Sunday, 27 June 2021

पिता, Father,पिता का साया

 "पिता"

धूप में झुलस कर , नंगे पाँव रहकर ।

भूखे पेट सोकर , हालातों से लड़कर ।
जो हार न मानें, वो होता है पिता ।।

जीवन भर कमा कर , पैसो को बचाकर ।
हसरतो को मारकर , बच्चों की खुशी पर ।
जो पल में खर्च कर दे , वो होता है पिता ।।

आँसू को छुपा कर , नकली हसी दिखा कर ।
घर मे मौजूद रह कर , परिवार में सब कुछ सहकर ।
जो सब न्यौछावर कर दे , वो होता है पिता ।।

यदि किसी औलाद पर , पिता का साया नहीं ।
चाहे पा ले वो , दुनिया में सब कुछ ।
पर असलियत में , उसने कुछ पाया नहीं ।।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986




Thursday, 10 June 2021

कोरोना की दूसरी लहर से हाहाकार

 "पारिवारिक व सामाजिक ढांचा ध्वस्त कर रही कोरोना की दूसरी लहर" 


सुदेश (मोबाइल पर ) : बेटा कृपाल बोल रहा है.....
कृपाल : हां माँ , बोल रहा हूं ....क्या बात है ?
सुदेश : बेटा .....हम बर्बाद हो गए , तेरे पिताजी हमें
छोड़ कर चले गए , उन्हें करोना हो गया
था.... तू जल्दी से घर आ... यहां सब
कुछ कैसे होगा .......
कृपाल : ओह ! पिताजी यह कैसे हो गया मेरा तो
सब कुछ लुट गया......
सुदेश : बेटा तू जल्दी से घर आ मैं बिल्कुल अकेली
पड़ गई हूं ....
कृपाल : पर माँ ..... यहां तो पूरे शहर में लॉकडाउन
लगा हुआ है और सब जगह कोरोना फैला
है , पुलिस बाहर भी नहीं निकलने दे रही है
लोग मर रहे हैं , मैं अपने परिवार को किस
के भरोसे छोड़ कर आऊ , मैं मजबूर हूं तू
किसी तरह वहां देख ले ..... मैं बाद में आ
जाऊंगा ....
(और सुदेश फोन रख देती है )

यह तो एक छोटी सा घटनाक्रम था इसी तरह के सैकड़ों घटनाक्रम इस कोरोना की दूसरी लहर में देखने को मिल रहे हैं । ऐसा आए दिन जगह-जगह देखने में आ रहा है कि कोरोना से वृद्ध माँ या बाप की मृत्यु होने पर उसके बाहर कार्यरत पुत्र या पुत्री इस दौरान उनकी अंत्येष्टि तक में शामिल नहीं हो पा रहे है । ऐसा नहीं है कि वह आना नहीं चाहते बल्कि लॉकडाउन की पाबंदियां , एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवेश संबंधी कड़े नियम लोगों को अपनी पारिवारिक परंपराओं का निर्वहन करने से रोक रहे है ।
वहीं दूसरी ओर परिवार के अतिरिक्तकोरोना की दूसरी लहर से हाहाकार  मचा हुआ है व सामाजिक ढांचा भी धवसत होता नजर आ रहा है , क्योंकि इस महामारी के दौर में जब किसी व्यक्ति की कोरोना की वजह से मौत होती है तो आस पड़ोस के लोग भी उसकी अंत्येष्टि में नहीं जा पाते क्योंकि एक तरफ तो सरकार द्वारा निर्धारित गाइडलाइन जिसमें 15 से 20 व्यक्तियों से अधिक शामिल होने पर पाबंदी है और दूसरी ओर लोगों को इस महामारी की चपेट में आने का डर महसूस होता है । पिछले वर्ष सन 2020 में जब इस महामारी की शुरुआत हुई थी तो हालात इतने खराब नहीं थे , लोग एक दूसरे से संपर्क बनाए हुए थे परंतु कोरोना की इस दूसरी लहर ने जब से शहर शहर , गांव गांव मैं अपना रौद्र रूप धारण किया है व इसके प्रभाव से लोग मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं । इसे देखते हुए लोगों में एक अनजाना सा डर बना हुआ है कि कहीं हम भी इस महामारी की चपेट में ना आ जाए । 
यही सब बातें इस महामारी की दूसरी लहर के दौर में पारिवारिक व सामाजिक ढांचा ध्वस्त कर रही हैं और लोगों में तन की दूरी के साथ-साथ मन की दूरियों को भी बड़ा रहीं है ।

(स्वरचित)

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
vivekahuja288@gmail.com 

लाकडाउन से मिली 5 सीख

 आलेख : 


"लाकॅडाउन की सीख"

