराए और उन्हें समझते देर न लगी के कान कहां से उमेठे गए हैं । कुछ दिन तक तो विनय और जीके को बड़ा असहज लगा लेकिन बाद में जीवन चर्या आराम से बीतने लगी । जल्द ही अर्धवार्षिक परीक्षा का परिणाम भी आ गया विनय व जीके के सभी विषयों में नंबर अच्छे थे सिवाय उन दो पेपरों के जिनमें वह अनुपस्थित रहे थे । इसके पश्चात विनय व जीके दोनों अपने-अपने घर आ गए और बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी करने लगे । धीरे-धीरे बोर्ड की परीक्षाएं नजदीक आ रही थी और आखिर वह दिन भी आ गया जब बोर्ड की परीक्षाएं विनय और जीके को देनी थी । बोर्ड की सभी परीक्षाएं विनय और जीके की बहुत अच्छी हुई , परीक्षाओं के पश्चात विनय और जीके दोनों अपने-अपने घर आ गए और बोर्ड की परीक्षा का परिणाम का इंतजार करने लगे । उस समय इंटरनेट नहीं हुआ करता था इसलिए अखबारों में ही परीक्षा का परिणाम आया करता था । विनय प्रथम श्रेणी में बोर्ड की परीक्षाओं में पास हुआ , जिसकी सूचना विनय के ताऊ जी स्वयं लेकर चंदौसी से आए विनय को जीके के परिणाम की भी चिंता थी । उसने अपने व्यक्तिगत सूत्रों से पता लगवाया की जीके का परीक्षा परिणाम क्या रहा तो पता चला कि जीके भी प्रथम श्रेणी में पास हुआ है । 8 दिनों बाद जीके और विनय दोनों अपनी मार्कशीट लेने कॉलेज साथ-साथ आए मार्कशीट आ चुकी थी। विनय और जीके दोनों मार्कशीट लेने तुरंत अपने क्लास टीचर के पास पहुंचे तो पता चला कि विनय के 65% व जीके के 75% नंबर आए थे ,यह देख कर विनय का फ्यूज उड़ गया और वह सोचने लगा कि जीके ने और उसने तैयारी तो साथ साथ की है लेकिन नंबरों में इतना फर्क कैसे 8 या 10 नंबर ज्यादा होते तो बात अलग थी ,मगर विनय ने जीके से उस समय कोई बात नहीं की और दोनों चुपचाप वापस बिलारी आ गए ।
घर पर सब बहुत खुश थे , विनय और जीके के माता पिता उनकी परफॉर्मेंस से अत्यंत प्रसन्न थे । परंतु विनय के मन में यह सवाल बार-बार खाए जा रहा था की जीके के नंबर इतने अधिक कैसे आए ,इसी दौरान जीके के यहां एक प्रोग्राम का निमंत्रण विनय के घर आया और जीके ने विनय से जरूर आने का वादा लिया, विनय जीके के घर प्रोग्राम से पूर्व भी पहुंच गया, वहा उनके माता-पिता का आशीर्वाद लिया, जीके का घर गांव में बड़ा आलीशान बना हुआ था । जीके अपने घर की छत पर विनय को ले गया वहां जीके और विनय दोनों चुपचाप बैठे रहे , जीके विनय की प्रश्न सूचक दृष्टि भाप गया था और उसने विनय से पूछा कि तुम मेरे इतने अच्छे नंबरों से प्रसन्न नहीं हो , विनय ने जीके से कहा ऐसी कोई बात नहीं । जीके ने विनय से कहा मैं तुम्हारा मित्र हूं अगर कोई बात है तो मुझसे बेहिचक पूछो तब विनय ने जीके के ऊपर प्रश्नों की बौछार कर दी , जिसक सार यह था की जब वह दोनों साथ-साथ पढ़े साथ साथ घूमे और साथ साथ ही तैयारी करी तो दोनों के नंबरों में इतना फर्क कैसे । जीके यह सुन थोड़ी देर शांत रहे फिर उन्होंने बताया कि वह सिलेबस में प्रयुक्त गणित व साइंस की किताबों के अतिरिक्त अन्य किताबों से भी पढ़ाई किया करते थे । जिससे कि अच्छे नंबर आ सकें । विनय को जीके की यह बात सुनकर बहुत गुस्सा आया और विनय ने जीके से कहा कि यह बात तुम्हें मुझे बतानी चाहिए थी कि तुम अन्य लेखकों की किताबें भी पढ़ते हो । जीके ने तुरंत अपनी गलती स्वीकारी व भविष्य में कभी इस प्रकार की प्रतिस्पर्धा ना करने की कसम ली काफी देर आपसी बहस के बाद दोनों इस नतीजे पर पहुंचे की 11वीं कक्षा में एक जैसे विषय होने पर प्रतिस्पर्धा तो होगी और मित्रता बचानी मुश्किल हो जाएगी, अतः 11वीं में विनय और जीके ने अलग अलग विषयों का चयन किया इस प्रकार दोनों अपने-अपने विषयों में अपनी-अपनी तैयारी करते थे ।इस प्रकार दोनों ने 12वीं में गुड सेकंड डिवीजन से पास की विनय तत्पश्चात चंदौसी व जीके आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ चले गए । विनय और जीके का संपर्क काफी टाइम तक बना रहा परंतु अब की बार 10 वर्षों के पश्चात मुलाकात हुई यह कहकर विनय शांत हुआ और तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सभी बच्चों विनय और जीके की कहानी सुनकर खुश हुए । इसके पश्चात जीके ने विनय से विदा ली और जल्दी आने का वायदा किया।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
तिलक अस्पताल
बिलारी जिला मुरादाबाद
@9410416986
@7906933255
Vivekahuja288@gmail.com

( मिञता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें )

मेरी मैडम अच्छी मैडम, Meri madam achi madam

 

बाल कविता :


"मेरी मैडम अच्छी मैडम"

मेरी मैडम अच्छी मैडम , चश्मे वाली प्यारी प्यारी ।
खेल खेल में हमें पढाती , खूब सिखाती बाते सारी ।

समय से आना समय से जाना ,वो तो है एक दोस्त हमारी।
नहीं है लड़ना मिल कर पढना ,वो सिखलाती बाते न्यारी ।

गलती पर वो डाट पिलाती, उठक बैठक करवाती सारी।
फिर टाफी देकर हमें मनाती , बाते करती प्यारी प्यारी ।


पढ़ लिखकर हम खूब बढेंगे, रह जाएगी ये बातें सारी।
बचपन के दिन याद रहेगे , मिट न पायेगी ये यादें हमारी ।

मेरी मैडम अच्छी मैडम...........

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986

Monday 26 July 2021

प्रायश्चित | prayshchit


कहानी  : 


                           "प्रायश्चित"

                                 

EPISODE  : 2


असल में रैगिंग भी हॉस्टल में कई चरणों में होती थी , शुरू में तो सिर्फ परिचय आदि के साथ मजाक होता था । परंतु धीरे-धीरे यह काफी खतरनाक स्तर तक पहुंच जाती थी । इसी कारण से बच्चे हॉस्टल में आने से डरते थे ,लेकिन पढ़ाई तो करनी ही थी और हॉस्टल में होने वाले बच्चे इस दौर से गुजरते ही थे । यह हॉस्टल के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुकी थी । विनय ने सभी बच्चों को एकत्र किया और दीपू की रैगिंग आज से शुरू करने का प्लान बनाया गया ।  रात्रि 8:00 बजे भोजन आदि करने के पश्चात सभी सीनियर्स ने दीपू को अपने कमरे में बुला लिया । रैगिंग के प्रथम चरण में राजकुमार की ड्यूटी लगाई गई  ,कि वह दीपू को बहुत डरावनी कहानी  सुनाएगा । हॉस्टल  के बारे में बताएगा कि यहां भूत रहते हैं और यह हॉस्टल कब्रिस्तान में बना हुआ है आदि ।दीपू ने कमरे में प्रवेश किया और राजकुमार दीपू के करीब आकर बैठ गया पहले दीपू से उसके परिवार के विषय में पूछा गया । उसके बाद विनय भी वहीं आ गया और राजकुमार से कोई किस्सा सुनाने की जिद करने लगा । राजकुमार ने कहना शुरू किया की जिस कमरे में दीपू रहता है और उस अलमारी में जिसमें दीपू का सामान रखा है ,अब से करीब 5 वर्ष पूर्व एक लड़का रहता था  , उसका नाम संतोष था । एक दिन अचानक वह अपनी चारपाई पर मृत पाया गया और उसकी आत्मा आज भी हॉस्टल में घूमती रहती है । वह अपनी अलमारी  बार-बार खोल कर देखता भी है और चारपाई को भी उठा लेता है यह सुन दीपू के रोंगटे खड़े हो गए । तभी वॉर्डन साहब रात्रि की ड्यूटी पर राउंड लगाने आ गए ,  वार्डन  साहब को देख सभी बच्चे भाग कर अपने अपने कमरों में चले गए । 