इस कोरोना कॉल में पूरे विश्व में एक भयंकर संकट आया हुआ है । प्रत्येक देश , व्यक्ति ,समुदाय , इस संकट से जूझ रहा है, लोग घरों में कैद होकर रह गए हैं । सरकार ,स्वास्थ्य विभाग ,डब्ल्यूएचओ आदि संगठन ने इस महामारी से बचने के लिए समय-समय पर बहुत सी गाइडलाइन जारी की है, व लॉकडाउन भी लगाए हैं । वर्तमान भारत में इस प्रकार का संकट पहली बार देखने को मिला है और जनता सरकार की गाइडलाइंस का भरपूर सहयोग कर रही है । लॉकडाउन में लोग काफी दिनों से घरों में बंद है और इस महामारी की विदाई का इंतजार कर रहे हैं । लॉक डाउन का समय भारत में कई लोगों के लिए पीड़ादायक रहा है क्योंकि इस दौरान लोगों ने अपनी नौकरी गवा दी , व्यापारी वर्ग के कारोबार खात्मे की ओर है । परंतु इस लाकडाउन से हमें काफी कुछ सीखने को मिला है । आज हम इसी विषय पर क्रमवार तरीके से चर्चा करेंगे की लॉकडाउन के इस कठिन समय में हमने क्या सीखा ....
1- कोरोना की इस दूसरी लहर में इसने अपना रौद्र रूप धारण किया हुआ है, काफी लोगों ने अपनी जान गवाई है ऐसे समय में अस्पतालों में भर्ती प्रक्रिया ऑक्सीजन की8 कमी आदि की समस्याएं देखने को मिली है । इस दौरान देश ने यह महसूस किया है की स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं में अभी काफी सुधार की आवश्यकता है । भारत की आबादी के अनुसार आज भी एमबीबीएस डॉक्टरों की काफी कमी है और सरकार को यह चाहिए के आने वाले समय में एमबीबीएस डॉक्टरों की संख्या को बढ़ाएं व अस्पतालों में जो कमियां हैं उन्हें तुरंत दूर करें ताकि कोई इस तरह की महामारी आये तो हम उसका डटकर मुकाबला कर सके ।
2- इस लॉकडाउन में यह बात भी सिद्ध हो गई है कि आपसी रिश्तो को बहुत बड़ी संख्या में एकत्र होकर सहजने से अच्छा है , कि कम से कम लोगों के बीच घरेलू आयोजन किए जाएं , इससे एक तो फिजूलखर्ची बचती है और आपसी सद्भाव को भी मजबूती मिलती है ।पहले लोग शादी बरातों में सैकड़ों हजारों लोगों को निमंत्रण देकर अपने रसूख का प्रदर्शन करते थे परंतु अब 20 लोगों के बीच ही यह आयोजन हो पा रहे हैं, इस सब में लोगों के द्वारा की जाने वाली फिजूलखर्ची पर ब्रेक लगा है ।
3- इस लॉकडाउन में लोगों को अच्छे से एहसास हो गया है कि दुनिया में स्वास्थ्य से बड़ी पूंजी कोई नहीं, क्योंकि ऐसा ना होता तो बड़े बड़े पूंजीपति भी इस बीमारी की चपेट में आकर मृत्यु को प्राप्त ना होते, जबकि जिन व्यक्तियों का स्वास्थ्य अच्छा रहा वह आसानी से इसकी चपेट में नहीं आ रहे हैं और यदि किसी कारणवश आ भी गए तो अपनी अच्छी रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण इससे बाहर भी निकल पा रहे हैं ।
4- इस लॉकडाउन में लोगों ने घरों के अंदर रहकर अपने समय का सदुपयोग किया है और अपने अंदर की प्रतिभा को इंटरनेट के माध्यम से लर्निंग क्लासेस लेकर बाहर निकालने का प्रयास किया है । बहुत से लोगों ने कहानियां लिखी , कविताएं लिखी , कुछ लोगों ने यूट्यूब से गाना सीखा , कुछ ने डांस सीखा और कुछ लोगों में तो यूट्यूब के चैनल तक बना डाले इस प्रकार से यह समय अपने अंदर की प्रतिभा को निखारने का बहुत सही समय साबित हुआ है ।
5- अंत में हम इस लोक डाउन की सबसे बड़ी सीख और सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही की परिवार से बढ़कर कुछ नहीं , जो लोग पूरे वर्ष कार्यों के सिलसिले में इधर-उधर घूमते रहते थे , अब उन्हें अपने परिवार के साथ रहने का मौका मिला है । इस कोरोना काल मे चाहे आपका कितना ही करीबी हो, उसने भी घर के बाहर ही आपका स्वागत किया है , और अंततः हमें घर पर ही शरण मिली है । बहुत से परिवारों में परिवारिक सदस्यों के आपसी मतभेद भी साथ साथ रहने के कारण इस दौरान काफी कम हुए हैं। इसलिए परिवार का महत्व लोगों की समझ में अच्छे से आ गया है , यह लॉकडाउन परिवार को मजबूती प्रदान करने वाला कारक बन कर आया है ।