दीपू अंदर ही अंदर बहुत डर गया था,  पूरी रात उसे नींद नहीं आई और सोच रहा था कि कहीं संतोष की आत्मा उसके पास ना आ जाये ।अगली सुबह कॉलेज जाते वक्त और वहां से वापसी पर दीपू ने हॉस्टल के कई बच्चों से इस बारे में पूछा की यह बात सच है ,तो सभी ने हामी भर दी क्योंकि विनय ने सब को पहले से ही धमका कर रखा हुआ था । विनय ने सभी से कह रखा था , कि दीपू को कोई सच नहीं बताएगा और दीपू की रैगिंग पूरे सप्ताह भर चलेगी ।  संतोष की आत्मा की बात सुन दीपू बुरी तरह घबरा गया था । कुछ दिनों तक विनय अपने मित्रों द्वारा दीपू को इसी तरह रात्रि में अपने कमरे में बुलाकर डरावनी कहानियां सुनाकर परेशान करता रहा , दीपू ने खाना-पीना तक छोड़ दिया था ।एक  दिन तो विनय ने दीपू से कहा कि यह हॉस्टल कब्रिस्तान में बना हुआ है और बहुत सी आत्माएं यहां पर घूमती ही रहते हैं कभी-कभी तो वह किसी बच्चे के अंदर भी प्रवेश कर जाती हैं । दीपू और भी परेशान हो गया लेकिन नया होने की वजह से वह अपने दिल का हाल किसी से कह भी नहीं सकता था ,अतः वह मानसिक रूप से बहुत परेशान रहने लगा । शनिवार का दिन था  शाम को सब स्वतंत्र होते थे कोई स्टडी टाइम नहीं था , शाम से रात तक सब बच्चे फ्री होकर एक दूसरे के कमरे में आया जाया करते थे । विनय ने अपने सब मित्रों को बुलाया और दीपू के रैगिंग का आज अंतिम चरण था और उस को तगड़ा झटका देने का फैसला किया गया । उन्होंने प्लान बनाया कि रात्रि 12:00 बजे के बाद जब सब बच्चे सो जाएंगे तब हम सब मिलकर दीपू की चारपाई को उठाकर फील्ड के बीच में रख देंगे । रात्रि जब दीपू गहरी नींद में सो गया तो विनय ने अपने साथियों के साथ मिलकर दीपू की चारपाई को उठा मैदान के बीच में रख दिया और राजकुमार ने एक भयानक सा मुखौटा लगाए उसकी चारपाई की एक तरफ बैठ गया । दीपू को जब थोड़ी हलचल महसूस हुई तो उसकी आंख खुल गई अपनी चारपाई मैदान में देख दीपू की चीख निकल गई जैसे ही उसने अपने समीप बैठे मुखोटे युक्त राजकुमार को देखा तो वह डर के मारे बेहोश हो गया।


क्रमश : 


(स्वरचित)


विवेक आहूजा

Saturday 24 July 2021

प्रायश्चित | prayshchit


 

#कहानी  : 


                           "प्रायश्चित"

 

EPISODE : 1


आज हॉस्टल का पहला दिन था और बच्चे धीरे-धीरे अपनी गर्मियों की छुट्टी खत्म कर वापस हॉस्टल में आ रहे थे । #कक्षाएं भी आरंभ होने वाली थी अमूमन कॉलेज की कक्षा शुरू होने से दो-तीन दिन पहले ही हॉस्टल में बच्चे आने शुरू हो जाते हैं , पुराने बच्चे जो पहले से हॉस्टल में रह रहे होते हैं ,उन्हें तो सब कुछ पहले से पता होता है ।  परंतु जो बच्चे नए आते हैं उन्हें हॉस्टल के तौर तरीके सीखने में कुछ वक्त लग जाता है फ्रांसिस कॉलेज जो शहर का जाना माना इंटर #कॉलेज है के सामने बॉयज होम के नाम से मिशनरी का हॉस्टल बना हुआ है ।  यह हॉस्टल आजादी के पूर्व से ही मिशनरी द्वारा संचालित है इसे मिशनरी के लोग ही चलाते हैं । रूल रेगुलेशन यहां के बहुत  सुव्यवस्थित रुप से संचालित होने के कारण प्रतिवर्ष यहां आने वाले बच्चों की लाइन लगी रहती है । मिशनरी का होने के कारण कोई सिफारिश भी यहां काम नहीं आती अपनी पढ़ाई के आधार पर ही बच्चे यहां पर प्रवेश पाते हैं ।गर्मी की छुट्टियों के बाद धीरे धीरे बच्चे हॉस्टल में आने लगे और वार्डन द्वारा एडमिशन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अपने सामान को हॉस्टल में सेट करने लगे 

 हॉस्टल में करीब 15 /16 कमरे और तीन बड़े-बड़े हॉल हैं । कमरों में 6 बच्चों के रहने की व्यवस्था है प्रत्येक कमरे में 6 अलमारी व छः चारपाई होती है , बड़े हॉल में 12 से 15 बच्चों के रहने की व्यवस्था है इसमें करीब 15 अलमारी है वह 15 ही चारपाई होती हैं । लेट्रिन बाथरूम के लिए एक अलग से बिल्डिंग बनी हुई है ,जोकि कॉमन है । पुराने बच्चे जो पहले से कई वर्षों से हॉस्टल में रह रहे हैं उन्हें अच्छी तरह से पता है की हॉस्टल में जल्दी आने का अर्थ बढ़िया कमरे में प्रवेश होता है । हॉस्टल में सीनियर और जूनियर विंग अलग-अलग है । छोटे बच्चे (छठी से आठवीं तक) को बड़े हॉल में प्रवेश मिलता है । जबकि नवी से बारहवीं तक के बड़े बच्चों को कमरों में ठहराया जाता है । सारी प्रक्रिया वार्डन साहब के द्वारा की जाती है । इस तरह करीब डेढ़ सौ बच्चे हॉस्टल में हो जाते हैं ।सारे बच्चों के आने के पश्चात सीनियर हेड बॉय जोकि कक्षा 9 से कक्षा 12 के बीच व एक जूनियर हेड बॉय जो करीब कक्षा 6 से 8 के बीच का होता है, का चयन होता है । इसके अतिरिक्त खाने की व्यवस्था देखने के लिए एक किचन हेड बनाने की भी हॉस्टल में व्यवस्था होती है ,जो कक्षा 9 से कक्षा 12 के बीच का विद्यार्थी को ही चयनित किया जाता है । हॉस्टल का रूटीन इसी प्रकार चलता है । गर्मियों में सुबह 6:00 बजे वार्डन साहब और स्कूल के गेट पर एक घंटा गंगा रहता है, उसे बजा देते हैं । यह सुबह उठने का संकेत है और 7:00 बजे तक सभी विद्यार्थियों को स्कूल के लिए तैयार होकर कैंटीन पहुंचना होता है । वहां 7:00 से 8:00 के बीच सुबह का नाश्ता करके 8:00 बजे तक कॉलेज पहुंच जाते हैं । कॉलेज से 2:30 बजे छुट्टी के पश्चात वापस हॉस्टल आकर 3:00 से 4:00 के बीच में दोपहर के खाने का समय होता है । शाम 4:00 से 6:00 रेस्ट का टाइम है उसके पश्चात शाम को 6:00 से 8:00 के बीच में स्टडी रूम में पढ़ाई का नियम निर्धारित है , 8:00 बजे रात्रि भोजन के पश्चात बच्चे अपने कमरों में आ जाते हैं । इस प्रकार हॉस्टल की व्यवस्था पूरे वर्ष चलती है । सर्दियों में भी करीब-करीब इसी तरह का नियम रहता है । 