( स्वरचित )

विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
@8923831037

vivekahuja288@gmail.com

Forest man of India,जादव पायेंग , जगंल मैन

 "जाधव पायेंग -फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया" 


जहां एक ओर पूरी दुनिया जंगलों को काट काट कर अपने घरों का फर्नीचर सजाने में लगी है वही आसाम के यादव पायेंग ने वह कारनामा कर दिखाया जिसे देख लोग दंग रह गए ।आसाम में जोराहट के नजदीक टापू अरुणा सबोरी में पूरे 13 सौ एकड़ में एक विशाल जंगल फैला है जोकि पूरा का पूरा जादव पाऐंग द्वारा बसाया गया है ,जी हां यह बिल्कुल सत्य है । इसी कारण भारत सरकार ने उन्हें पदम श्री व कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया है ।
जादव पायेंग के संघर्ष की कहानी शुरू होती है सन 1979 से , जब वह मात्र 15 वर्ष के थे उस समय ब्रह्मपुत्र नदी में भयंकर बाढ़ आई थी और आसपास का सभी इलाका नष्ट हो गया था । जादव पायेंग ने देखा कि बहुत से सर्प चारों और मरे पड़े हैं , उसने अपने बुजुर्गों से पूछा इतने सारे सर्प कैसे मरे हुए हैं , तो उन्होंने बताया कि यहां कोई पेड़ पौधा ना होने के कारण जीव जंतु मर रहे हैं । जादव पाऐंग ने तभी फैसला कर लिया कि जिस प्रकार लोगों ने अपना घर बसाने के लिए जानवरों के घर उजाड़े हैं वह जानवरों का घर बसाने के लिए जंगल तैयार करेंगे ।
इसी सोच के साथ वह वन विभाग के दफ्तर गए और वहां उन्होंने अपनी मंशा जाहिर की , लेकिन वन विभाग ने ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे रेतीली जमीन पर कुछ भी उगाने में असमर्थता जाहिर कर दी । उन्होंने यादव को बताया कि ब्रह्मपुत्र के नजदीक रेतीली जमीन पर कुछ भी उगना संभव नहीं है , क्योंकि यह बिल्कुल बंजर जमीन है , लेकिन अगर तुम चाहो तो यहां बांस के पेड़ लगा सकते हैं । जादव पाऐंग ने इतना सुनने के बाद भी हार नहीं मानी और जोरहट के नजदीक अरुणा सबूरी टापू पर बांस के पेड़ लगाने शुरू कर दिए । धीरे-धीरे एक से दो , दो से चार से आठ करते-करते 40 वर्षों का समय बीत गया और जादव पायेंग के भागीरथ प्रयास से 13 सौ एकड़ का जंगल तैयार हो गया ।
इतने सारे पेड़ों को पानी लगाना भी एक प्रमुख समस्या थी , जिस की तरकीब जादव ने यह निकाली कि प्रत्येक पेड़ पर बांस की तख्ती बनाकर उस पर मिट्टी का घड़ा सुराख़ कर लटका दिया , जिसमें से बूंद बूंद पानी पेड़ों को मिलता रहा , इस प्रकार हफ्तों तक पेड़ों को पानी लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी ।
पैरों में चप्पल , बिल्कुल सादा जीवन व्यतीत करने वाले जादव पायेंग को भारत सरकार द्वारा सन् 2015 में पदम श्री अवार्ड से सम्मानित किया गया । इसके अतिरिक्त राष्टपति डॉ अब्दुल कलाम द्वारा उन्हें आर्थिक सहायता भी प्रदान की गई । एक गाय का पालन कर अपना गुजारा चलाने वाले जादव साधारण जीवन जीने वाले असाधारण शख्सियत हैं । आज उनके द्वारा विकसित जंगल में 80% पक्षियों की प्रजाति पाई जाती हैं , राइनो , हाथी , बंगाल टाइगर और इसी तरह के बहुत से जी वहां मौजूद है ।
अंततः जादव पायेंग अपने मकसद में कामयाब हुए , लेकिन इस कामयाबी को हासिल करने में जादव पाऐंग को 40 वर्षों का काफी लंबा वक्त लग गया । ऐसी शख्सियत समाज के लिए प्रेरणा स्रोत हैं जो समाज को पर्यावरण के प्रति प्रेम जागृत करने के लिए प्रेरित करते
हैं ।


(स्वरचित)


विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
vivekahuja288@gmail.com

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