 विनय जोकि दसवीं कक्षा में अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण हुआ था, 11वीं में प्रवेश के लिए हॉस्टल में जल्दी आ गया वह करीब तीन-चार वर्षों से हॉस्टल में रह रहा था ,अतः हॉस्टल की सारी व्यवस्था उसे अच्छे से पता थी । अब वह हॉस्टल के सीनियर छात्र है , और उसकी गिनती सीनियर छात्रों में होती है । ग्यारहवीं में बायो ग्रुप लेकर वह डॉक्टरी के पेशे में जाना चाहता है , अतः स्कूल पहुंचकर उसने अपने अध्यापकों से बायो में प्रवेश संबंधी सारी प्रक्रिया की जानकारी ली  , बायो ग्रुप में #एडमिशन के पश्चात वह निश्चिंत हो हॉस्टल आ गया । अभी हॉस्टल खुले दो या तीन  दिन ही हुए थे हॉस्टल में कम ही बच्चे आए थे,  धीरे-धीरे साथ 8 दिन बीतने पर हॉस्टल फुल हो गया ।  छोटी-बड़ी सभी कक्षाओं के बच्चे हॉस्टल में आ चुके थे विनय क्योंकि सीनियर विंग में था उसे इस वर्ष सीनियर हेडब्वॉय बना दिया गया , हॉस्टल में उसका रुतबा था,  छोटी कक्षाओं के बच्चे उसे सुबह गुड मॉर्निंग और रात्रि गुड नाइट करना नहीं भूलते ,क्योंकि उस समय नए-नए बच्चे जो हॉस्टल में प्रवेश करते थे उनकी रैगिंग भी जमकर होती थी । हॉस्टल प्रशासन भी एक दायरे में रहकर नए बच्चों से हंसी मजाक की इजाजत दे देता था ।

 कॉलेज में हॉस्टल के बच्चों का रुतबा था अगर कोई बाहर का बच्चा हॉस्टल के बच्चे से झगड़ा कर ले , तो सभी हॉस्टल के #विद्यार्थी एकत्र होकर बाहर वाले बच्चे की धुनाई कर देते थे । यही कारण था कि बाहर के बच्चे हॉस्टल के बच्चों से दूर दूर ही रहा करते थे । 

एक दिन हॉस्टल में मैनेजर साहब और वार्डन साहब एक बच्चे को लेकर आए और उसका परिचय कराते हुए बोले "बच्चों यह #दीपू है और इसने कक्षा आठ में प्रवेश लिया है अब से यह तुम्हारे साथ हॉस्टल में ही रहेगा"  यह कहकर मैनेजर साहब दीपू को हॉस्टल में छोड़ कर चले गए । दीपू एक बहुत ही शर्मीला बच्चा था । पहली बार अपने घर से बाहर हॉस्टल में रहने आया था ,उसके पिताजी पोस्ट ऑफिस में कार्य करते थे । वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान था ।उसे बड़े हॉल में शिफ्ट कर दिया गया उसे एक अलमारी व एक चारपाई भी मिल गई । दीपू ने अपना सामान अलमारी में लगा लिया वह चारपाई पर बिस्तर बिछा कर सेट कर दिया । सीनियर बच्चों की विंग में विनय को जब पता चला कि आज एक नया लड़का हॉस्टल में आया है तो सभी सीनियर बच्चों को एकत्र कर दीपू की #रैगिंग का प्लान बनाया गया । 


क्रमश : 


(स्वरचित)


विवेक आहूजा 

बिलारी 

जिला मुरादाबाद 

@9410416986

Vivekahuja288@gmail.com


( अगला भाग कल )

Saturday 17 July 2021

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